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खाद्य आत्मनिर्भरता की सूत्रधार थीं इंदिरा गांधी

By अरविंद कुमार | Updated: November 19, 2025 05:25 IST

बैंकों का राष्ट्रीयकरण, महाराजाओं के प्रिवीपर्स की समाप्ति और 1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण उनके साहसिक फैसलों में से था.

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ठळक मुद्दे355 वोट हासिल कर संसदीय दल का नेतृत्व पाया था.विरोधी मोरारजी देसाई को 169 वोट ही मिले थे.बांग्लादेश की मुक्ति में अपनी साहसिक भूमिका के कारण वे विश्व नेता बनी थीं.

आजाद भारत में कई अनूठी उपलब्धियों के लिए दुनिया इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल को याद करती है. उनके प्रधानमंत्री काल में भारत कुशल वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति का तीसरा विशालतम भंडार, पांचवीं सैन्य शक्ति, परमाणु क्लब का छठा सदस्य और अंतरिक्ष में सातवां देश बना. साथ ही यह दसवीं औद्योगिक शक्ति भी बना. पाकिस्तान के दो टुकड़े करने से लेकर हरित क्रांति जैसी उपलब्धि और श्वेत क्रांति का आधार तैयार करना भी उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों में है. जब वे लाल बहादुर शास्त्रीजी के आकस्मिक निधन के बाद सन् 1966 में प्रधानमंत्री बनीं तो यह पद उनको तश्तरी में परोस कर नहीं मिला था. बल्कि उन्होंने 355 वोट हासिल कर संसदीय दल का नेतृत्व पाया था. तब उनके विरोधी मोरारजी देसाई को 169 वोट ही मिले थे.

देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं तो राजनीतिक हलकों में उनको गूंगी गुड़िया जैसा संबोधन मिला था पर समय ने उनको लौह महिला साबित कर दिखाया. वे बेहद दूरदर्शी और साहसी नेता थीं. बांग्लादेश की मुक्ति में अपनी साहसिक भूमिका के कारण वे विश्व नेता बनी थीं. बैंकों का राष्ट्रीयकरण, महाराजाओं के प्रिवीपर्स की समाप्ति और 1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण उनके साहसिक फैसलों में से था.

1983 में वे गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन की अध्यक्ष भी निर्वाचित हुई थीं. इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधी उनको आपातकाल का ही पर्याय बताने का प्रयास करते हैं. उनकी उपलब्धियों पर लगातार परदा डालने का प्रयास हो रहा है. वास्तविकता यह है कि वे स्वाधीनता आंदोलन की उपज थीं.

गांधीजी से प्रेरित होकर उन्होंने बाल चरखा संघ स्थापित किया और असहयोग आंदोलन में वानर सेना बना कर काम किया. 1959 में वे कांग्रेस अध्यक्ष बन गई थीं लेकिन नेहरूजी के जीवन काल में वे संसद का सदस्य भी नहीं बनी थीं. लाल बहादुर शास्त्री के आग्रह पर वे 1964 में राज्यसभा सदस्य बनीं और शास्त्रीजी के मंत्रिमंडल में सूचना तथा प्रसारण मंत्री रहीं.

उनकी बहुत सी उपलब्धियां हैं पर इस बात पर खास दृष्टि किसी की नहीं जाती कि भारत की खाद्य मामलों में आत्मनिर्भरता उनके ही प्रधानमंत्री काल में आई थी. भारत के खेती-बाड़ी के इतिहास में 1970-71 का साल खास मायने रखता है, जब 10.80 करोड़ टन अन्न उत्पादन का रिकार्ड बनाने के साथ भारत ने विदेशों से अन्न मंगाना बंद कर दिया था. तब बाबू जगजीवन राम कृषि मंत्री थे.

शास्त्रीजी के निधन के बाद जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो उनके सामने खाद्य मामलों में गंभीर चुनौती खड़ी थी. 1964-65 में 8.9 करोड़ टन अनाज उत्पादन हुआ था जो 1965-66 में 7.2 करोड़ टन और 1966-67 में 7.4 करोड़ टन रहा, जिस कारण 100 लाख टन अनाज आयात करना पड़ा.

