ब्लॉग: डीपफेक के लिए सबको अपने गिरेबान में झांकना भी जरूरी!

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 20, 2023 09:52 AM2023-11-20T09:52:46+5:302023-11-20T10:00:53+5:30

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री भी समस्या से निपटने की बात करने लगे हैं। सोशल मीडिया की दुनिया में मीम्स हों या फिर डीपफेक दोनों की शुरुआत ज्यादातर कीचड़ उछाल कर किसी व्यक्ति विशेष की छवि धूमिल करने के प्रयास के रूप में हुई। 

For deepfakes it is also necessary for everyone to look inside their own backyard | ब्लॉग: डीपफेक के लिए सबको अपने गिरेबान में झांकना भी जरूरी!

फाइल फोटो

Highlightsराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री भी डीपफेक से निपटने की बात करने लगे हैंकीचड़ उछाल कर किसी व्यक्ति विशेष की छवि धूमिल करने के प्रयास के रूप में हुईवीडियो से पहले फोटो एडिटिंग सॉफ्टवेयर से न जाने कितने चेहरे बिगाड़े गए और मजे लिए गए

दक्षिण भारत की फिल्म अभिनेत्री रश्मिका मंदाना के एक वीडियो के वायरल होने के बाद से डीपफेक पर नई और गंभीर चर्चा आरंभ हो गई है। चूंकि महानायक अमिताभ बच्चन ने इसके खिलाफ आवाज उठा दी है, इसलिए सरकार की गंभीरता भी स्वाभाविक है।

यहां तक कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री भी समस्या से निपटने की बात करने लगे हैं। सोशल मीडिया की दुनिया में मीम्स हों या फिर डीपफेक दोनों की शुरुआत ज्यादातर कीचड़ उछाल कर किसी व्यक्ति विशेष की छवि धूमिल करने के प्रयास के रूप में हुई। 

वीडियो से पहले फोटो एडिटिंग सॉफ्टवेयर से न जाने कितने चेहरे बिगाड़े गए और मजे लिए गए। अब जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के माध्यम से वीडियो की छेड़छाड़ होने लगी तो खतरा सभी को दिखने लगा है। इसकी सीधी वजह यह है कि वीडियो की असलियत समझ पाना मुश्किल होता है।

ताजा मामले में रश्मिका मंदाना की ओर से आवाज नहीं उठाई जाती और उसे अमिताभ बच्चन का समर्थन नहीं मिलता तो बात इतनी आगे नहीं बढ़ती। मगर सवाल यह है कि मीम्स के बाद डीपफेक को शुरू किसने किया? साफ है कि जो लोग चर्चाओं में बने रहना चाहते हैं, उनकी ही तरफ से पहल हुई। कभी इसे मजाक समझा गया तो कभी कटाक्ष। कहीं-कहीं इसे व्यंग्य मान कर लिया गया। 

अनेक चैनलों और वीडियो प्लेटफार्म ने इनसे अपनी भरपूर पहचान बढ़ाई। जैसे-जैसे समय बीता और तकनीक बेहतर हुई तो काम में परिपक्वता भी आने लगी। यहीं से मुसीबत भी खड़ी होने लगी। राजनीतिक दलों की साइबर सेल हो या फिर कलाकारों के जनसंपर्क कर्मी, सभी को दूसरे की लाइन छोटी करने का सबसे आसान तरीका डीपफेक ही नजर आया। जिससे एक वीडियो के सामने आते ही अनेक की चर्चाएं आरंभ हो जाती हैं।

वास्तव में जब यह गंदी शुरुआत हुई तभी इस पर रोक लगाने के लिए सरकार और नेता-अभिनेताओं को आगे आना चाहिए था। किंतु दूसरे की टोपी उछलते देख सभी परिस्थिति का आनंद लेते रहे। अब जब खुद पर बन आई है तो कानून और कार्रवाई जैसी बातें याद आ रही हैं। 

सिद्धांतत: सही यही है कि सामान्य व्यक्ति हो या विशिष्ट व्यक्ति, किसी की भी छवि बिगाड़ने के मामलों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। मगर समाज में न जाने कितने लड़के-लड़कियों के फोटो-वीडियो तरह-तरह से बदल कर सोशल मीडिया पर चलाए गए। बात बढ़ी तो पुलिस तक पहुंची और कुछ दिन में रफा-दफा हो गई।

मगर वह सामान्य रूप से इंटरनेट प्लेटफार्म पर रही, जिससे आम तौर पर किसी भी व्यक्ति की छवि को हुए नुकसान की कोई भरपाई नहीं हुई। इसलिए तकनीक और उसे चलाने वाली संस्थाएं तो लगातार आगे बढ़ती रहेंगी। वे कभी समाज को लाभ तो कभी हानि पहुंचाती रहेंगी। लेकिन इस खेल का संचालन करने वाले जब तक दूसरे पर कीचड़ उछालने की मानसिकता से ऊपर नहीं उठेंगे, तब तक यह सिलसिला किसी न किसी रूप में चलता रहेगा। कभी इसकी बारी, कभी उसकी बारी आती रहेगी।

Web Title: For deepfakes it is also necessary for everyone to look inside their own backyard

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