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गौरीशंकर राजहंस का ब्लॉग: नेपाल में सत्ता परिवर्तन और भारत से रिश्ते के मायने

By गौरीशंकर राजहंस | Updated: July 17, 2021 12:57 IST

नेपाल भले ही छोटा देश है लेकिन वहां की 80 प्रतिशत जनता हिंदू धर्म को मानती है और इसलिए भारत से उनका बहुत बड़ा लगाव भी है. सदियों से भारत और नेपाल के बीच लोगों का आना जाना लगा रहा है.

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नेपाल में राजनीति पल-पल में बदल रही है.  शेर बहादुर देउबा के.पी. शर्मा ओली की जगह अब नेपाल के नए प्रधानमंत्री बन गए हैं.  सुप्रीम कोर्ट ने संसद को भी बहाल कर दिया है जिसे के.पी. शर्मा ओली ने भंग कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से के.पी. शर्मा ओली को बहुत बड़ा झटका लगा है.

संविधान पीठ के सभी न्यायाधीशों ने यह फैसला दिया है कि संसद के अधिकतर सदस्य चाहते हैं कि शेर बहादुर देउबा को फिर से प्रधानमंत्री बनाया जाए. भंग किए गए सदन के 146 सांसदों ने राष्ट्रपति को ज्ञापन देकर यह प्रार्थना की है कि ओली को हटा कर देउबा को प्रधानमंत्री बनाया जाए.

यहां यह ज्ञातव्य है कि के.पी. शर्मा ओली  दिन-रात भारत के खिलाफ बयानबाजी करते रहते थे. विपक्ष ने ओली द्वारा संसद भंग करने पर अदालत में चुनौती दी थी और यह कहा था कि संसद के निचले सदन की बहाली होनी चाहिए और नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा को फिर से प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाना चाहिए. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री ओली के सभी फैसलों को पलट दिया है.

अधिकतर मधेशी तथा बिहार, यूपी के मूल निवासी जो नेपाल में बस गए हैं और नेपाल में जिनकी संख्या बहुतायत में है, वे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पूर्णत: सहमत हैं और उन्होंने इसका भरपूर स्वागत किया है.

अब जब संसद फिर से बहाल हो गई है तो सभी फैसले अब संसद ही करेगी. नेपाल यद्यपि छोटा सा देश है परंतु वहां की 80 प्रतिशत जनता हिंदू धर्म को मानती है और भारत से उनका बहुत बड़ा लगाव है. सदियों से भारत और नेपाल के बीच लोगों का आना जाना लगा रहता है और दोनों देशोें के लोगों का आपस में बेटी-रोटी का रिश्ता है.

जब कुछ वर्ष पहले नेपाल में राजशाही का अंत हुआ था तो लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब नेपाल में लोकतंत्र मजबूत होगा. परंतु सारी उम्मीदों पर उस समय पानी फिर गया जब माओवादियों ने सत्ता में दखल देना शुरू कर दिया. तब से आज तक लगातार नेपाल की सरकार अस्थिर रही है. नेपाल की सरकार में जब माओवादियों का वर्चस्व बढ़ गया तब चीन ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से दखल देना शुरू कर दिया.

के.पी. शर्मा ओली पूरी तरह चीन के पिछलग्गू थे. अत: जब देउबा को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया तब वहां के मधेशियों तथा बिहार, यूपी के मूल निवासियों ने इसका भरपूर स्वागत किया और आज भी लगता यही है कि इन मधेशियों में खुशी की लहर कम नहीं होगी.

पीछे मुड़कर देखने से लगता है कि लोगोें ने जो उम्मीद की थी कि नेपाल में लोकतंत्र मजबूत होगा वह सब समाप्त हो गई है. देउबा सरकार के आने से भारतीय मूल के लोगों में प्रसन्नता तो जरूर हुई है. परंतु उन्हें एक डर सता रहा है कि कहीं चीन पीछे से षडयंत्र कर देउबा सरकार को गिरा न दे.

जब नई सरकार नेपाल में बनी तो भारत में हर वर्ग के लोगों ने हृदय से इसका समर्थन किया. भारत में लोगों को लगता है कि अब नेपाल आने जाने में सरकार पहले की तरह कोई अड़ंगा नहीं लगाएगी और देर या सबेर नेपाल के साथ भारत के संबंध सामान्य हो जाएंगे.

टॅग्स :नेपालकेपी ओली
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