राजनीति का माहौल जिस तरह बिगड़ता रहा है उसके किरदारों के बीच अपवादस्वरूप सुषमा स्वराज ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत, भारतीयता और भाषा-भारती हिंदी तीनों का मस्तक ऊंचा उठाया. विदेश मंत्नी के रूप में विदेश मंत्नालय का दायित्व संभाल कर उन्होंने अनेक संवादों में भारत का पक्ष बड़ी दृढ़ता से प्रस्तुत किया. पूर्व में विदेश मंत्नालय की छवि घोर अंग्रेजीदां रही है. सुषमाजी ने अथक प्रयास से मानकों की प्रतिष्ठा रखते हुए भारत की राजभाषा हिंदी को उसका अपेक्षित सम्मान दिलाया.
यह सिर्फ हिंदी के प्रयोग की ही बात नहीं थी, इसमें सार्वभौम सत्तासंपन्न देश की प्रतिष्ठा का भी प्रश्न था. विदेशी राजनयिक अपने देश की भाषा का प्रयोग करते हैं जबकि हम अंग्रेजी का ही उपयोग करते रहे हैं. विदेश मंत्नी के रूप में सुषमा स्वराज ने अंतर्राष्ट्रीय राजनय में देश की भाषा के उपयोग को प्रोत्साहित किया. उन्होंने हमसे कहा कि आप हमें रूपांतरकार दीजिए जो विभिन्न विदेशी भाषाओं से सीधे हिंदी में अनुवाद करे और हिंदी से उन भाषाओं में भी. उन्होंने वर्धा विश्वविद्यालय के जापानी, चीनी और स्पेनी भाषाओं के छात्नों को मंत्नालय में बुला कर चर्चा की और प्रोत्साहित किया. इस दिशा में विश्वविद्यालय सक्रि य है. यह संयोग ही था कि उनके विदेश मंत्नी रहते हुए हिंदी के दो विश्व सम्मेलन हुए. एक भोपाल में 2015 में और दूसरा मॉरीशस में 2018 में. दोनों ही आयोजन बड़े भव्य थे और गुणवत्ता की दृष्टि से पहले के आयोजनों से स्तर में आगे थे.
इनमें कार्य संपादन के लिए उन्होंने परामर्श की व्यवस्थित पद्धति विकसित की और नियमित चर्चा करती थीं. वह प्रत्येक कार्य की खबर रखती थीं. वे स्वयं कार्य में विश्वास करती थीं और उसके लिए सतत प्रेरित भी करती रहती थीं. प्राय: ऐसे आयोजन मेले जैसे होते हैं और करके लोग शीघ्र ही भूल जाते हैं परंतु सुषमाजी ने रुचि से उनके प्रतिवेदन को यथाशीघ्र प्रकाशित करने का उपक्रम किया. वर्धा विश्वविद्यालय द्वारा भोपाल में हुए विश्व सम्मेलन का प्रतिवेदन छह मास में प्रकाशित किया. यही नहीं, सुषमाजी ने उनमें स्वीकृत प्रस्तावों पर अनुवर्ती कार्यवाही को भी सुनिश्चित किया.
हिंदी को लेकर प्राय: वादे होते रहे हैं पर जमीनी स्तर पर काम कम ही हो पाता है. सुषमाजी ने इस मिथ को तोड़ा और विदेश मंत्नालय में हिंदी को कई तरह से प्रतिष्ठा दिलाई. पासपोर्ट व अन्य दस्तावेजों में हिंदी के प्रयोग को स्थान मिला. हिंदी के विदेशों में अध्यापन की पीठों की संख्या भी बढ़ी. संयुक्त राष्ट्र में सभी दस्तावेजों की हिंदी में उपलब्धता सुनिश्चित कराई. अब वहां से हिंदी में समाचार बुलेटिन आते हैं. उन्होंने हिंदी की अंतर्राष्ट्रीय जगत में उपस्थिति के संवर्धन के लिए भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद को हर तरह से समृद्ध करने का प्रयास किया. वह स्वयं हिंदी की सरल, सुबोध और जनोपयोगी शैली के उपयोग को प्राथमिकता देती थीं.