Electronic Voting Machine: चुनाव में जिस राज्य में विपक्षी दल पराजित हो जाते हैं, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में गड़बड़ी का शोर मचाने लगते हैं. ईवीएम के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गई लेकिन सबसे बड़ी अदालत ने मंगलवार को उसे खारिज कर दिया और तल्ख टिप्पणी की कि जब चुनाव जीतते हैं, तब ईवीएम में छेड़छाड़ नहीं होती और जैसे ही चुनाव हार जाते हैं आपको ईवीएम में छेड़छाड़ दिखाई देने लगती है. के.ए. पॉल नामक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर देश में मतपत्रों के जरिए नए सिरे से चुनाव करवाने का निर्देश देने का अनुरोध किया था.
याचिका में पॉल ने कुछ ऐसे मुद्दे भी उठाए थे, जिनसे कोई असहमत नहीं हो सकता. याचिका में उन्होंने मांग की थी कि मतदाताओं को धन या अन्य तरह के प्रलोभन देने वाले उम्मीदवार को पांच वर्ष के लिए चुनाव लड़ने का अपात्र घोषित कर दिया जाए. ईवीएम के विरोध में तर्क देते हुए याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि वह 150 देशों की यात्रा कर चुके हैं और इन देशों में मतपत्रों से मतदान करवाया जाता है.
उन्होंने विश्वविख्यात उद्योगपति एलन मस्क की इस टिप्पणी का भी जिक्र किया था कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है. हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें बहुत मजबूत हैं क्योंकि मतदाता चाहे वह उच्च शिक्षित, अल्पशिक्षित अथवा अशिक्षित हो, राजनीतिक रूप से अत्यंत जागरूक है और वह अपने मताधिकार का इस्तेमाल सोच-समझकर करता है.
यह बात सही है कि भारतीय राजनीति में जाति, धर्म, पंथ और संप्रदाय के कार्ड खेलकर मतदाताओं को भावनात्मक रूप से बरगलाने का प्रयास राजनीतिक दल करते हैं, मतदाताओं को शराब, धन तथा तोहफे देकर भी आकर्षित करने का प्रयास किया जाता है, मगर मतदाता वोट उसी को देता है, जिसे वह सबसे योग्य समझता है.
देश में ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक ऐसे हजारों जनप्रतिनिधि मिल जाएंगे, जो जाति या धर्म के नजरिये से अपने क्षेत्र में अल्पसंख्यक हैं लेकिन उनके क्षेत्र के बहुसंख्यक मतदाताओं ने उन्हें वोट दिया. हारने वाले दल ईवीएम को जनता से सहानुभूति अर्जित करने के लिए राजनीतिक हथियार बनाने लगे हैं.
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी एकदम सटीक है कि जब आप चुनाव जीत जाते हैं, तो आपको ईवीएम में कोई गड़बड़ी नजर नहीं आती. ईवीएम से मतदान की शुरुआत कांग्रेस के शासन में हुई थी. जब 2004 तथा 2009 में कांग्रेस ने लोकसभा का चुनाव जीता था, तब भी मतदान ईवीएम से ही हुआ था. राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा, पश्चिम बंगाल में भी ईवीएम से ही विधानसभा-लोकसभा के चुनाव हुए और विपक्षी दल जीते थे. इसी साल लोकसभा के चुनाव में भाजपा 240 सीटों पर सिमट गई और विपक्षी इंडिया गठबंधन को 236 सीटें मिलीं.
तब ईवीएम पर ज्यादा सवाल खड़े नहीं किए गए. हाल ही में महाराष्ट्र तथा झारखंड में विधानसभा के चुनाव हुए. महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्ववाली महायुति को शानदार सफलता मिली. विपक्षी महाविकास आघाड़ी 46 सीटों पर सिमट गई. इससे ठीक विपरीत नतीजे झारखंड में आए जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा तथा कांग्रेस के गठबंधन ने भारी जीत दर्ज की और भाजपा लगभग दो दर्जन सीटों पर सिमट गई.
महाराष्ट्र में हार को विपक्षी दल पचा नहीं पा रहे हैं तथा ईवीएम हैक कर चुनाव नतीजे प्रभावित करने के आरोप लगा रहे हैं लेकिन झारखंड में उन्हें ईवीएम में कोई छेड़छाड़ नजर नहीं आती. जब कुछ वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस, दिल्ली में आम आदमी पार्टी, केरल में वामपंथी मोर्चा, ओडिशा में बीजू जनता दल, आंध्रप्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस, तमिलनाडु में द्रमुक, तेलंगाना, हिमाचल में कांग्रेस, पंजाब में आम आदमी पार्टी जीती, तब विजेता दलों ने जश्न मनाया और ईवीएम पर सवाल खड़े नहीं किए थे.
कुछ माह पहले हुए लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भाजपा तथा महायुति में शामिल शिवसेना (शिंदे) तथा राकांपा (अजित) को पराजय हाथ लगी थी. पांच माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में नतीजे एकदम विपरीत आए. चुनाव में हार के बाद ईवीएम में गड़बड़ी का शोर मचाना लोकतांत्रिक प्रक्रिया तथा मतदाताओं के विवेक के प्रति अविश्वास जताने जैसा है. जनादेश को विनम्र भाव से स्वीकार कर लोकतंत्र के प्रति तमाम राजनीतिक दलों को अपनी आस्था का परिचय देना चाहिए. लोकतंत्र में जनता का फैसला ही सर्वोपरि होता है तथा उसका आदर किया जाना चाहिए.