Maharashtra Assembly Elections 2024: जैसे-जैसे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का समय पास आ रहा है, वैसे-वैसे हर दल अपनी-अपनी तैयारी को शक्ल देता जा रहा है. लोकसभा चुनाव में शानदार विजय मिलने के बाद राज्य की महाविकास आघाड़ी के हौसले बुलंद हैं और उसमें शामिल हर दल की महत्वाकांक्षा बढ़ गई है. दूसरी ओर राज्य का सत्ताधारी महागठबंधन अपनी पराजय की भरपाई के लिए उतावला है. ऐसे में दोनों गठबंधन के सहयोगी अपनी-अपनी जगह ख्वाब सजाए हुए हैं. किंतु इस परिदृश्य में ऐसा लग रहा है कि राज्य की राजनीति में कोई कमजोर नहीं है. यहां तक कि अनेक दल अपने दम पर सरकार बनाने की तैयारी में हैं. इस कतार में आगे कांग्रेस और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) जैसे दल हैं, जो अपनी ताकत से सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रहे हैं.
महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव होता है, जिनमें 29 पर अनुसूचित जाति, 25 पर अनुसूचित जनजाति और 234 पर सामान्य उम्मीदवार चुनाव लड़ सकते हैं. पिछले सालों में कांग्रेस के अलावा बहुजन समाज पार्टी और वंचित बहुजन आघाड़ी ने ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ा है, भले ही परिणाम कुछ भी सामने आए हो.
इन दलों के अलावा किसी दल ने वर्ष 2014 को छोड़कर दो सौ पार जाने की हिम्मत नहीं जुटाई है. जिसकी वजह गठबंधन के लाभ के आधार पर चुनाव लड़ना है. किंतु इस बार आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले कई बार पूरी 288 सीटों पर ताल ठोंकने की बात कह चुके हैं, तो दूसरी ओर मनसे के प्रमुख ने गुरुवार को 225 से 250 तक सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है.
भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) प्रत्यक्ष रूप से 150 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रही है, लेकिन पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले कार्यकर्ताओं को दस वोटों के फार्मूले से 200 सीटें जीतने का भरोसा दिला रहे हैं. वहीं राज्य से सत्ताधारी गठबंधन में उसकी सहयोगी शिवसेना का शिंदे गुट 126 सीटों पर चुनाव लड़ने का इच्छुक है और 100 से कम सीटों पर समझौता करने की उसकी कोई योजना नहीं है.
जबकि अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(राकांपा) 80 से 90 सीटों पर चुनाव लड़ने की मंशा से काम कर महागठबंधन पर दबाव बना रही है. यदि इस तैयारी से सत्ताधारी दलों की महत्वाकांक्षा को देखा जाए तो वह चुनाव के लिए उपलब्ध सीटों से बहुत ज्यादा हो जाती है. अब इसमें समझौते की गुंजाइश को देखा जाए तो पिछली बार भाजपा ने 164 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
जबकि उससे तालमेल कर शिवसेना 126 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इसलिए भाजपा के पास 124 सीटों पर ही समझौते का अवसर है. हालांकि वह 150 सीटों की बात कर 14 सीटें दूसरों को देने की इच्छुक है. इसी प्रकार एकजुट राकांपा ने पिछली बार 121 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से जीते विधायकों में 31 विधायक अजित पवार के गुट के पास माने जाते हैं, इसलिए उनकी अपेक्षा बढ़ना स्वाभाविक है.
वहीं, महाविकास आघाड़ी में कांग्रेस सबसे ज्यादा आगे आई है. हालांकि शिवसेना (उद्धव बालासाहब ठाकरे) का 115-120 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का लक्ष्य है. राकांपा का शरद पवार गुट चाहता है कि गठबंधन के तीनों दल बराबर सीटों पर चुनाव लड़ें, जिसके अनुसार 96-96 सीटों पर चुनाव लड़ा जा सकता है.
