‘सोजे वतन’ पर गोरी सत्ता की कुदृष्टि ने नवाबराय को प्रेमचंद बनाया

By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: July 31, 2025 03:31 IST2025-07-31T03:30:22+5:302025-07-31T03:31:27+5:30

जानकार बताते हैं कि 1908 में ‘सोजे वतन’ के प्रकाशित होते ही गोरी सरकार हिल उठी थी और उसका डर इस सीमा तक बढ़ गया था कि उसकी सारी की सारी प्रतियां जलवा देने पर भी नहीं घटा था.

evil eye white government 'Soze Watan' turned Nawabray into Premchand blog Krishna Pratap Singh | ‘सोजे वतन’ पर गोरी सत्ता की कुदृष्टि ने नवाबराय को प्रेमचंद बनाया

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Highlightsआगे कुछ भी लिखने से सख्ती से मना कर दिया था. सोजे वतन (जिसका अर्थ देश का मातम है) की बात करें तो इसमें कुल पांच कहानियां हैं.इसके प्रकाशित होते ही ये पांचों खासी चर्चा में आ गई थीं.

‘सोजे वतन’ मुंशी प्रेमचंद का पहला कथा संग्रह है.  हालांकि यह तब प्रकाशित हुआ था, जब वे न प्रेमचंद बने थे और न हिंदी के लेखक. तब वे नवाबराय नाम से उर्दू में लिखा करते थे और ‘सोजे वतन’ में शामिल ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ शीर्षक कहानी भी, जिसे उनकी पहली कहानी माना जाता है, उनके इसी नाम से छपी थी. हालांकि उनका माता-पिता का दिया नाम धनपतराय था. जानकार बताते हैं कि 1908 में ‘सोजे वतन’ के प्रकाशित होते ही गोरी सरकार हिल उठी थी और उसका डर इस सीमा तक बढ़ गया था कि उसकी सारी की सारी प्रतियां जलवा देने पर भी नहीं घटा था.

तब उसने उन्हें (यानी नवाबराय को) आगे कुछ भी लिखने से सख्ती से मना कर दिया था. उस वक्त उसने कल्पना भी नहीं की होगी कि उसकी यह मनाही एक दिन हिंदी का सौभाग्य बन जाएगी और नवाबराय को प्रेमचंद बनाकर उसकी गोद में डाल देगी. उसकी मनाही नहीं होती तो बहुत संभव था कि वे नवाबराय बने रहकर उर्दू की दुनिया में ही रमते रहते, हिंदी का रुख ही नहीं करते और हिंदी अपने उपन्यास सम्राट से वंचित रह जाती. बहरहाल, सोजे वतन (जिसका अर्थ देश का मातम है) की बात करें तो इसमें कुल पांच कहानियां हैं :

दुनिया का सबसे अनमोल रतन, शेख मखमूर, यही मेरा वतन है, शोक का पुरस्कार और सांसारिक प्रेम.  कानपुर के बहुचर्चित जमाना प्रेस (जहां से मुंशी दयानारायण निगम के सम्पादन में इसी नाम का उर्दू का पत्र भी प्रकाशित होता था और नवाबराय उसके नियमित लेखक थे) से इसके प्रकाशित होते ही ये पांचों खासी चर्चा में आ गई थीं.

इनकी चर्चा जिले के अंग्रेज कलेक्टर तक पहुंची तो उसने उनको गोरी सत्ता के विरुद्ध बगावत भड़काने का प्रयास करार देकर प्रेमचंद को फौरन अपने सामने पेश होने का आदेश दिया और पेश होने पर बहुत रुखाई से कैफियत तलब की. इतना ही नहीं, उसने संग्रह की जितनी भी प्रतियां छापी गई थीं,

सब की सब जलवा देने का आदेश दिया और उन्हें कड़ी चेतावनी दी कि आगे ऐसा कुछ भी लिखने की गुस्ताखी न करें.  और तो और, धमकाने के अंदाज में यह तक कहने से भी गुरेज नहीं किया कि ‘गनीमत समझो कि तुम अंग्रेजों के राज में रह रहे हो. अन्यथा इन कहानियों में तुमने जिस तरह बगावत भड़काने की कोशिश की है, उसके बदले में तुम्हारे दोनों हाथ काट लिए जाते.’

प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने अपनी बहुपठित व प्रशंसित पुस्तक ‘प्रेमचंद घर में’ में इसका ऐसा पारदर्शी वर्णन किया है, जिसमें एक सच्चे राष्ट्रप्रेमी लेखक के रूप में प्रेमचंद का संघर्ष तो दिखता ही है, उनकी दुविधा, उलझन और लेखक-धर्म के प्रति निष्ठा भी दिखाई देती है. अपने भीतर के कथाकार को अकाल मौत से बचाने के लिए अब उनके पास नवाबराय नाम को तिलांजलि दे देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था, क्योंकि इस नाम से लिखते तो कलेक्टर के हुक्म की अवज्ञा होती.

उन्हीं दिनों उर्दू ‘जमाना’ के संपादक मुंशी दयानारायण निगम ने उनको सुझाया कि आगे वे नवाबराय के बजाय प्रेमचंद नाम से साहित्य-सृजन करें तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रह गया. यह सुझाव उन्हें इतना रुचा कि उन्होंने नवाबराय को प्रेमचंद बनाने में तनिक भी देर नहीं की. साथ ही वे उर्दू से हिंदी में आ गए और अपने योगदान से उसे निहाल करने लग गए.  

Web Title: evil eye white government 'Soze Watan' turned Nawabray into Premchand blog Krishna Pratap Singh

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