ब्लॉगः भाजपा सबसे बड़े समुदाय लिंगायत के परंपरागत समर्थन के बावजूद कर्नाटक चुनाव कैसे हार गई?

By राजकुमार सिंह | Published: May 16, 2023 09:10 AM2023-05-16T09:10:43+5:302023-05-16T09:10:55+5:30

2018 के विधानसभा चुनाव में 104 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी भाजपा जोड़तोड़ से सरकार बनाने और लगभग चार साल तक चलाने के बावजूद इस बार कांग्रेस से आधी से भी कम सीटों पर सिमट गई तो जाहिर है, सारे समीकरण उसके विरुद्ध गए।

How did BJP lose Karnataka elections despite the traditional support of the largest community Lingayats | ब्लॉगः भाजपा सबसे बड़े समुदाय लिंगायत के परंपरागत समर्थन के बावजूद कर्नाटक चुनाव कैसे हार गई?

ब्लॉगः भाजपा सबसे बड़े समुदाय लिंगायत के परंपरागत समर्थन के बावजूद कर्नाटक चुनाव कैसे हार गई?

दक्षिण भारत में भाजपा का प्रवेश द्वार बने कर्नाटक ने ही उसे जोरदार झटका दिया है। उबरने में समय लगेगा, पर समय बहुत ज्यादा है नहीं। इसी साल उत्तर भारत के तीन और दक्षिण भारत के एक राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। उसके छह महीने के अंदर ही अगले लोकसभा चुनाव भी होंगे। भाजपा के लिए अच्छी बात यह है कि केंद्र समेत कई राज्यों की सत्ता उसके पास है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सरीखे अति सक्रिय और आक्रामक नेता भी उसके पास हैं। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विशाल नेटवर्क के अलावा बूथ और पन्ना प्रमुख तक फैला संगठन भी भाजपा के पास है ही, जिससे नीति-रणनीति में बदलाव और अमल आसान हो जाता है, पर इस सबके बावजूद कर्नाटक में लगा झटका बताता है कि सही इलाज के लिए समय रहते बीमारी की पहचान भी जरूरी है। 2018 के विधानसभा चुनाव में 104 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी भाजपा जोड़तोड़ से सरकार बनाने और लगभग चार साल तक चलाने के बावजूद इस बार कांग्रेस से आधी से भी कम सीटों पर सिमट गई तो जाहिर है, सारे समीकरण उसके विरुद्ध गए। कर्नाटक के सबसे बड़े समुदाय लिंगायत के परंपरागत समर्थन और आक्रामक चुनाव प्रचार के बावजूद ऐसा कैसे हो गया?
 
कर्नाटक को दक्षिण में सत्ता का प्रवेश द्वार बनानेवाले सबसे बड़े लिंगायत नेता येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटा कर भाजपा ने अपने परंपरागत समर्थक वर्ग को दरकने दिया। लिंगायत बेल्ट में कांग्रेस ने 50 में से 33 सीटें जीती हैं, जबकि पिछली बार उसे मात्र 16 सीटें मिली थीं। ध्यान रहे कि पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार भी इसी समुदाय से आते हैं, जिन्होंने भाजपा का टिकट न मिलने पर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी को भी ऐसा ही करना पड़ा। बेशक भाजपा ने एक और लिंगायत बसवराज बोम्मई को ही मुख्यमंत्री बनाया, पर वह जन नेता साबित नहीं हुए। दूसरी ओर कांग्रेस के पास डी.के. शिवकुमार के रूप में वोक्कालिगा और सिद्धारमैया के रूप में कुरुबा समुदाय के बड़े नेता पहले से थे, तो शेट्टार के आने से कुछ लिंगायत समर्थन भी मिला। जाहिर है, जनादेश येदियुरप्पा और बोम्मई के नेतृत्व में चली भाजपा सरकारों के कामकाज पर भी टिप्पणी है।

चंद महीनों में हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक दूसरा राज्य है, जहां की सत्ता कांग्रेस ने भाजपा से छीनी है। दोनों ही राज्यों में समान कारक यह रहा कि गुटबाजी के लिए बदनाम कांग्रेस एकजुट होकर मैदान में उतरी और स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा। भाजपा को भी समझ आ गया होगा कि स्थानीय नेतृत्व को दरकिनार कर राज्य के चुनाव नहीं जीते जा सकते।

Web Title: How did BJP lose Karnataka elections despite the traditional support of the largest community Lingayats

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे