गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: कोरोना के डर से जीवन पद्धति में आ रहा सकारात्मक बदलाव

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: April 29, 2020 05:23 IST2020-04-29T05:23:46+5:302020-04-29T05:23:46+5:30

आजकल संक्रमण से बचने की कोशिश करते हुए जो भी सामान घर लाया जाता है उसे धो-पोंछ कर और डिसइनफेक्ट करने के बाद ही काम में लाया जाता है. हर चीज को स्वच्छ और शुद्ध रखना कोरोना यानी मृत्यु से दूर रखेगा और जीवन को सुनिश्चित करेगा.

Girishwar Mishra's blog: A positive change in life pattern due to fear of Corona | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: कोरोना के डर से जीवन पद्धति में आ रहा सकारात्मक बदलाव

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: कोरोना के डर से जीवन पद्धति में आ रहा सकारात्मक बदलाव

दूर देश से सैलानियों के साथ पहुंची कोरोना की वैश्विक महाआपदा ने निजी और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर  विचार करने को मजबूर कर दिया है कि हम जिएं तो कैसे जिएं? और जीने का जो ढर्रा हमने अपनाए रखा था वह ठीक था क्या? जिस अनिवार्यता के साथ आज पाबंदियों के बीच जीने के लिए सभी मजबूर हो चले हैं वह  जीवनशैली लॉकडाउन के पहले के सामान्य या औसत जीवन के सामने बेहद आदिम (प्रिमिटिव) ठहरती है. 

आधुनिक होने की राह पर चलते हुए हमने तो यही सीखा था कि कैसे अधिकाधिक का संचय और ज्यादा से ज्यादा उपभोग किया जाए. यानी लोभ और चीजों को बटोरते जाना ही सभ्य और सुसंस्कृत होने का हमने अपना लक्षण मान लिया था. सच कहें तो बाजार हमारे विचार, व्यवहार, स्वभाव और आदर्श सबका नियामक बन गया था. परंतु बाजार जितना ही आकर्षक है उतना ही ज्यादा कोरोना जैसे संक्रमण से भी जुड़ा हुआ है. अनिवार्य लॉकडाउन के दौर में बाजार वीरान हैं और बंद पड़े हैं इसलिए महामारी के दौर में बाजार पर बड़ा बुरा असर पड़ रहा है.

 आजकल संक्रमण से बचने की कोशिश करते हुए जो भी सामान घर लाया जाता है उसे धो-पोंछ कर और डिसइनफेक्ट करने के बाद ही काम में लाया जाता है. हर चीज को स्वच्छ और शुद्ध रखना कोरोना यानी मृत्यु से दूर रखेगा और जीवन को सुनिश्चित करेगा. आधुनिकतावादी भारतीय मन का एक प्रचलित संस्करण अभी तक शुचिता को आडंबर और परंपरा का एक दकियानूसी अवशेष मानता आ रहा था. 

आज इस थोथी मानसिकता की व्यर्थता उजागर होने  लगी है जब किसी भी बाहरी वस्तु से स्पर्श का तत्काल परिमार्जन किया जाता है. यहां तक कि खुद अपने ही शरीर के अंग का स्पर्श भी वर्जित है. खास तौर पर मुंह, नाक और आंख से स्पर्श को ध्यानपूर्वक रोकना है. इस तरह का प्रतिबंध तो भारतीय जीवन-विधान में स्वत: स्वीकृत था. शुचिता का विचार पवित्नता से जुड़ा है और पवित्नता से चैतन्य का मार्ग प्रशस्त होता है.

आज चीजों के अंधाधुंध उपयोग और उपभोग की आदत पर बंदिश लग रही है. संतोष की भावना के साथ कैसे जीवन जिया जाए यह विचार न केवल सबके मन में चल रहा है बल्कि दैनंदिन प्रयोग में लाया जा रहा है. अब लोग आवश्यक और अनावश्यक जरूरतों के बीच भेद करने लगे हैं. 

अब दुकान देख कर शॉपिंग नहीं हो रही है बल्कि महीने में लगने वाले जरूरी सामान की सूची तैयार कर ‘होम डिलीवरी’ के लिए कहा जाता है और भुगतान डिजिटल माध्यम से किया जाता है. कोशिश यही रहती है कि सीधा संपर्क कम से कम हो. संतोष अब जीवन का नियम बन रहा है. संतोष का एक और असर दिख रहा है. इस तरह के बदलाव के साथ  हमारा परिवेश भी बदल रहा है. जल और वायु का प्रदूषण भी घट रहा है. धरती और आकाश का स्वास्थ्य सुधर रहा है.  
तेज रफ्तार जीवन में कोरोना ने लगाम लगाई है. जिंदगी में एक पड़ाव या ठौर आ रहा है जब लोग थोड़ा ठहर कर, सहम कर जीवन, जगत और खुद अपने बारे में भी सोचने लगे हैं. शायद रोज की घुड़दौड़ में अपने आप से दूर होते लोगों को अपने करीब आने का भी मौका मिला है. समृद्ध देशों में मानव जीवन की क्षणभंगुरता दहशत में डाल रही है. दुनिया की अनित्यता भी दिखने लगी है. 

आत्म-विचार के साथ धर्म, ध्यान, अध्यात्म, समाज-सेवा आदि अच्छे आचरण की ओर भी लोगों का रुझान बढ़ने लगा है.  मानवता की सेवा में जुटे डॉक्टर, नर्स, सफाई कर्मी पुलिस और अन्य अधिकारियों की निव्र्याज सेवा भावना को देख कर मनुष्य होने की सार्थकता की नई समझ भी बन रही है. मन में यह भाव दृढ़ होता जा रहा है कि सदाचार ही समाज की आधारशिला का काम कर सकता है.

आज स्वच्छता, संतोष और सदाचार के प्रति आकर्षण की जो प्रवृत्ति दिख रही है वह कोरोना के खौफ में जगी है और प्राण रक्षा के लिए मजबूरी सी है. फिर भी यह बात तो है कि यदि इच्छाशक्ति हो तो हम आत्मनियमन कर सकते हैं. स्वस्थ और समृद्ध जीवन के लिए इन सकारात्मक प्रवृत्तियों को हमें अपने स्वभाव का सहज हिस्सा बनाना होगा.

Web Title: Girishwar Mishra's blog: A positive change in life pattern due to fear of Corona

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