Maharashtra civic elections: इसे महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र की ठंडक का प्रभाव कहा जाए या फिर रणनीतिक स्तर पर समन्वय का अभाव, विधानमंडल में राज्य का विपक्ष पिछले पांच दिनों में कोई बड़ा हंगामा नहीं खड़ा कर पाया है. गिनती के सात दिनों के शीतकालीन सत्र में तकनीकी स्तर पर स्थिति यह है कि दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्त है. जिसकी मांग लंबे समय से चल रही है, लेकिन सत्तापक्ष की उसे राजनीतिक रूप से निपटाने की कोशिश है. मुंबई में हुए वर्षाकालीन सत्र से लेकर पांच माह बीत चुके हैं. जिसके बाद अतिवृष्टि ने किसानों को संकट में घेरा और उन्हें राहत देने की मांग उठी.
सरकार दिवाली में सहायता का आश्वासन देकर अभी तक प्रभावितों को इंतजार करा रही है. राज्य में ‘लाड़ली बहन’ योजना का लाभ-हानि पूरी तौर से महागठबंधन से जुड़ा है, जिस पर सवाल उठाना भी सरकार के पक्ष में जाता है. किंतु विपक्ष उस पर अपनी ऊर्जा लगाता रहता है. सड़कों की समस्या आम-खास दोनों से संबंधित है, मगर उनको लेकर तथ्यात्मक ढंग से सरकार को घेरा नहीं जा रहा है.
यही हाल अपराधों को लेकर है, जिस पर भी आंकड़ों के आधार पर बात हो सकती है. परंतु विपक्ष के पास खोजबीन के आधार पर मुकाबले की कोई इच्छा नहीं है. शिवसेना ठाकरे गुट में पारिवारिक मिलन की खुशियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(राकांपा) शरद पवार गुट और अजित पवार गुट में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दोनों नावों में पैर रखकर सवारी चल रही है.
कांग्रेस की अपना दमखम दिखाने की मंशा के बीच उसके नेताओं में दिल्ली से लेकर मुंबई तक समन्वय का खुला अभाव दिखता है. राज्य विधानमंडल का आठ दिसंबर को जब नागपुर सत्र आरंभ हुआ, तब यह लग रहा था कि यह हंगामेदार होगा. इसके लिए सभी दल अच्छे से तैयार होंगे.
मगर इंडिगो एयरलाइंस के परिचालन संकट से पहले दिन कई विधायकों के उपराजधानी नहीं पहुंचने से सीधे तौर पर कामकाज प्रभावित हुआ. बाद में कुछ वरिष्ठ नेता चार्टर्ड विमान और रेल से पहुंचे. इससे शुरुआती दिन कमजोर ही रहे. जहां सबसे पहले विदर्भ सत्र के घटते दिनों पर आवाज उठनी चाहिए थी, वहां सात दिनों के लिए पर्याप्त कोरम बनाए रखने की चिंता हुई.
विधान परिषद में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे ने एक विधायक के पास भारी नकदी का वीडियो दिखाया, मगर उसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) से तैयार बताकर किनारे कर दिया गया. इसी तरह की कोशिश में मुंबई से महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने एक सरकारी अधिकारी के रिश्वत लेने का वीडियो दिखाया, जो आया-गया हो गया.
पुणे के निकट जुन्नर के निर्दलीय विधायक शरद सोनवणे तेंदुए की तरह दिखने वाला परिधान पहनकर विधान भवन पहुंचे और अपने अनोखे प्रदर्शन से राज्य में बढ़ते तेंदुआ-प्रवेश और हमलों की ओर ध्यान खींचा. गुरुवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे नागपुर पहुंचे. उन्होंने कोई नई बात नहीं कही,
सिवाय इसके कि अमित शाह के मंत्रिमंडल में ही गोमांस खाने वाले मंत्री हैं और भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) का ‘वंदे मातरम्’ सिर्फ ‘वन डे मातरम्’ है. इसके सहारे उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाने पर लिया. किंतु इन मुद्दों से राष्ट्रीय स्तर पर टकराव हो सकता है. परंतु राज्य स्तर पर ठोस आरोप, शिकायत और सबूत बिना बात आगे नहीं बढ़ सकती है.
मंत्रियों-नेताओं पर जुबानी आरोप किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते हैं. समस्याओं का समाधान तह में जाकर ढूंढ़ा जा सकता है. यही वजह है कि सरकार निश्चिंत है और गीत-संगीत की महफिलों का आनंद ले रही है. पिछले दिनों विपक्ष में स्थानीय निकायों के चुनावों को लेकर गहमागहमी रही. शिवसेना ठाकरे गुट में ठाकरे भाइयों का मिलन पारिवारिक खुशियों में बदल गया.
दोनों के मिलने से स्थानीय निकाय चुनावों में विपक्ष के प्रदर्शन में सुधार की आशा व्यक्त की जा रही थी. किंतु राकांपा शरद पवार गुट के तटस्थ रहने और कांग्रेस के मनसे प्रमुख राज ठाकरे को अस्वीकार करने से एकजुटता प्रत्यक्ष स्वरूप नहीं ले पाई. ठाकरे बंधुओं का चुनावी लक्ष्य मुंबई और पुणे से अधिक बड़ा नहीं है.
उनके लिए नासिक, छत्रपति संभाजीनगर, कोल्हापुर आदि बोनस हैं. मगर ठाकरे बंधुओं के मुख्य दो स्थानों पर विपक्ष एक साथ नहीं है. इसी मानसिकता ने उसकी शक्ति को क्षीण करना आरंभ कर दिया है. आने वाले दिनों में महानगर पालिका के अलावा जिला परिषदों के चुनाव कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण होंगे.
यदि वह ठाकरे बंधुओं का अधिक साथ लेने के चक्कर में रही तो उसे अपने ‘वोट बैंक’ से हाथ धोना पड़ सकता है. इसलिए वह निर्धारित दूरी बनाकर चलने में विश्वास रख रही है. यही बिखराव विपक्षी आवाज की खनक को कम कर रहा है. ठंडा और धीमा अंदाज पिछले दिनों के मुकाबले उसे थका-थका सा दिखा रहा है.
निश्चित ही हर दल की अपनी मजबूरियां और आवश्यकताएं हैं. विधानमंडल के दोनों सदनों में सदस्यों की संख्या कम होना भी परेशानी का एक कारण है. शिवसेना और राकांपा की दृष्टि में विदर्भ उनके लिए लाभप्रद नहीं है. फिर भी तीनों-चारों दलों का समग्र विपक्ष के रूप में अपनी भूमिका में बने रहना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है.
जन समस्याओं पर विपक्ष की औपचारिक भूमिका सरकार की अक्षमता को ढंक देती है. भ्रष्टाचार, घोटाले जब तक किसी निर्णायक प्रक्रिया तक नहीं पहुंचते, तब तक उनका महत्व नहीं रहता है. इसलिए विपक्ष के समक्ष यदि हंगामा करने का इरादा या ताकत कम दिख रही है तो कम से कम उसे बात कुछ इस ढंग से रखनी चाहिए कि जन मन में सत्र आयोजन से लाभ मिलने की उम्मीद जागे. अन्यथा सत्र की औपचारिकता भी क्यों बनाए रखी जा रही है, इस सवाल का भी उत्तर दिया जाना चाहिए.
कवि दुष्यंत कुमार के शब्दों में कहा जाए तो-
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए,मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए.