ब्लॉग: लोगों के विश्वास के साथ ‘गेम’ करते गेमिंग एप, लोगों को सावधान रहने की जरूरत
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: September 12, 2022 01:26 PM2022-09-12T13:26:03+5:302022-09-12T13:26:03+5:30
देश में साइबर अपराधों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ी है, उतनी तेजी से साइबर जांच में परिपक्वता नहीं आई है. वह आज भी उतनी ही कमजोर है, जितनी पहले थी.
गत शनिवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी के दौरान कोलकाता में बड़ी मात्रा में नगदी की बरामदगी हुई, जो एक कारोबारी के पास मिली. शुरुआत में उसे सात करोड़ रुपए गिना गया. मगर आंकड़ा 12 से 18 करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है. यह राशि मोबाइल गेम एप की धोखाधड़ी से जुड़ी बताई गई है.
हाल के दिनों में मोबाइल गेम एप की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है. क्रिकेट के नाम पर न जाने कितने एप चल रहे हैं. इसी प्रकार अन्य तरह के खेलों के भी एप उपलब्ध हैं, जिनका युवाओं और बच्चों के बीच अच्छा-खासा आकर्षण है. बताया जा रहा है कि ताजा कार्रवाई के पहले भी फरवरी 2021 में एप की कंपनी और उसके प्रमोटर के खिलाफ कोलकाता पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई थी और कई ठिकानों पर छापामारी हुई थी.
यदि जांच अनुसार सीधे तौर पर देखा जाए तो यह साइबर फ्रॉड का मामला है, जो खेल के बहाने लोगों के बैंक खातों में सेंध लगाकर रकम निकाल लेता था. मगर सवाल यह है कि बड़ी संख्या में तरह-तरह के एप मौजूद होने के बावजूद देश-दुनिया में उनकी सुरक्षा पर चर्चा क्यों नहीं हो रही है? ताजा मामला किसी एक विशिष्ट एप का नहीं माना जा सकता, बल्कि इसके बहाने अनेक एप से जुड़ी चिंता जगजाहिर हो रही है. इनके तैयार होने से लेकर लोगों तक पहुंचने को लेकर जांच-पड़ताल न होना परेशानी की बात है.
मोबाइल फोन पर आए दिन ‘गेमिंग एप’ के संदेश आना आम बात है. उनमें खुलेआम जुआ का जिक्र भी होता है. मगर उन संदेशों पर न तो ‘ट्राई’ कोई कार्रवाई करती है और न ही उनके बारे में पुलिस की समझ में कुछ आता है. जब किसी स्तर पर कोई बड़ी धोखाधड़ी सामने आती है तो जांच एजेंसियां जागती हैं और कार्रवाई के लिए हाथ-पांव चलाती हैं. दरअसल देश में साइबर अपराधों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ी है, उतनी तेजी से साइबर जांच में परिपक्वता नहीं आई है. वह आज भी उतनी ही कमजोर है, जितनी पहले थी.
इसकी सीधी वजह आधुनिक सुरक्षा प्रणाली पर सुरक्षा एजेंसियों का प्रशिक्षण न होना है. अभी-भी तकनीक को समझने वालों की सुरक्षा एजेंसियों में आवश्यक भरती नहीं हो रही है. ढर्रे पर काम करते हुए सुरक्षा एजेंसियां तकनीकी रूप से उलझे मामले को लोगों की निजी समस्या और उपयोगकर्ता की गलती बता देती हैं, जिससे जांच आगे बढ़ती नहीं है और मामलों का दबाव सहजता से समाप्त हो जाता है.
वर्तमान परिदृश्य में जरूरत इस बात की है कि पहले एप बनाने वालों की विश्वसनीयता तय करने के लिए किसी जांच तंत्र की व्यवस्था की जाए और फिर प्रमाणित-गैर प्रमाणित एप सूृचीबद्ध कर लोगों को धोखाधड़ी से बचने के लिए आगाह किया जाए. तभी समाज के बड़े वर्ग को किसी के जाल में फंसने से किसी सीमा तक रोका जा सकेगा. वर्ना सांप निकलने के बाद लाठी पीटने की तरह किस्से अक्सर सुनाई देते रहेंगे.