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ब्लॉगः गुजरात में 35 फीसदी लोग सरकार के काम से खासे नाराज पर एंटीइनकम्बेंसी होते हुए भी आगे क्यों है भाजपा ?

By अभय कुमार दुबे | Updated: October 12, 2022 15:21 IST

सर्वेक्षण बताता है कि बाकी वोटरों में से 35 फीसदी हिस्सा ऐसा है जो सरकार तो नहीं बदलना चाहता, लेकिन भाजपा सरकार के कामकाज से नाराज वह भी है। यानी सत्तर फीसदी लोग साफ तौर से इस सरकार को एक अच्छी सरकार नहीं मानते।

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एक न्यूज चैनल के लिए सी-वोटर्स नामक संस्था द्वारा किए गए सर्वेक्षण का सबसे रोचक आंकड़ा उस समय सामने आता है जब गुजरात की वर्तमान भाजपा सरकार के कामकाज के बारे में लोगों से सवाल पूछे जाते हैं। जवाब में पता चलता है कि राज्य के 35 फीसदी लोग सरकार के काम से इतने नाराज हैं कि उसे बदल डालना चाहते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि बाकी 65 फीसदी लोग इस सरकार से नाराज नहीं हैं। दरअसल, सर्वेक्षण बताता है कि बाकी वोटरों में से 35 फीसदी हिस्सा ऐसा है जो सरकार तो नहीं बदलना चाहता, लेकिन भाजपा सरकार के कामकाज से नाराज वह भी है। यानी सत्तर फीसदी लोग साफ तौर से इस सरकार को एक अच्छी सरकार नहीं मानते। तो क्या बचे हुए तीस फीसदी इससे पूरी तरह खुश हैं? नहीं। इनमें से भी महज बाईस फीसदी लोग ही सरकार से प्रसन्न निकले। बाकियों ने कहा कि वे इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकते।

आंकड़े बताते हैं कि पटेलों और द्विज जातियों में भाजपा को जबरदस्त समर्थन मिलने की संभावना है। लेकिन इनकी संख्या कितनी है? ये तो गुजरात के मतदाता मंडल का एक चौथाई हिस्सा ही बनाते हैं। पटेल कोई 14-15 फीसदी होंगे। राजपूत छह, ब्राह्मण दो, वैश्य दो और जैन एक फीसदी हैं। यानी कुल पच्चीस फीसदी। इस भाजपा विरोधी गोलबंदी का केंद्र ओबीसी जातियों, दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों में बन जाता है।

तो फिर सवाल है कि सत्तर फीसदी एंटीइनकम्बेंसी होते हुए भाजपा इतनी ज्यादा जीतते हुए कैसे दिख रही है? इसका पहला कारण तो उन 35 फीसदी वोटरों में देखा जा सकता है जो नाराज होने के बावजूद सरकार नहीं बदलना चाहते। जाहिर है कि उन्हें विकल्प या तो दिख नहीं रहा है, या दिख रहा है तो पसंद नहीं आ रहा है। सरकार विरोधी वोट कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच बंटने के कारण भाजपा को लाभ मिलते हुए दिखता है। चुनावी दृष्टि से चार भागों में बंटे (सौराष्ट्र, कच्छ, उत्तर और दक्षिण गुजरात) प्रदेश के हर हिस्से में अगर कांग्रेस के संभावित वोट आप के संभावित वोटों से जोड़ दिए जाएं तो वे भाजपा के संभावित वोटों से आगे निकल जाते हैं। अगर आखिर तक ऐसी ही स्थिति बनी रही तो इस विभाजन से भाजपा सरकार की वापसी हो सकती है। लेकिन, अगर महीने-डेढ़ महीने में सरकार विरोधी भावनाओं की राजनीतिक अभिव्यक्ति किसी एक ध्रुव पर होने की तरफ बढ़ी तो भाजपा के लिए संकट पैदा हो सकता है। दूसरी तरफ अगर आप ने सरकार विरोधी वोट अपनी तरफ आकर्षित करने में सफलता प्राप्त की, तो वह न केवल कांग्रेस के अस्तित्व के लिए दिल्ली जैसा खतरा पैदा कर सकती है, बल्कि भाजपा से भी वोट छीनते हुए दिखेगी।

टॅग्स :गुजरातBJPआम आदमी पार्टीकांग्रेस
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