गुजरात दंगा: 22 साल पुराना मामला...सुप्रीम कोर्ट को तल्ख टिप्पणियां करने की जरूरत क्यों पड़ी?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: June 27, 2022 19:11 IST2022-06-27T19:10:09+5:302022-06-27T19:11:43+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें 2002 के गुजरात दंगे के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 59 लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) से मिली क्लीन चिट को चुनौती दी गई थी. साथ ही कोर्ट ने काफी तल्ख टिप्पणियां भी की। 

Gujarat riots: 22 years old case, why did the Supreme Court gave harsh comments | गुजरात दंगा: 22 साल पुराना मामला...सुप्रीम कोर्ट को तल्ख टिप्पणियां करने की जरूरत क्यों पड़ी?

गुजरात दंगा: सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की तल्ख टिप्पणियां (फाइल फोटो)

बीते शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी की याचिका को खारिज कर दिया. इस याचिका में 2002 के गुजरात दंगे के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 59 लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) से मिली क्लीन चिट को चुनौती दी गई थी. 

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले के बाद मामले को दोबारा शुरू करने के सभी रास्ते बंद कर दिए. लगभग 22 साल पुराने मामले और उसकी जांच को लेकर अनेक बार सवाल उठते रहे हैं. पूर्व सांसद की पत्नी को आगे कर लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही थी, जो एक सीमा के बाद अदालत को नागवार गुजरी. उसने याचिकाकर्ताओं और मामले को लेकर कई तल्ख टिप्पणियां कीं. 

अदालत का कहना था कि इस मामले में 2006 से कार्यवाही चल रही है. इसमें शामिल हर पदाधिकारी की ईमानदारी पर सवाल खड़े करने की हिमाकत हुई ताकि गुप्त उद्देश्य के लिए मामले को गरमाए रखा जा सके. इसलिए जो प्रक्रिया का इस तरह से गलत इस्तेमाल करते हैं, उन्हें कठघरे में लाकर कानून के दायरे में कार्रवाई की जानी चाहिए. 

स्पष्ट है कि अदालत लगातार अपने समक्ष किसी एजेंडे के तहत लाए जा रहे मामलों की सुनवाई से तंग आ रही है. उनसे अनेक लंबित मामलों की सुनवाई में भी देरी होती है. कहीं विचारधारा और कहीं विरोध के लिए विरोधी मानसिकता बना कर सरकार पर हमले करने की परंपरा चल पड़ी है. अनेक स्वयंसेवी संगठन इस काम को बखूबी अंजाम देते हैं. इनसे सामान्य गतिविधियों को बाधा तो पहुंचती है, साथ ही निराशा का वातावरण तैयार होता है. 

इसलिए कहीं न कहीं मर्यादा को रेखांकित करना जरूरी है. सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई के दौरान रेखा तो खींची ही, साथ ही संकेतों से समस्या की जड़ों की ओर भी इशारा कर दिया. अदालत के फैसले के बाद एनजीओ संचालक तीस्ता सीतलवाड़ गिरफ्तार कर ली गई हैं, जो जाफरी के मामले में परदे के पीछे से काम कर रही थीं. 

हालांकि उन पर आरोप अलग हैं, मगर अदालत की टिप्पणी के बाद उदाहरण के रूप में उनका नाम लिया जा सकता है. यूं तो सर्वोच्च संस्था और व्यक्तियों पर सवाल उठाना लोकतंत्र में कोई अपराध नहीं है. अक्सर विसंगतियों को लेकर लड़ाइयां भी लड़ी जाती हैं किंतु उनकी एक सीमा होती है. 

अन्याय और असंतोष को एक स्तर तक स्वीकार किया जा सकता है. उसको लेकर अंतहीन एजेंडा नहीं चलाया जा सकता. कहीं किसी मोड़ पर किसी फैसले को स्वीकार करना होगा. हर बात पर असहमति न्याय की आस को क्षीण भी तो कर सकती है.  

Web Title: Gujarat riots: 22 years old case, why did the Supreme Court gave harsh comments

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