किंतु कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पटोले की 288 सीटों पर चुनाव लड़ने की महत्वाकांक्षा बार-बार सहयोगियों की चिंता बढ़ा रही है. इनके बीच वंचित बहुजन आघाड़ी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और मनसे के प्रत्याशी होंगे, जिनके दो सौ से अधिक होने का दावा किया जा रहा है. यदि राज्य के वर्तमान राजनीतिक समीकरणों को देखा जाए तो भाजपा और कांग्रेस को छोड़ शिवसेना तथा राकांपा का विभाजन हो गया है.
इसकी बानगी लोकसभा चुनाव में दिखाई दी. हालांकि राज्य के दोनों गठबंधन ने मिलकर चुनाव लड़ा, फिर भी मत विभाजन के चलते सफलता एक ही गठबंधन के खाते में आई. आगे भी तालमेल इसी तरह रहा तो विधानसभा चुनाव में स्थितियां अधिक नहीं बदलेंगी. फिर दावों की असलियत क्या बन पाएगी? पिछले विधानसभा चुनाव में मनसे ने 101 सीटों पर चुनाव लड़कर 7.02 प्रतिशत मत हासिल किए थे.
वहीं वंचित बहुजन आघाड़ी ने 236 सीटों पर मैदान में उतर कर 5.5 प्रतिशत मत प्राप्त किए थे. कांग्रेस ने गठबंधन में चुनाव लड़कर 32.71 प्रतिशत मत पाए थे, जबकि उसकी सहयोगी राकांपा को 121 सीटों पर चुनाव लड़कर 38.3 प्रतिशत मत मिले थे. भाजपा को 44.51 प्रतिशत और शिवसेना को 38.3 प्रतिशत मत मिले थे. किंतु अब यह आधार नहीं है. मतों का बंटवारा अच्छी तरह से हो चुका है.
यह माना जा सकता है कि चुनाव के पहले कोई भी दल अपने आप को कमजोर नहीं मान सकता है और पूरी सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा ठोंक सकता है. मगर वास्तविकता तो चुनाव परिणामों के आधार पर लिखी जाएगी. राज्य में यदि कांग्रेस पूरी सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा बार-बार दिखा रही है तो उसने वर्ष 1995 में 286 सीटों पर चुनाव लड़ा था, तब उसे 80 सीटों पर विजय मिली थी.
उसके बाद उसे वर्ष 2014 में 287 सीटों पर चुनाव लड़कर 42 सीटों पर सफलता मिली. इसी साल राकांपा ने पहली बार स्वतंत्र चुनाव से 278 सीटों पर लड़ा, लेकिन 41 सीटों पर ही विजय मिली. इसी साल भाजपा ने 260 और शिवसेना ने 282 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें भाजपा को 122 तथा शिवसेना को 63 सीटों पर सफलता मिली.
इन सभी चुनाव में अलग लड़ने का लाभ केवल एक बार भाजपा को मिला, जो उसे वर्ष 2019 में गठबंधन करने के बावजूद दोहराते नहीं बना. स्पष्ट है कि मिश्रित राजनीति के परिदृश्य में महत्वाकांक्षा का तब तक कोई महत्व नहीं है, जब तक कि उसका कोई ठोस आधार तैयार नहीं हो. इन दिनों संगठन की स्थिति, वैचारिक मतभेद और जातिगत आंदोलन किसी भी दल के लिए पोषक वातावरण तैयार नहीं होने दे रहे हैं.
ऐसे में चुनाव के पहले गीदड़ भभकी भले ही कोई दे, लेकिन पिछले 29 साल में कोई भी दल बिना गठबंधन के सरकार बना नहीं सका है. इसलिए माहौल बनाने के लिए चाहे कितनी भी तैयारी की जाए, सफलता गठबंधन में ही छिपी है. वर्तमान परिदृश्य में बिना गठबंधन के राजनीतिक आधार तो दूर, पहचान बना पाना भी मुश्किल हो चला है.