ब्लॉग: भ्रष्टाचार पर वार कहीं राजनीतिक हथियार तो नहीं बन गया
By राजकुमार सिंह | Published: February 7, 2024 11:36 AM2024-02-07T11:36:39+5:302024-02-07T11:40:47+5:30
झारखंड में चंपई सोरेन सरकार द्वारा बहुमत साबित कर देने के बाद उन सवालों की गूंज और भी तेज सुनाई पड़ेगी, जो राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन द्वारा शपथ ग्रहण का न्यौता देने में दो दिन लगाने पर उठे थे। जबकि पड़ोसी बिहार में राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने पांच घंटे में ही ‘पालाबदल मुख्यमंत्री’ नीतीश कुमार को पुन: शपथ दिलवा दी थी।
झारखंड में चंपई सोरेन सरकार द्वारा बहुमत साबित कर देने के बाद उन सवालों की गूंज और भी तेज सुनाई पड़ेगी, जो राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन द्वारा शपथ ग्रहण का न्यौता देने में दो दिन लगाने पर उठे थे। जबकि पड़ोसी बिहार में राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने पांच घंटे में ही ‘पालाबदल मुख्यमंत्री’ नीतीश कुमार को पुन: शपथ दिलवा दी थी।
मुख्यमंत्री पद से हेमंत सोरेन के इस्तीफे के बाद महागठबंधन विधायक दल का नेता चुने गए चंपई ने 47 विधायकों के लिखित समर्थन के साथ सरकार बनाने का दावा किया था। जब राज्यपाल ने विधायकों को मुलाकात का समय नहीं दिया, तब अपनी गिनती का वीडियो भी उन्होंने जारी किया, लेकिन राधाकृष्णन ने शपथ का न्यौता देने में दो दिन लगाए़।
हालांकि राज्यपाल ने 10 फरवरी तक का समय दिया था, लेकिन चंपई ने पांच फरवरी को ही बहुमत साबित कर दिया। चंपई सरकार को 47 मत ही मिले, जितने का दावा किया गया था। राज्यपालों की भूमिका पर सवाल देश में पहली बार नहीं उठे हैं। विडंबना है कि व्यवस्था परिवर्तन के वायदों के साथ होने वाले सत्ता परिवर्तनों से भी बदलता कुछ नहीं। स्वार्थ की खातिर दलबदल करनेवाले सफेदपोशों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। जिस विचारधारा की कभी बात होती थी, वह सत्ता की धारा में गुम हो चुकी है।
विपक्ष का आरोप है कि केंद्रीय सत्ता में अपनी ‘हैट्रिक’ सुनिश्चित करने के लिए भाजपा सरकार चुनाव से पहले ज्यादातर विपक्षी नेताओं को पीएमएलए कानून के तहत जेल भेज देना चाहती है, जिसमें जमानत आसान नहीं, क्योंकि जांच एजेंसी पर दोषसिद्धि के बजाय आरोपी पर ही खुद को निर्दोष सिद्ध करने की जिम्मेदारी होती है।
पूरी व्यवस्था के लिए ही नासूर बन चुके भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए कठोरतम कानून की जरूरत से इनकार नहीं, लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसियों को औजार बना कर राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने की साजिश अगर मूल में है तो देश को भारी दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
हेमंत के आदिवासी कार्ड समेत विपक्ष की इस पीड़ित मुद्रा का चुनाव में क्या प्रभाव होगा। यह तो परिणाम ही बताएंगे, लेकिन राजनेताओं के विरुद्ध दर्ज मामलों में 95 प्रतिशत विपक्षी नेताओं के विरुद्ध होने तथा दोषसिद्धि दर बहुत कम होने से केंद्रीय जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगते हैं।
वैसे यूपीए शासनकाल में भी स्थितियां ज्यादा अलग नहीं थीं। विडंबना यह भी है कि विपक्ष अपने नेताओं के विरुद्ध आरोपों को तथ्यों के आधार पर गलत साबित करने के बजाय उन नेताओं के विरुद्ध जांच ठप पड़ जाने पर सवाल खड़े करता है, जो दल बदलते ही ‘नेचुरली करप्ट’ से ‘मोस्ट फेवरिट’ हो गए- और उस सवाल का जवाब कहीं से नहीं आता।