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वरुण गांधी का ब्लॉग: देश में शिक्षा-रोजगार की हालत सबसे खराब, परीक्षा पास के बाद भी न समय से मिल रही है डिग्री और न दी जा रही है नौकरी

By वरुण गांधी | Updated: August 13, 2022 09:05 IST

आपको बता दें कि रेलवे की नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए 2019 में 1.3 लाख पदों के लिए ग्रुप-डी की अधिसूचना के बाद से इसकी परीक्षा के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा है।

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ठळक मुद्देदेश में शिक्षा और रोजगार की हालत बहुत खराब है। बिहार के 17 में से 16 सरकारी विश्वविद्यालयों में समय पर शैक्षणिक सत्र पूरा नहीं हो पाया है। वहीं नौकरी की बात करे तो परीक्षा पास करने के बाद भी उम्मीदवारों को नौकरी नहीं मिल रही है।

शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में देश में फिलहाल जो स्थिति है, उसमें एक तरफ भारी सुस्ती छाई है, वहीं दूसरी तरफ गंभीर व्यवस्थागत अराजकता है. आंध्र प्रदेश में 1998 में जिला चयन समिति की परीक्षा पास करने वाले 4500 उम्मीदवारों को अब जाकर सरकारी स्कूलों में बतौर शिक्षक नियमित नौकरी की पेशकश की गई है. देखते-देखते नौकरी की आस में इन लोगों के 24 कीमती साल बेकार चले गए. 

बिहार: 17 में से 16 सरकारी विश्वविद्यालयों में समय पर पूरा नहीं हुआ शैक्षणिक सत्र

इसी तरह पटना के जयप्रकाश विश्वविद्यालय के कई छात्रों के लिए स्नातक होने का इंतजार छह साल से भी लंबा है. पिछले कुछ सालों में बिहार के 17 सरकारी विश्वविद्यालयों में से 16 ने अपने शैक्षणिक सत्र समय पर पूरे नहीं किए हैं. 

नतीजतन, ऐसे छात्र सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने से चूक गए हैं. जाहिर है कि ऐसे विश्वविद्यालय देश में शिक्षा के स्तर को तो गिरा ही रहे हैं, साथ में बेरोजगारी को भी सींच रहे हैं.

भर्ती परीक्षाओं के लिए होते है खूब पैसे खर्चे

इस तरह की दुरावस्था और लेट-लतीफी के बीच लाभ कमाने का उपक्रम जारी है. भर्ती परीक्षाओं की तैयारी के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं. मामूली पदों पर भर्ती की तैयारी के लिए 1000 से 4000 रुपए तो यूपीएससी की कोचिंग के लिए 1.5 से 2.5 लाख रुपए चुकाने होते हैं. 

भर्ती परीक्षाओं के लिए रजिस्ट्रेशन कराने का भी शुल्क आसमान छू रहा है. जम्मू-कश्मीर राज्य सेवा बोर्ड (एसएसबी) ने बेरोजगार युवाओं से मार्च 2016 से सितंबर 2020 के बीच 77 करोड़ रुपए इकट्ठा किए, जबकि उन्हें आज भी परीक्षाओं और उनसे मिलने वाली नौकरियों का इंतजार है.

RRB NTPC और GRP D परीक्षाओं (2019) से रेलवे ने इतने पैसे इकट्ठा किए

भारतीय रेलवे ने लगभग 2.41 लाख आवेदनों से आरआरबी-एनटीपीसी और ग्रुप-डी परीक्षाओं (2019) के लिए 864 करोड़ रुपए इकट्ठा किए. जाहिर है कि जब तक कोई उम्मीदवार परीक्षा में शामिल हो, तब तक उसकी जेब पूरी तरह ढीली हो चुकी होती है. 

रेलवे की नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए 2019 में 1.3 लाख पदों के लिए ग्रुप-डी की अधिसूचना के बाद से इसकी परीक्षा के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा.

रेलवे की परीक्षाओं में ज्यादा देरी देखी गई

दिलचस्प है कि रेलवे की परीक्षाओं में रेलवे की तुलना में देरी ज्यादा देखी गई है. इसी साल जून में तिरुवनंतपुरम में सेना भर्ती परीक्षा आयोजित करने में देरी के खिलाफ उम्मीदवारों ने राजभवन के बाहर विरोध प्रदर्शन किया. 

2000 लोगों के लिए, जिन्होंने शारीरिक और चिकित्सा परीक्षा पास कर ली थी, यह एक लंबा और थकाऊ इंतजार था. इनमें से कई तो अब 23 वर्ष से अधिक के हैं और उनके लिए नौकरी का पहला प्रयास ही अंतिम साबित हो रहा है.

कर्नाटक: भर्तियों के लिए अभी भी कर रही है एआरसी-2 की रिपोर्ट का इंतजार 

कर्नाटक में एक अलग स्थिति है. वहां राज्य सरकार दो साल के अंतराल के बाद फिर से 260000 रिक्तियों के लिए भर्ती करना चाह रही थी पर वहां भर्ती प्रक्रिया में देरी हो रही है क्योंकि सरकार प्रशासनिक सुधार आयोग-2 (एआरसी-2) की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है. 

यह रिपोर्ट कुछ नौकरियों को समाप्त करने का कारण भी बन सकती है. ऐसे में सवाल है कि नौकरी के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे लोगों को आखिर और कितना सब्र रखना होगा.

परीक्षाओं के नतीजे आने के बाद नहीं मिल रही है नौकरी

व्यवस्थागत सुस्ती और अराजकता का आलम यह है कि परीक्षाओं के नतीजे आ जाने के बाद भी उम्मीदवारों को नौकरी नहीं मिलती. सीएपीएफ में (सितंबर 2020 तक) एक लाख से ज्यादा रिक्तियां थीं और ये ज्यादातर कांस्टेबल ग्रेड में थीं. इसके लिए 52 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया और आखिर में जाकर 60210 नौकरियों की पेशकश की गई. 

रिक्तियों को पहले से न भरे जाने के बाद एसएससी जीडी 2021 के तहत महज 25271 पदों के लिए परीक्षा ली गई. 2018 के उन 4295 उम्मीदवारों को जो पहले ही परीक्षा पास कर चुके हैं, उन पर कोई विचार नहीं किया गया. 

ऐसे उम्मीदवारों ने आयु सीमा पार कर ली है और इनमें से किसी भी परीक्षा के लिए वे अब दोबारा आवेदन नहीं कर सकते हैं. वे पैरों में पड़े छालों का दर्द सहते हुए अपने हक और इंसाफ के लिए नागपुर से दिल्ली के लिए पैदल मार्च कर रहे हैं.

नौकरी के नाम पर चल रहा है लाभ कमाने की योजना

हम युवाओं को रोजगार देने के नाम पर लाभ कमाने की योजना नहीं चला सकते. इसके अलावा इसके लिए भी नीतियों को अधिनियमित करने की आवश्यकता है कि परीक्षा केंद्र और उम्मीदवार के स्थान के बीच की दूरी सीमित हो. 

इस सीमा को 50 किमी तक रखना बेहतर होगा. ऐसा न होने पर मुआवजे के तौर पर उम्मीदवार को यात्रा और ठहरने के खर्चों का भुगतान होना चाहिए. इसी तरह ऑनलाइन परीक्षाएं राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) द्वारा आयोजित की जानी चाहिए. 

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