पटाखेबाजी को व्यावहारिक बनाएं
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 25, 2018 09:05 PM2018-10-25T21:05:04+5:302018-10-25T21:05:04+5:30
पिछले साल दिवाली पर ऐसा प्रदूषण फैला था, जैसे कि किसी संक्रामक रोग ने दिल्ली पर हमला बोल दिया हो। हमारे देश के तमाम जिम्मेदार लोग, संस्थाएं तथा सरकार इस मामले में बिल्कुल अर्थहीन साबित हो गए हैं।
वेदप्रताप वैदिक
सर्वोच्च न्यायालय ने पटाखेबाजी पर नियंत्रण लगाकर सराहनीय फैसला किया है। खेतों से निकला कचरा जलाने के कारण दिल्ली ही नहीं, भारत के कई शहर और गांव भीषण प्रदूषण की चपेट में हैं। अब दिवाली में यह प्रदूषण ‘करेला और नीम चढ़ा’ की कहावत को चरितार्थ करेगा। पिछले साल दिवाली पर ऐसा प्रदूषण फैला था, जैसे कि किसी संक्रामक रोग ने दिल्ली पर हमला बोल दिया हो। हमारे देश के तमाम जिम्मेदार लोग, संस्थाएं तथा सरकार इस मामले में बिल्कुल अर्थहीन साबित हो गए हैं।
वे जनता के नाम कोई अपील जारी नहीं करते हैं और कर भी दें तो उनकी कौन सुनता है? ऐसे में अदालत को ही सही फैसले करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। लेकिन दिवाली के 15-20 दिन पहले इतना सख्त फैसला लागू कैसे किया जा सकेगा, यह समझ में नहीं आता। कम शोर और कम धुएं वाले पटाखे छुडाए जाएं, यह बात तो ठीक है लेकिन यह हिदायत दो-चार माह पहले दी जानी चाहिए थी।
इसके अलावा यह छूट शाम 6 से रात 12 बजे तक दी जा सकती है। फिर पुलिस विभाग इस बात की निगरानी कैसे करेगा कि छूटे हुए पटाखे सही थे या नहीं और उन्हें नियत स्थानों पर ही फोड़ा गया है या नहीं? ऐसा ही आदेश गत वर्ष पंजाब उच्च न्यायालय ने दिया था लेकिन उसका पालन कम, उल्लंघन ज्यादा हुआ था।
ऐसे उल्लंघन की धमकी उज्जैन के सांसद, चिंतामणि मालवीय ने भी दी है लेकिन मैं उनसे और देश के सभी नेताओं और नागरिकों से निवेदन करूंगा कि वे अदालत के सदाशय को समङों और उसके फैसले को व्यावहारिक बनाने में सहयोग करें।