बीते कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन की मार से बेहाल, धरती के स्वर्ग कहलाने वाले कश्मीर पर संकट मंडरा रहा है कि कहीं यहां का किसान सेबफल की बागवानी से तौबा न कर ले. पहले देर तक गर्मी पड़ी, फिर कम बर्फबारी और वह भी अल्प दिनों के लिए, इस सब विपदाओं से जूझते हुए जब शरद ऋतु के पतझड़ में उम्मीद के सेबफल आए तो रास्तों में लगे लम्बे जाम ने पूरे साल की मेहनत को सड़क पर फेंकने को मजबूर कर दिया. हालांकि इस साल कश्मीर का सेब दिल्ली तक रेल से लाने का प्रयोग हुआ है, पर इस सेवा का लाभ बहुत कम लोगों तक पहुंच पा रहा है.
भादों माह विदा हुआ तो पुलवामा, सोपोर, शोपियां जैसे जिलों में बर्फ गिरने से पहले पेड़ों पर लाल-गुलाबी और सुनहरे सेबफल झूमने लगे. इस समय सारा परिवार एकजुट होकर पहले सेब तोड़ता है, फिर उसे छंटता है और लकड़ी की पेटियों में सुरक्षित पैक करता है. फिर इन्हें ट्रकों में चढ़ा दिया जाता है. इस साल अगस्त के आखिरी हफ्ते में जम आकर बरसात हुई और कश्मीर को जम्मू से जोड़ने वाली एकमात्र 270 किलोमीटर आल वेदर रोड पर नासिरी, उधमपुर सहित दर्जनों जगह इतना भूस्खलन हुआ कि कोई तीन हफ्ते रास्ता बंद रहा.
इस बीच कोई दस हजार ट्रक सड़कों पर फंसे रहे. जिन गाड़ियों से बदबू आने लगती, सेब को आसपास की घाटी में लुढ़का कर निराश लोग वापस आने की सोचते. उधर पुराना मुगल रोड इसके लायक नहीं रहता कि बरसात में उससे भारी वाहन ले जाए जा सकें.
सोपोर को सेबफल की सबसे बड़ी मंडी कहा जाता है. कभी यहां इस समय कंधे छीलने वाली भीड़ और लोगों का शोर होता था, लेकिन इस समय सन्नाटा है. जो लोग हैं भी तो उनके चेहरे पर खुशी नहीं है. बम्पर फसल लेकर आए किसानों को चिंता है कि दाम सही मिलेगा या नहीं, कारण कि रास्ते बंद हैं और ऐसे में सड़क पर माल फेंकने से बेहतर है बड़े डीलर को औने-पौने दाम पर बेच दिया जाए.
कश्मीर में कोई 35 लाख लोग सेबफल के उत्पादन से जुड़े हैं जिसका सालाना व्यापार 11 हजार करोड़ रु. का है. बदलते मौसम का मिजाज किस तरह आम लोगों के जीवन को प्रभावित करता है, इसकी कड़वी सच्चाई कश्मीर के बागानों में दिख जाती है. कुछ लोग सुझाव देते हैं कि राज्य में कोल्ड स्टोरेज क्षमता बढ़ाई जाए. इस समय शोपियां, अनंतनाग, श्रीनगर और पुलवामा में कोई 85 कोल्ड स्टोरेज हैं जिनकी क्षमता चार लाख मीट्रिक टन है. अब यहां 20 किलो की एक पेटी को चार महीने के लिए रखने का किराया 180 रुपए होता है. अधिकांश कोल्ड स्टोरेज को बड़े डीलर पूरा बुक कर लेते हैं और आम किसान को अवसर मिलता नहीं. जान लें कि सितंबर में यदि माल रखा तो उसे दिसंबर में उठाना होगा और उस समय भारी बर्फबारी के कारण फिर से सड़क-रास्ते बंद होते रहते हैं और फलों की खपत भी कम हो जाती है.
बागान से बाजार के बीच निराशा में घुट रहे सेबफल के किसानों को राहत तभी मिल सकती हैं जब सेब का रस, सिरका और ऐसे ही उत्पादों के लघु उद्योग ग्रामीण स्तर पर शुरू किए जाएं. इसके साथ ही कश्मीरी सेब के विदेशों में निर्यात की संभावना, श्रीनगर से सीधे उन्हें बाहर भेजने के लिए हवाई कार्गो आदि पर काम किया जाए. साथ ही आधुनिक जेनेटिक तकनीक से अधिक समय तक न सड़ने वाली नस्लों के शोध और प्रचार पर भी काम करने की जरूरत है.