देश के महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय पर की गई अपनी अनुचित टिप्पणी के लिए मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने माफी भले ही मांग ली हो लेकिन यह बेहद चिंताजनक बात है कि वोट बैंक की अपनी तुच्छ राजनीति के लिए हमारे नेता इस तरह से महापुरुषों पर कीचड़ उछालने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं. स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर आगर मालवा में शनिवार को हुए एक कार्यक्रम में परमार ने कहा था कि ‘राजा राममोहन राय एक ब्रिटिश एजेंट थे, उन्होंने देश में उनके दलाल के रूप में काम किया, उन्होंने धर्मांतरण का एक दुष्चक्र शुरू किया था.’
हालांकि विवाद बढ़ने पर परमार ने कहा कि उनके मुंह से गलती से यह निकल गया था लेकिन इतनी बड़ी बात कोई गलती से कैसे कह सकता है? परमार को पता हो या नहीं, लेकिन देश में स्कूली बच्चे भी जानते हैं राजा राममोहन राय ने हिंदू धर्म की कुरीतियों, जैसे कि सती प्रथा, बाल विवाह आदि का विरोध किया था. उनका उद्देश्य हिंदू धर्म में सुधार करना था, न कि लोगों को किसी दूसरे धर्म में परिवर्तित करना.
बेशक, महापुरुषों की कथनी और करनी का गंभीर आलोचनात्मक विश्लेषण किया जा सकता है लेकिन इतिहास के बारे में बिना कुछ पढ़े ही, किसी भी महापुरुष के बारे में कुछ भी कह देना क्या अपमानजनक नहीं है? महापुरुषों की छवि को मलिन करने की यह कोशिश कोई नई नहीं है. कभी महात्मा गांधी के बारे में कोई बेसिरपैर की बातें कह देता है, कभी जवाहरलाल नेहरू, कभी सरदार पटेल, कभी बाबासाहब आंडेबकर, कभी सावरकर तो कभी किसी अन्य बड़े नेता के बारे में.
कोई मामूली आदमी अगर ऐसी बातें करे तो फिर भी उसकी अनदेखी की जा सकती है लेकिन किसी प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री जैसे बड़े पद पर बैठे व्यक्ति के मुंह से ऐसी बातें निकलें तो उसे कैसे अनदेखा किया जाए? अक्सर राजनीतिक बहसों के दौरान विभिन्न दलों के नेता एक-दूसरे पर हमला करने के लिए महापुरुषों के बारे में अपमानजनक बयान देते हैं और अब तो सोशल मीडिया के उदय के साथ, अपमानजनक टिप्पणियां करना और उन्हें प्रसारित करना और भी आसान हो गया है.
ऑनलाइन मंचों पर अक्सर महापुरुषों को निशाना बनाया जाता है. इसलिए इन पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून बनाना और उन पर कड़ाई से अमल करना बेहद जरूरी है ताकि कोई महापुरुषों की छवि मलिन करके अपनी राजनीति चमकाने की शर्मनाक कोशिश न कर सके.