Lok Sabha Elections 2024: इस समय भाजपा के रणनीतिकारों का विशेष जोर बिहार में नीतीश कुमार को कमजोर कड़ी मानने पर है. वे चाहते हैं कि या तो नीतीश की साख गिरा दी जाए, या उन्हें इंडिया से छीन कर राजग में मिला लिया जाए. इसके लिए पिछले कुछ महीनों से दो तरह की चालें चली जा रही हैं.
पहली, नीतीश को बीमार बताने के साथ-साथ एक तरफ लालू-तेजस्वी की साजिश का शिकार करार देना. दूसरी, लगातार इस तरह की अफवाहें उड़ाना कि वे इंडिया गठबंधन में अपनी उपेक्षा से दुखी हो कर फिर से पलटी मार कर एनडीए में आने की कगार पर पहुंच चुके हैं.
इस मनोवैज्ञानिक युद्ध में चतुराईपूर्वक गृह मंत्री अमित शाह से लेकर गिरिराज सिंह, सुशील मोदी और जीतन राम मांझी अपना-अपना पार्ट खेल रहे हैं. मांझी कह रहे हैं कि नीतीश को साजिशन एक खुफिया दवा दी जा रही है ताकि वे अपना मानसिक संतुलन खो दें. उधर अमित शाह ने जैसे ही अर्थपूर्ण ढंग से कहा कि अगर (नीतीश की तरफ से) कोई प्रस्ताव आए तो उस पर विचार किया जा सकता है.
वैसे ही मांझी से कहलवा दिया गया कि नीतीश एनडीए में आते हैं तो उन्हें आपत्ति नहीं होगी. बिहार में इंडिया गठबंधन के सामने चुनौती यह है कि भाजपा के इस मनोवैज्ञानिक आक्रमण को कामयाब न होने दिया जाए. अभी तक तो नीतीश, तेजस्वी और लालू इससे बचते हुए दिखाई दे रहे हैं.
महाराष्ट्र में विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर द्वारा दिया गया लंबा फैसला दरअसल इस मनोवैज्ञानिक युद्ध का एक औजार बन गया है. नार्वेकर ने चतुराईपूर्वक शिवसेना के दोनों धड़ों में से किसी के भी विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया, पर ऐसी परिस्थिति बना दी जिसके तहत उद्धव ठाकरे के विधायकों को भी एकनाथ शिंदे के आदेशों को ही नहीं मानना होगा.
बल्कि उनकी पार्टी लाइन पर भी चलना होगा, वरना उनके खिलाफ कार्रवाई हो जाएगी. इस तरह इस अनूठे फैसले ने विधानसभा चुनाव तक लगातार अनिच्छापूर्वक ही सही, उद्धव के विधायकों को शिंदे के साथ जोड़ दिया है. इस प्रक्रिया में इन विधायकों की अनिच्छा कभी भी इच्छा में बदल सकती है.
यानी, यह फैसला उद्धव की राजनीतिक ताकत को धीरे-धीरे घटाने और एकनाथ शिंदे की शिवसेना को मजबूत करने की भूमिका निभाता हुआ दिखेगा. महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव के कमजोर होते जाने और भाजपा पर निर्भर रहने वाले शिंदे का मतलब यह होगा कि उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा सीटों वाले इस प्रांत में भाजपा का वर्चस्व बढ़ता चला जाएगा. उत्तर प्रदेश में यह मनोवैज्ञानिक युद्ध दोनों पक्षों द्वारा मायावती की राजनीति के प्रबंधन पर टिका है. अभी तक तो यही दिखाई पड़ रहा है कि इसमें भाजपा कामयाब होते दिखाई पड़ रही है.