हरीश गुप्ता का ब्लॉग: सुशांत मामले में एनसीबी पर टिकी उम्मीदें!
By हरीश गुप्ता | Updated: September 3, 2020 13:02 IST2020-09-03T13:02:47+5:302020-09-03T13:02:47+5:30
सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत के मामले में जो जांच जारी हैं, उसमें फिलहाल सीबीआई और ईडी दोनों ही एजेंसियों को कोई खास सफलता नहीं मिली है. वहीं, एनसीबी के पास तत्काल गिरफ्तारी के आधार हैं.

सुशांत मामले में एनसीबी पर टिकी उम्मीदें! (फाइल फोटो)
दिल्ली में सत्ता के जो केंद्र सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत के मामले की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं, वे सीबीआई और ईडी द्वारा की जा रही जांच से बेहद निराश हैं. दोनों एजेंसियां अभी भी अंधेरे में हैं. सीबीआई के साथ समस्या यह है कि उसके पास मामलों को संभालने का अपना ट्रैक रिकॉर्ड है.
इससे हो सकता है राजनीतिक दबाव के कारण कुछ दोषियों को छोड़ दिया हो या कुछ मामलों में देरी की हो लेकिन इसने कभी भी निर्दोष लोगों को फंसाया नहीं है. कम से कम 40 साल तक एजेंसी को कवर करने के दौरान मेरी जानकारी में तो ऐसा नहीं आया है. हो सकता है ईडी ज्यादा लाइमलाइट बटोर रही हो. लेकिन अभियोजन में इसका बहुत खराब रिकॉर्ड है.
अंत में, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने कदम रखा, जो सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है. इसके वर्तमान प्रमुख राकेश अस्थाना अमित शाह के दाहिने हाथ हैं. सुशांत सिंह राजपूत के मामले में बॉलीवुड की ‘मसाला मूवी’ की सभी सामग्री शामिल है जिसमें ड्रग्स, सेक्स, विदेशों की सैर, पैसा आदि शामिल है.
एनसीबी के पास तुरंत गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त आधार है क्योंकि चैट के आधार पर ‘ड्रायफ्रूट’ के नाम पर ड्रग सप्लायर्स को लाखों रु. के पेमेंट किए जाने की बात सामने आई है. इसकी कथित सूत्रधार रिया एंड कंपनी है. पता चला है कि अगर सीबीआई और ईडी वांछित परिणाम देने में असमर्थ होती हैं तो एनसीबी कार्रवाई में जुट जाएगी.
एनसीबी अपने ड्रग मामले को सीबीआई को हस्तांतरित कर सकती है जो तुरंत इसके सभी खिलाड़ियों को गिरफ्तार कर सकती है और ‘आहत राष्ट्र’ को शांत कर सकता है.
कांग्रेस के संकट का फिल्मी कनेक्शन
समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन का कांग्रेस के आंतरिक संकट से क्या लेना-देना है? गांधी और बच्चन परिवार तीन दशक पहले ही अलग हो गए थे और उनके बीच बातचीत भी नहीं थी. लेकिन बॉलीवुड की सबसे सफल पूर्व अभिनेत्री ने शायद अनजाने में ही वर्तमान संकट को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
पिछले साल संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान एक भाजपा सांसद ने दिवंगत राजीव गांधी की अत्यधिक असंसदीय भाषा में आलोचना शुरू कर दी थी. वहां मौजूद जया बच्चन ने इस्तेमाल की जाने वाली अनुचित भाषा का कड़ा विरोध किया. यहां तक कि उन्होंने विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद तक भी यह बात पहुंचाई. आजाद ने शायद उनकी चिंताओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया. लेकिन जया हार मानने वाली नहीं थीं और उन्होंने अपनी बात मनवा कर ही दम लिया.
अगले दिन सोनिया गांधी ने उन्हें धन्यवाद देने के लिए फोन किया. लेकिन सोनिया गांधी कथित रूप से आजाद के रवैये से बेहद परेशान थीं. कुछ माह बाद, मल्लिकार्जुन खड़गे को राज्यसभा में लाया गया और आजाद को टिकट से भी वंचित कर दिया गया.
ऐसी खबरें हैं कि खड़गे फरवरी 2021 में आजाद का कार्यकाल खत्म होने के बाद नेता प्रतिपक्ष बन सकते हैं. आनंद शर्मा का आजाद का स्थान लेने का सपना भी धराशायी हो गया. दोनों अब जी-23 का हिस्सा हैं जिन्होंने गांधी परिवार के खिलाफ पत्र पर हस्ताक्षर किए. इस सब में जया का कोई हाथ नहीं था.
फेरबदल के लिए करना होगा इंतजार
भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के निराश होने के लिए कारण है. एक तो यह कि वे एक साल के लिए अपनी संगठनात्मक टीम का फिर से गठन करने में सक्षम नहीं है; दूसरा, वे तख्तापलट करके कांग्रेस के जबड़े से राजस्थान छीनने में नाकाम रहे. यह अलग बात है कि वे राजस्थान मामले को सीधे नहीं संभाल रहे थे.
संगठनात्मक परिवर्तन सीधे मंत्रिमंडल के परिवर्तनों से जुड़े होते हैं. कम से कम जब से मोदी ने दिल्ली में सत्ता की बागडोर संभाली है, तब से यह परंपरा है. शायद, पीएम ने अपने 65 मंत्रियों की टीम में फेरबदल करने का मन नहीं बनाया है. अब ‘श्राद्ध’ पक्ष आ गया है और इसके बाद संसद सत्र शुरू होगा. चाहे वह पश्चिम बंगाल भाजपा हो, मुकुल रॉय हों, मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या भूपेंद्र यादव हों या जनता दल (यू) के आकांक्षी हों, सभी को इंतजार करना होगा.