डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः प्रदूषण के लिए सिर्फ किसानों को ही दोषी ठहराना उचित नहीं

By डॉ एसएस मंठा | Published: November 24, 2019 02:08 PM2019-11-24T14:08:53+5:302019-11-24T14:08:53+5:30

ऐसे में धुआं भी अगर मिल जाए तो परिस्थिति और खराब हो जाती है तथा धुंध छा जाती है. दिल्ली में ऐसी ही स्थिति देखने को मिल रही है. वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ने समस्या को और विकराल बना दिया है.

Dr. S.S. Mantha's blog: It is not fair to just blame farmers for pollution | डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः प्रदूषण के लिए सिर्फ किसानों को ही दोषी ठहराना उचित नहीं

डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः प्रदूषण के लिए सिर्फ किसानों को ही दोषी ठहराना उचित नहीं

प्रदूषण के लिए वाहनों से होने वाला उत्सजर्न काफी हद तक जिम्मेदार है. हालांकि अन्य कारकों का भी इसमें योगदान है, जिसमें निर्माणकार्यो से पैदा होने वाली धूल, कचरा जलाने से उठने वाला धुआं, डीजल जनरेटर्स से होने वाला उत्सजर्न और अवैध ढंग से चलने वाले उद्योगों से होने वाला प्रदूषण प्रमुख है. पीएम 2.5 जनस्वास्थ्य के लिए अधिक घातक है, क्योंकि यह सांस के जरिये भीतर जाकर फेफड़े में जमा हो जाता है. यह पार्टिकल दृश्यता को भी कम करता है, जिससे वातावरण धूसर प्रतीत होता है. ऐसे में धुआं भी अगर मिल जाए तो परिस्थिति और खराब हो जाती है तथा धुंध छा जाती है. दिल्ली में ऐसी ही स्थिति देखने को मिल रही है. वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ने समस्या को और विकराल बना दिया है.

एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में पीएम 2.5  के प्रदूषण में सर्वाधिक 41 प्रतिशत योगदान वाहनों से होने वाले उत्सजर्न का है. 21.5 प्रतिशत प्रदूषण धूल से और 18 प्रतिशत उद्योगों से होता है. ठंड के दिनों में ये कण वातावरण में ही कैद होकर रह जाते हैं, जिससे दृश्यमानता में कमी आती है. पीएम 10 के प्रदूषण के लिए उद्योग सर्वाधिक जिम्मेदार हैं, जिनका योगदान 27 प्रतिशत है. इसमें 25 प्रतिशत धूल, 24 प्रतिशत वाहनों और नौ प्रतिशत घरेलू प्रदूषण का योगदान है. खेतों में जलाई जाने वाली पराली का इसमें मात्र चार प्रतिशत योगदान है. ऐसे में प्रदूषण के लिए सिर्फ किसानों को जिम्मेदार ठहराना और उन पर कार्रवाई की चेतावनी देना उचित नहीं है. वास्तविकता यह है कि खेतों में पराली जलाए जाने का काम साल में 15 से 20 दिनों तक ही होता है और उस दौरान प्रदूषण में इसका योगदान 30 प्रतिशत तक होता है. दिल्ली में टैनरीज और अन्य औद्योगिक प्रतिष्ठान समुचित प्रक्रिया किए बिना जो पानी छोड़ते हैं, उससे यमुना का पानी प्रदूषित हो गया है. इसलिए समस्या को समग्रता में देखना होगा.

देश में हरित क्रांति से उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन फसलें इतनी जल्दी-जल्दी ली जाने लगी हैं कि फसल के अवशेषों को प्राकृतिक रूप से सड़ाकर खाद बनाने के लिए समय ही नहीं मिल पाता. मशीनों की सहायता से इनका कार्डबोर्ड बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन व्यक्तिगत रूप से किसानों के पास इतनी क्षमता नहीं होती कि वे महंगी मशीनें खरीद सकें. इसलिए सरकार को सामुदायिक आधार पर किसानों के लिए ऐसी मशीनों की व्यवस्था करनी चाहिए. इसके अलावा खेतों के पास ही कार्डबोर्ड निर्मित करने वाले प्रकल्प शुरू करने चाहिए, ताकि किसानों को पराली जलाने के लिए मजबूर न होना पड़े.

Web Title: Dr. S.S. Mantha's blog: It is not fair to just blame farmers for pollution

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