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भारत-श्रीलंका द्विपक्षीय रिश्ते में तमिल फैक्टर कितना महत्वपूर्ण?

By शशिधर खान | Updated: February 7, 2023 15:48 IST

भारत-श्रीलंका द्विपक्षीय रिश्ते में सबसे अहम फैक्टर है तमिल मुद्दा. भारत के प्रधानमंत्री या कोई राजनयिक जब भी श्रीलंका जाते हैं, वहां की सरकार के साथ तमिलों के अधिकारों की बात जरूर उठाते हैं

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श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि अल्पसंख्यक तमिलों को सत्ता में भागीदारी का अधिकार देनेवाला 13वां संविधान संशोधन लागू करना उनका कर्तव्य है. विक्रमसिंघे पहले श्रीलंकाई राष्ट्रपति हैं जिन्होंने संसद भवन में सर्वदलीय बैठक के बाद कहा-‘मैं राष्ट्रपति के रूप में यह कानून लागू करने के कर्तव्य से बंधा हूं और अगर कोई इस संशोधन 13A के कार्यान्वयन का विरोध करता है, तो संसद को इस कानून को अवश्य ही समाप्त कर देना चाहिए.’

राष्ट्रपति ने संविधान से प्राप्त अधिकार का उपयोग करते हुए संसद का मौजूदा सत्र 8 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दिया. अब संसद सत्र फिर से आधिकारिक तौर पर 8 फरवरी को शुरू होगा. असाधारण परिस्थितियों में ही राष्ट्रपति को ऐसा निर्णय लेना होता है. 

संसद सत्र समाप्त करने से पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति ने इस बात को दुहराया कि 13A संविधान संशोधन अपने मौजूदा स्वरूप में ही लागू होगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो संसद इस कानून को खत्म करने का कदम अवश्य उठाए.

भारत समर्थित श्रीलंका का 13 संविधान संशोधन 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते की उपज है, जो मुख्य रूप से अल्पसंख्यक तमिलों को नागरिक के रूप में सत्ता में भागीदारी और समानता का अधिकार देने के लिए लाया गया था. उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जे. आर. जयवर्द्धने के बीच यह करार हुआ था कि श्रीलंका में रह रहे भारतीय मूल के तमिलों को बहुसंख्यक सिंहलियों के समान अधिकार मिलना चाहिए. 

1987 में हुए इस भारत-श्रीलंका समझौते के बाद श्रीलंका ने 13वां संविधान संशोधन लाया तो, मगर आज तक किसी सरकार ने इस कानून को लागू नहीं किया.

श्रीलंका में गत वर्ष भीषण आर्थिक संकट के समय उठे जबर्दस्त जनआक्रोश के बाद विक्रमसिंघे राष्ट्रपति बने. यह बात उन्होंने वैसे माहौल में दुहराई है, जब भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने हालिया श्रीलंका दौरे के क्रम में 13वां संशोधन लागू करने पर बल दिया.

भारत-श्रीलंका द्विपक्षीय रिश्ते में सबसे अहम फैक्टर है तमिल मुद्दा. भारत के प्रधानमंत्री या कोई राजनयिक जब भी श्रीलंका जाते हैं, वहां की सरकार के साथ तमिलों के अधिकारों की बात जरूर उठाते हैं. ठीक उसी तरह श्रीलंका के कोई राजनयिक जब भारत आते हैं तो तमिल मामले का जिक्र किसी-न-किसी रूप में करते हैं. 

रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं. वे एकमात्र सिंहली नेता हैं, जिन्हें तमिलों का हितैषी माना जाता है. विक्रमसिंघे राजनयिक के रूप में भारत यात्रा के दौरान तमिलनाडु जाकर वहां की भावनाओं पर मरहम लगा आए हैं.

टॅग्स :Ranil WickremesingheSri Lanka
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