देश की धरोहर हैं गांधीजी के पत्र
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 12, 2019 07:32 AM2019-10-12T07:32:08+5:302019-10-12T07:32:08+5:30
दो अक्तूबर के दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती से संबंधित पहलुओं को जिस तरह मीडिया ने पूरी जिम्मेदारी से निबाहा वह वाकई प्रशंसनीय है.
(ब्लॉग-नवीन जैन)
दो अक्तूबर के दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती से संबंधित पहलुओं को जिस तरह मीडिया ने पूरी जिम्मेदारी से निबाहा वह वाकई प्रशंसनीय है. इससे खासकर युवा पीढ़ी में शांति, एकता, असांप्रदायिकता, छुआ-छूत, मानवता वगैरह के बारे में खासी सकारात्मक चेतना आ सकती है.
बस एक बात अखरने वाली यह रही कि बापू के रोजाना लिखे पत्रों, चिट्ठियों, खतों, प्रतियों आदि की ओर या तो ध्यान नहीं दिया गया या औपचारिकता पूरी कर दी गई, पर खैर यह दुख का विषय नहीं है, क्योंकि 10 अक्तूबर के दिन राष्ट्रीय चिट्ठी दिवस मनाया जाता है.
गांधीजी प्रतिदिन हर परिचित व्यक्ति को दो पत्र लिखते थे और उनसे अनुरोध करते थे कि वे चार ऐसे ही पत्र अपनी जान पहचान के लोगों को लिखें. ये चार फिर आठ को ऐसे पत्र भेजें. आजादी का अलख जगाने में राष्ट्रपिता का यह प्रयोग भी बहुत सफल रहा. इसने पुनर्जागरण का भी काम किया.विश्व डाक संघ ने इसी प्रयोग की सफलता को देखते हुए 16 साल की उम्र वाले बच्चों के लिए पत्रलेखन की प्रतियोगिताएं आयोजित करना प्रारंभ किया. विश्व डाक संघ आज भी लेखन पर लगातार निगरानी रखती है. वैसे भी स्कूली पाठ्यक्रम में कभी पत्रलेखन को सम्पूर्ण विधा या शैली माना जाता है इसीलिए 1972 में राष्ट्रीय डाक चिट्ठी दिवस मनाने का निर्णय लिया गया. पत्र संस्कृति के विकास हेतु दूसरे अन्य काम भी किए गए.
एक आधिकारिक जानकारी के अनुसार आज भी लगभग साढ़े चार करोड़ चिट्ठियां प्रतिदिन आती हैं. समझा जा सकता है कि आज भी चिट्ठी-पत्री का कितना विश्वसनीय और आम चलन है, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि युवा-पीढ़ी सैलाब की तरह आए मोबाइलेजेशन, सूचना तंत्र का विस्फोट, ई-मेल, इंटरनेट वगैरह के कारण पत्रलेखन से नाता तोड़ने लगी है. इसका दुष्परिणाम यह देखा जा रहा है कि हमारे बच्चे अवसादग्रत, तनावग्रस्त, उदास, हताश, चिंंता, बेकार की दिखावट आदि मनोरोगों से बेहद प्रभावित होने लगे हैं