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ब्लॉग: ऑनलाइन गेम के चंगुल से कैसे छूटें बच्चे?

By ऋषभ मिश्रा | Updated: June 19, 2024 10:30 IST

कोरोना काल के बाद यह समस्या और भी ज्यादा विकराल हुई है। कोरोना के समय से बच्चों का ऑनलाइन गेमिंग में भागीदारी 41 फीसदी तक बढ़ी है।

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आज के तकनीकी युग में नित्य नए मोबाइल धारकों की बढ़ती संख्या पर हमारी व्यवस्था भले ही इठला ले कि 21 वीं सदी में हम अंगुलियों पर सब कुछ संभव बना रहे हैं, मगर शायद तकनीक में मशगूल होकर यह भूलते जा रहे हैं कि बालमन पर इसका बुरा असर भी पड़ रहा है। जो उम्र मैदानी खेल खेलने की होती है, वीर प्रतापी महापुरुषों की कहानियां सुनने की, किताबें पढ़ने की होती है, उस उम्र में हमारे युवा बच्चे ऑनलाइन गेम के चंगुल में बुरी तरह से जकड़े हुए हैं।

वस्तुतः ऑनलाइन गेम के प्रति युवाओं और बच्चों का बढ़ता झुकाव सिर्फ भारत की समस्या नहीं है. बीते कुछ वर्षों में दुनिया भर के बच्चों में इसे लेकर एक अलग प्रकार की दीवानगी पनपी है। जो कहीं न कहीं अब लत का रूप लेती जा रही है। अनेक अध्ययनों से पता चलता है कि बच्चों के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर इस लत का काफी बुरा असर पड़ रहा है। ‘एफआईसीसीआई’ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में ‘ट्रांजेक्शन बेस्ड गेम्स’ के राजस्व में 26 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। और यह संख्या आगे और भी ज्यादा बढ़ने की ओर अग्रसर है।

गौरतलब है कि वर्ष 2017 में ऑनलाइन गेमों की वजह से रूस में 130 से अधिक बच्चों की मौत हुई थी, तो वहीं भारत में करीब 100 बच्चों ने मौत को गले लगाया था। ऑनलाइन गेम्स को लेकर बच्चे इसके इतने आदी हो जाते हैं कि खाना-पीना तक छोड़ कर दिन-रात उसी में लगे रहते हैं। जिससे उनकी नींद भी प्रभावित होती है एवं उनमें चिड़चिड़ापन की समस्या भी बढ़ती है। एक आंकड़े के मुताबिक वर्तमान में भारत में करीब तीस करोड़ लोग ऑनलाइन गेम खेलते हैं। और 2028 तक यह संख्या बढ़कर 55 करोड़ हो जाने की संभावना है। वहीं एक अन्य आंकड़े की बात करें तो वर्तमान में देश में ऑनलाइन गेमिंग का बाजार करीब सात से दस हजार करोड़ रुपए के बीच है।

जिसके अगले एक साल में 29 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच जाने की उम्मीद है। इन आंकड़ों से ही स्थिति की भयावहता को समझा जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी ऑनलाइन गेम खेलने की लत को मानसिक अस्वस्थता की स्थिति माना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ऑनलाइन गेमिंग ‘कोकीन’ और ‘जुआ’ के समान ही एक लत हो सकती है।

कोरोना काल के बाद यह समस्या और भी ज्यादा विकराल हुई है। कोरोना के समय से बच्चों का ऑनलाइन गेमिंग में भागीदारी 41 फीसदी तक बढ़ी है। साथ ही ऑनलाइन गेम का चस्का एकल परिवार के बच्चों में ज्यादा देखने को मिला है। यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि ऑनलाइन गेम्स में पड़ कर बच्चे आक्रामक और हिंसक भी बनते जा रहे हैं।

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