तब अमेरिका से पीएल-480 के तहत मिले गेहूं की शर्तें इतनी अपमानजनक थीं कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तिलमिला गई थीं. 9 अप्रैल 1966 को मुख्यमंत्रियों की एक बैठक में उन्होंने बहुत तल्खी के साथ कहा था कि ‘अगर हम चंद सालों में अनाज में आत्मनिर्भरता नहीं हासिल कर लेते तो महान देश तो दूर हमें स्वतंत्र कहलाने का हक भी नहीं है.’

1967 में इंदिरा गांधी ने खाद्य आत्मनिर्भरता के लिए सारे घोड़े खोल दिए थे. उसका असर दिखा और उनके प्रधानमंत्री काल में भारत का खाद्यान्न उत्पादन 8 करोड़ टन से बढ़ कर 15 करोड़ टन से अधिक पर पहुंच गया. यह किसी चमत्कार से कम नहीं था. वे प्रधानमंत्री बनीं तो अनाज उत्पादन बहुत कम था

लेकिन सरकार के लगातार प्रयासों, उन्नत बीजों और सिंचाई सुविधाओं के विकास के कारण इस मोर्चे को इंदिराजी ने मात दी.  उन्होंने 30 लाख टन अनाज का बफर स्टाक बनाने की योजना तैयार कराई. उनके शासनकाल के चार वर्षों में भारत में गेहूं उत्पादन में जो क्रांति आई उसी को अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी (यूएसएआईडी) के विलियम गौड ने 1968 में हरित क्रांति नाम दिया था.

हालांकि तब अमेरिकी अनुसंधानकताओं विलियम पैंडडौक और पाल पैंडडौक ने यह भविष्यवाणी की थी कि भारत का अन्न संकट जारी रहेगा और विदेशों से आने वाले अनाज की मात्रा बढ़ती रहेगी. पर यह बात गलत साबित हुई. 1967 में कल्याण सोना, सोनालिका और मैक्सिकन गेहूं के कुछ सलेक्शन से (जिसकी औसत पैदावार 35 से 50 कुंटल प्रति हेक्टेयर थी) भारत में गेहूं क्रांति आई.

इसी तरह धान उत्पादन में बढ़ोत्तरी आयातित बीज आईआर-8 फिलीपींस और ताईचुंग नेटिव-1 ताईवान से हासिल की गई थी. इसे इंदिरा गांधी ने राजनीतिक इच्छाशक्ति, संसाधन प्रबंधन और किसानों व वैज्ञानिकों की मदद से अंजाम दिया.  हरित क्रांति के दौरान गेहूं और धान की नई किस्मों की वजह से उत्पादकता बढ़ी.

1963 में राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना नेहरू के शासनकाल में हो गई थी लेकिन 1969 के दौरान इंदिराजी ने राज्य फार्म निगम स्थापित किए, जिनकी मदद से बीजों की सुलभता हुई. आजादी मिलने के बाद भारत के नीति निर्माताओं के दिमाग में सबसे बड़ी चिंता भुखमरी और अनाज की कमी थी. तब 75 प्रतिशत से ज्यादा लोग ग्रामीण इलाकों में रहते थे.

जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधारों की दिशा में सरकार ने प्रयास किया. पर 1964 में पंडित नेहरू के निधन के साल 266.25 करोड़ रुपया खर्च कर 62.70 लाख टन अन्न बाहर से मंगाया गया, जबकि 1965 में लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री काल में यह 74.60 लाख टन हो गया.

लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो ‘जय जवान जय किसान’ का नारा गूंजा.  शास्त्रीजी की अपील पर इंदिरा गांधी ने 18 अक्तूबर 1965 को कांग्रेस के सभी पदाधिकारियों को अनाज बचाने, किसानों को अन्न उत्पादन के बाबत सभी संभव मदद करने, खाद्य आदतों में बदलाव लाने के लिए बाकायदा अभियान चलाया था.

1970-71 में जब 10.80 करोड़ टन अन्न उत्पादन का रिकार्ड बना तो सरकार ने विदेशों से अन्न मंगाना बंद कर दिया. बाद के सालों में भारत में कृषि क्षेत्र लगातार तरक्की कर रहा है.  आज भारत सरकार 80 करोड़ लोगों से अधिक को मुफ्त अनाज दे रही है, जिसके पीछे इंदिरा गांधी की नीतियां और पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का शानदार योगदान सबसे अधिक मायने रखता है.  

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