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India Higher Education: देश में उच्च शिक्षा की परंपरा और प्रयोग?

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: November 29, 2024 05:23 IST

India Higher Education: आधुनिक भारत में उच्च शिक्षा का वर्तमान रूप अंग्रेजी औपनिवेशिक काल की देन है जिसे योजनाबद्ध रूप में युक्तिपूर्वक प्रस्तुत और स्थापित किया गया.

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ठळक मुद्देदर्शन, धर्मशास्त्र, गणित, धातु-विद्या, साहित्य और कला आदि के क्षेत्रों में प्रचुर सामग्री आज भी उपलब्ध है.अध्ययन का क्षेत्र अत्यंत व्यापक था और वह कोरा सैद्धांतिक न होकर जीवन से जुड़ा होता था.नाट्यशास्त्र, चरकसंहिता, अर्थशास्त्र, कामसूत्र और सूर्यसिद्धांत आदि अनेकानेक ग्रंथों में उपलब्ध होता है.

India Higher Education: भारत में उच्च शिक्षा का बड़ा समृद्ध प्राचीन इतिहास है जहां नालंदा, विक्रमशिला, ओदंतपुरी, तक्षशिला आदि कई विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों की श्रृंखला थी जहां अनेक विषयों का अध्यापन और अनुसंधान किया जाता था. ये सभी संस्थान समाज द्वारा पोषित किंतु व्यवस्था की दृष्टि से स्वायत्त थे. यहां के प्राध्यापक अपने विषयों के प्रामाणिक विद्वान थे और उनकी उपलब्ध कृतियां उनकी प्रतिभा और बुद्धि का कायल बनाती हैं. वैदिक ज्ञान परंपरा से जो धारा प्रवाहित हुई वह काल क्रम में ज्ञान की साधना को दिशा देती रही. इसका  प्रमाण ज्ञान का प्रतिमान स्वरूप अष्टाध्यायी, योगसूत्र, नाट्यशास्त्र, चरकसंहिता, अर्थशास्त्र, कामसूत्र और सूर्यसिद्धांत आदि अनेकानेक ग्रंथों में उपलब्ध होता है. दर्शन, धर्मशास्त्र, गणित, धातु-विद्या, साहित्य और कला आदि के क्षेत्रों में प्रचुर सामग्री आज भी उपलब्ध है.

यह निश्चित है कि अध्ययन का क्षेत्र अत्यंत व्यापक था और वह कोरा सैद्धांतिक न होकर जीवन से जुड़ा होता था. वह शिक्षा विद्यार्थी को व्यवसायों के लिए तैयार करती थी. यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि आधुनिक भारत में उच्च शिक्षा का वर्तमान रूप अंग्रेजी औपनिवेशिक काल की देन है जिसे योजनाबद्ध रूप में युक्तिपूर्वक प्रस्तुत और स्थापित किया गया.

यह शिक्षा को देश की ज्ञान-परंपरा से काट कर और उसे अप्रासंगिक बना कर लागू की गई. ज्ञान-सृजन और प्रसार की दृष्टि से शिक्षा अंग्रेजों द्वारा आरंभ की गई और उनके वर्चस्व के प्रभाव में स्वतंत्र भारत में भी कायम रही. यह उच्च शिक्षा ज्ञान के क्षेत्र में भारत को सदा के लिए दोयम बनाये रखने का पक्का नुस्खा बन गया. यह माॅडल ज्ञान की प्रक्रिया का भारतीय आदर्श बन गया और अभी तक जारी है.

लगातार अभ्यास के कारण दूसरे विकल्पों के प्रति हम उदासीन और तटस्थ होते गए. ज्ञान, कौशल और तकनीक के क्षेत्रों में परजीवी हो जाना स्वावलंबन और विकास के लक्ष्य के विरुद्ध जाता है. उद्यमिता और सामाजिक प्रासंगिकता की दृष्टि से भी यह माॅडल अधिक उपयोगी नहीं रहा. हमने स्थानीय प्रश्नों को भी दरकिनार रखा और वैश्विक संदर्भ के प्रति भी आवश्यकतानुसार संवेदनशील नहीं हो सके.

शिक्षा संस्थानों के विकास के लिए स्वायत्तता अत्यंत आवश्यक है. उच्च शिक्षा का आम माहौल युवा भारत के लिए चिंताजनक हो रहा है. नई शिक्षा नीति व्यवस्था, प्रक्रिया, विषयवस्तु, सांस्कृतिक परिष्कार तथा शिक्षा के माध्यम आदि को लेकर अनेक प्रस्ताव लेकर ज़रूर उपस्थित हुई परंतु उसके कार्यान्वयन में अनेक बाधाएं हैं.

भारतीय ज्ञान परंपरा और मातृभाषा में अध्ययन-अध्यापन को बढ़ावा देने के कार्य में कुछ प्रगति हुई है परंतु नीति के आने के चार साल बाद भी बहुत से सैद्धांतिक, व्यावहारिक और नीतिगत प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं. इनको यथाशीघ्र सुलझाना होगा. गुणवत्ता, मौलिकता और प्रासंगिकता के अभाव में विश्व पटल पर भारतीय शिक्षा की प्रभावकारी उपस्थिति नहीं हो सकेगी.  

टॅग्स :एजुकेशनEducation Department
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