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जब तक कृषि कानूनों की विदाई नहीं, तब तक आंदोलन में ढिलाई नहीं!

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 7, 2020 19:56 IST

भारत बंद हमारा शांतिपूर्ण आह्वान है, सबसे अपील है कि इसे ज़ोर-ज़बरदस्ती से न करें, राजनीतिक दलों ने जो हमारा समर्थन किया है उसके लिए उनका धन्यवाद.

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ठळक मुद्देकिसान आंदोलन में शामिल होने के लिए आएं तो अपना झंडा घर छोड़कर आएं. गांवों में धर्म-कर्म में विश्वास रखने वाले किसानों की संख्या सर्वाधिक है.

जब तक कृषि कानूनों की विदाई नहीं, तब तक आंदोलन में ढिलाई नहीं, इस तर्ज पर किसान आंदोलन आगे बढ़ रहा है.

जिस तरह से किसान आंदोलन को विभिन्न क्षेत्रों से समर्थन मिल रहा है, उसे देखते हुए यदि समय रहते केन्द्र सरकार ने सही रास्ता नहीं तलाशा तो पीएम मोदी सरकार को अनेक प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष नुकसान होंगे, जिसके संकेत पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने भी दिए हैं.

इस आंदोलन से विपक्ष को कितना फायदा होगा, यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन बीजेपी को अच्छा-खासा नुकसान हो सकता है.वजह? आज भी गांवों में धर्म-कर्म में विश्वास रखने वाले किसानों की संख्या सर्वाधिक है और श्रीराम मंदिर आंदोलन के बाद शहरी पार्टी बीजेपी को इसीलिए गांवों में बड़ा आधार भी मिला है.

आज जो बीजेपी की ताकत नजर आ रही है, उसमें उस आंदोलन का बहुत बड़ा योगदान है. लेकिन, अब यह साफ होता जा रहा है कि पीएम मोदी सरकार का फोकस, जनता और किसान नहीं हैं, अपने और अपनों के सियासी हित हैं.

आज भले ही किसान आंदोलन का भाजपाई खुलकर साथ नहीं दे पा रहे हों, लेकिन ज्यादातर मौन हैं, खुलकर मोदी सरकार के साथ भी नहीं खड़े हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि जो कुछ हो रहा है उसका बहुत बड़ा नुकसान पार्टी को होगा. उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि यदि कृषि कानूनों से किसानों को फायदा है और किसानों को बिचैलियों से मुक्ति मिलेगी, तो उन्हें संपूर्ण संरक्षण देने वाला एमएसपी कानून क्यों नहीं बनाया जा रहा है?  

टॅग्स :किसान विरोध प्रदर्शनपंजाबहरियाणाउत्तर प्रदेशनरेंद्र मोदी
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