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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: बढ़ते प्रदूषण पर कैसे पाएं नियंत्रण?

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: November 7, 2022 16:02 IST

लोगों से कहा गया है कि वे मुखपट्टी का इस्तेमाल बढ़ाएं, घर के खिड़की-दरवाजे प्रायः बंद ही रखें और बहुत जरूरी होने पर ही बाहर निकलें। ये सब बातें तो ठीक हैं और मौत का डर ऐसा है तो इन सब निर्देशों का पालन लोग-बाग सहर्ष करेंगे ही लेकिन क्या प्रदूषण की समस्या इससे हल हो जाएगी?

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ठळक मुद्देभारत से ज्यादा ये अमेरिका, यूरोप और चीन में चलती हैं।दिल्ली में दो सरकारें हैं, वे निढाल साबित हो रही हैं। अब कुछ लोग सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा रहे हैं।

दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के सीमांत क्षेत्रों में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि इन प्रांतों ने तरह-तरह के प्रतिबंधों और सावधानियों की घोषणा कर दी है। जैसे बच्चों की पाठशालाएं बंद कर दी हैं, पुरानी कारें सड़कों पर नहीं चलेंगी, बाहरी ट्रक दिल्ली में नहीं घुस पाएंगे, सरकारी कर्मचारी ज्यादातर काम घर से ही करेंगे। 

लोगों से कहा गया है कि वे मुखपट्टी का इस्तेमाल बढ़ाएं, घर के खिड़की-दरवाजे प्रायः बंद ही रखें और बहुत जरूरी होने पर ही बाहर निकलें। ये सब बातें तो ठीक हैं और मौत का डर ऐसा है तो इन सब निर्देशों का पालन लोग-बाग सहर्ष करेंगे ही लेकिन क्या प्रदूषण की समस्या इससे हल हो जाएगी? ऐसा नहीं है कि खेती सिर्फ भारत में ही होती है और खटारा ट्रक और मोटरें भारत में ही चलती हैं। 

भारत से ज्यादा ये अमेरिका, यूरोप और चीन में चलती हैं। वहां हमसे ज्यादा प्रदूषण हो सकता है लेकिन वहां क्यों नहीं होता? क्योंकि वहां की जनता और सरकार दोनों सजग हैं। चीन ने पिछले कुछ साल में 40 प्रतिशत प्रदूषण कम किया है और हमारी दिल्ली प्रदूषण के रिकॉर्ड तोड़ रही है। दिल्ली में दो सरकारें हैं। वे निढाल साबित हो रही हैं। अब कुछ लोग सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा रहे हैं। 

प्रदूषण रोकने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया जाए, क्या यह बात किसी भी सरकार और जनता के लिए शोभनीय है? सरकारों ने इस दिशा में कुछ कोशिश जरूर की है। उन्होंने हजारों करोड़ रुपए की सहायता करके किसानों को मशीनें दिलवाई हैं ताकि वे पराली का चूरा करके उसे खेतों में दबा सकें लेकिन हमारे किसान भाई अपने घिसे-पिटे तरीकों से चिपटे हुए हैं। उनकी मशीनें पड़ी-पड़ी जंग खाती रहती हैं। पंजाब और हरियाणा में पिछले 15 दिनों में पराली जलाने के हजारों मामले सामने आए हैं लेकिन उनको दंडित करनेवाला कोई आंकड़ा कहीं प्रकट नहीं हो रहा है।

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