सबको होना चाहिए भारतीय होने पर गर्व, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 30, 2021 01:25 PM2021-08-30T13:25:14+5:302021-08-30T13:27:01+5:30
यूरोप और अमेरिका में हिंदू बहुसंख्या में नहीं हैं लेकिन उदारता के वहां वे सब लक्षण विद्यमान हैं, जो भारत में हैं. लेकिन पटेल का इशारा कुछ दूसरी तरफ है.
गुजरात के उपमुख्यमंत्नी नितिन पटेल ने अपने एक भाषण में बड़ी विचारोत्तेजक बहस छेड़ दी. उन्होंने सवाल उठाया कि यदि भारत में हिंदुओं की बहुसंख्या नहीं होती तो क्या होता?
उन्होंने कहा कि यदि वैसा होता तो देश में न कोई धर्म-निरपेक्षता होती, न कानून का राज होता, न संविधान होता और न ही कोई मानव अधिकार होते. पटेल के इस कथत का आंतरिक अर्थ यह हुआ कि भारत हिंदू राष्ट्र है. इसीलिए यह वैसा है जैसा कि ऊपर बताया गया है.
इसी कथन का दूसरा पहलू यह है कि दुनिया के जिन राष्ट्रों में दूसरे मजहबियों का बहुमत है, वहां की शासन-व्यवस्थाओं में वे सभी खूबियां नदारद हैं, जो भारत में हैं! नहीं, ऐसा नहीं है. यूरोप और अमेरिका में हिंदू बहुसंख्या में नहीं हैं लेकिन उदारता के वहां वे सब लक्षण विद्यमान हैं, जो भारत में हैं. लेकिन पटेल का इशारा कुछ दूसरी तरफ है.
उनका असली प्रश्न यह है कि यदि भारत मुस्लिम बहुसंख्यक देश होता तो क्या यहां वे सब स्वतंत्नताएं होतीं जो आज हैं? उन्होंने साथ-साथ यह भी कह दिया कि भारत के मुसलमान और ईसाई देशभक्त हैं. इसमें कोई भी संदेह नहीं है.
उनका यह कथन अफगानिस्तान की वर्तमान उथल-पुथल के संदर्भ में हो सकता है, लेकिन मैंने स्वयं अफगानिस्तान, ईरान, दुबई, इराक और लेबनान जैसे देशों में अब से 50-55 साल पहले अपनी आंखों से देखा है कि उन देशों में कई लोगों की जीवन-पद्धति भारतीय भद्रलोक से भी ज्यादा आधुनिक थी.
इन देशों के गैर-इस्लामी लोग कुछ अतियों की शिकायत जरूर करते थे लेकिन कुल मिलाकर वे भारत के अल्पसंख्यकों की तरह खुश दिखाई पड़ते थे. यहां तक कि जिन्ना और भुट्टो के मंत्रिमंडल में कुछ हिंदू भी थे. अफगान बादशाह अमानुल्लाह की सरकार में कई हिंदू काफी बड़े पदों पर रहे हैं. लेकिन यह बात भी सच है कि भारत-जैसी धर्म-निरपेक्षता दुनिया में और कहीं नहीं रही है. हम लोगों को, चाहे हम हिंदू हों, मुसलमान हों, ईसाई हों, हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हम भारतीय हैं.