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प्राकृतिक आपदाओं में अनियोजित विकास का योगदान, प्रमोद भार्गव का ब्लॉग

By प्रमोद भार्गव | Updated: July 27, 2021 13:31 IST

मुंबई, नागपुर, सातारा, पुणो और कोल्हापुर इसके ताजा उदाहरण हैं. इन शहरों को स्मार्ट बनाते समय वर्षा जल की निकासी की परवाह नहीं की जा रही है.

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ठळक मुद्देजलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी से अरब सागर तूफानों का गढ़ बनता जा रहा है.2001 के बाद ऐसे तूफानों में 52 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है.अरब सागर में बंगाल की खाड़ी की तुलना में ज्यादा नमी पैदा हो रही है.

समूचे महाराष्ट्र में तेज बारिश ने कहर ढा दिया है. बाढ़ के साथ भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं. नतीजतन सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है. कोंकण क्षेत्न व पश्चिम महाराष्ट्र में भारी बारिश ने भीषण तबाही मचाई हुई है. कुछ दिन पहले मुंबई में भी बारिश के चलते अलग-अलग हादसों में कई जानें गई हैं.

प्रकृति जब अपना रौद्र रूप दिखाती है तब मनुष्य के सारे आधुनिक उपकरण व उपक्रम लाचार साबित होते हैं और मनुष्य अपनी बर्बादी आंखों से देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर पाता. लेकिन हकीकत यह है कि इन प्राकृतिक आपदाओं के लिए काफी हद तक हम मनुष्यों द्वारा ही किया गया आधुनिक व तकनीकी विकास जिम्मेदार है.

तकनीकी रूप से स्मार्ट सिटी बनाने पर दिया जा रहा जोर भी इस तबाही के लिए जिम्मेदार है. मुंबई, नागपुर, सातारा, पुणो और कोल्हापुर इसके ताजा उदाहरण हैं. इन शहरों को स्मार्ट बनाते समय वर्षा जल की निकासी की परवाह नहीं की जा रही है, जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी से अरब सागर तूफानों का गढ़ बनता जा रहा है. 2001 के बाद ऐसे तूफानों में 52 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है.

हाल ही के अध्ययनों में पाया गया है कि ज्यादातर मामलों में हवा धीरे-धीरे तूफान का रूप लेती है और आखिर में चक्रवात बनकर किसी समुद्री किनारे से टकराती है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियरोलॉजी पुणो के वरिष्ठ वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कॉल के अनुसार अरब सागर में बंगाल की खाड़ी की तुलना में ज्यादा नमी पैदा हो रही है.

इससे विक्षोभ पैदा हो रहे हैं जो तूफान को गति प्रदान करते हैं. पहले दक्षिण-पश्चिम अरब सागर ज्यादा ठंडा होता था, लेकिन अब इसकी गर्मी बढ़ रही है जो बाढ़ और चक्रवाती तूफानों का कारण बनरही है. बाढ़ की यह त्नासदी शहरों में ही नहीं है बल्कि असम, झारखंड व बिहार जैसे वे राज्य भी ङोल रहे हैं, जहां बाढ़ दशकों से आफत का पानी लाकर हजारों गांवों को डुबो देती है.

इस लिहाज से शहरों और ग्रामों को कथित रूप से स्मार्ट व आदर्श बनाने से पहले इनमें ढांचागत सुधार के साथ ऐसे उपाय करने की जरूरत है, जिससे ग्रामों से पलायन रुके और शहरों पर आबादी का दबाव न बढ़े. शहरों की बुनियादी समस्याओं का हल शहर बसाते समय पानी निकासी के प्रबंध करने से ही निकलेगा.

यदि वास्तव में राज्यों को स्मार्ट शहरों की जरूरत है तो यह भी जरूरी है कि शहरों की अधोसंरचना संभावित आपदाओं के अनुसार विकसित की जाए. आफत की यह बारिश इस बात की चेतावनी है कि हमारे नीति-नियंता, देश और समाज के जागरूक प्रतिनिधि के रूप में दूरदृष्टि से काम नहीं ले रहे हैं. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के  परिप्रेक्ष्य में वे चिंतित नहीं हैं.

2008 में जलवायु परिवर्तन के अंतरसरकारी समूह ने रिपोर्ट दी थी कि धरती पर बढ़ रहे तापमान के चलते भारत ही नहीं, दुनिया भर में वर्षाचक्र  में बदलाव आने वाला है. इसका सबसे ज्यादा असर महानगरों पर पड़ेगा. इस लिहाज से शहरों में जल-प्रबंधन व निकासी के असरकारी उपायों की जरूरत है. इस रिपोर्ट के मिलने के तत्काल बाद केंद्र की तत्कालीन संप्रग सरकार ने राज्यस्तर पर पर्यावरण संरक्षण परियोजनाएं तैयार करने की हिदायत दी थी. लेकिन देश के किसी भी राज्य ने इस अहम सलाह पर गौर नहीं किया. इसी का नतीजा है कि हम जल त्नासदियां भुगतने को विवश हो रहे हैं.

बहरहाल, जलवायु में आ रहे बदलाव के चलते यह तो तय है कि प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ रही है. इस लिहाज से जरूरी है कि मुंबई के बरसाती पानी का ऐसा प्रबंध किया जाए कि उसका जलभराव नदियों, नालों और बांधों में हो, जिससे आफत की बरसात के पानी का उपयोग जल की कमी से जूझ रहे क्षेत्नों में किया जा सके.

साथ ही शहरों की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए कृषि आधारित देशज ग्रामीण विकास पर ध्यान दिया जाए. दरअसल मनुष्येतर प्राणियों में बाढ़ और सूखे की दस्तक जान लेने की प्राकृतिक क्षमता होती है. इसीलिए बिलों से जीव-जंतु बाहर निकलने लगते हैं और खूंटे से बंधे पालतू मवेशी रंभाकर रस्सी तोड़कर भागने की कोशिश में लग जाते हैं.

करीब तीन दशक पहले तक मनुष्य भी इन संकेतों को आपदा आने से पहले भांपकर सुरक्षा के उपायों में जुट जाता था. किंतु कथित विकास के साथ ही उसकी ये क्षमताएं विलुप्त हो गईं. ये आपदाएं स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि अनियंत्रित शहरीकरण और कामचलाऊ तौर-तरीकों से समस्याएं घटने की बजाय बढ़ रही हैं.

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