Dowry Law: कभी-कभी कोई कानून किसी अच्छे उद्देश्य तथा सामाजिक एवं पारिवारिक ताने-बाने को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से बनाया जाता है. मगर जब उसका दुरुपयोग होने लगता है तो वही कानून समाज एवं परिवार की बुनियाद के लिए गंभीर खतरा भी पैदा कर देता है. देश की सर्वोच्च अदालत ने मंगलवार को तेलंगाना हाईकोर्ट के एक फैसले काे खारिज करते हुए पत्नी के कथित अत्याचारों से पीड़ित एक व्यक्त एवं उसके पति को सुरक्षा प्रदान करते हुए यह कहा कि दहेज प्रताड़न कानून का दुरुपयोग बंद होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब बेंगलुरु में नौकरी कर रहे बिहार के एक इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला देशभर में गूंज रहा है. अतुल सुभाष के विरुद्ध उसकी पत्नी ने दहेज उत्पीड़न तथा हत्या के प्रयास समेत 9 मामले दर्ज करवा रखे थे.
अतुल ने 80 मिनट का वीडियो और 24 पन्ने का सुसाइड नोट बनाकर जान दे दी. इसमें उसने पत्नी द्वारा उसे कथित रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था तथा जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठाए थे. मंगलवार को ही उसका मामला और तेलंगाना से जुड़े दहेज प्रताड़ना के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक गंभीर टिप्पणी सामने आई.
दहेज प्रताड़ना के 2023 के पहले दर्ज मामले आईपीसी की धारा 498-ए के तहत चलाए जाते थे. भारतीय न्याय संहिता बन जाने के बाद अब दहेज प्रताड़ना के मामलों को धारा 85-86 के तहत दर्ज किया जाता है. दहेज प्रथा भारतीय समाज के लिए एक कलंक बन गई है. यही नहीं, महिला तथा उसके परिवार को प्रताड़ित करने के लिए यह कुप्रथा ससुराल वालों के हाथों का मजबूत हथियार बन गई है.
इसका मूल उद्देश्य महिलाओं को दहेज उत्पीड़न से बचाना है. इस कानून ने प्रभावशाली ढंग से काम किया और आज भी वह दहेज जैसी कुप्रथा के विरुद्ध असरदार बना हुआ है. दहेज प्रथा की भयावहता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2017 से 2021 के बीच देश में दहेज को लेकर 35493 विवाहिताओं की हत्या उनके ससुराल वालों ने कर दी थी.
2022 और 2023 में भी लगभग 10 हजार महिलाएं दहेज की बलि चढ़ीं. दहेज उत्पीड़न के मामलों में हर साल वृद्धि हो रही है. 2004 में जहां दहेज प्रताड़ना के 58121 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं 2014 में उनकी संख्या बढ़कर दोगुनी से ज्यादा अर्थात 122877 तक पहुंच गई. 2015 और 2023 के बीच दहेज प्रताड़ना के करीब सवा लाख मामले गांवों से लेकर महानगरों में उच्चशिक्षित से लेकर अल्पशिक्षित परिवारों ने दर्ज करवाए. दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए सख्त कानून बनाने के अलावा केंद्र तथा राज्य सरकारों ने सामाजिक संगठनों की मदद से व्यापक जनजागृति भी की.
लेकिन समाज के बदलते स्वरूप, बदलते पारिवारिक तथा व्यक्तिगत मूल्यों, व्यक्तिगत आकांक्षाओं के चलते परिवार में टकराव भी बढ़ने लगे. इससे तलाक के मामले बढ़ रहे हैं, तो दहेज प्रताड़ना के मामले भी बहुत बड़ी संख्या में पुलिस-अदालतों के सामने पहुंचने लगे. इन सबके बीच दहेज प्रताड़ना कानून का सामना कर रहे लोगों की आत्महत्या के मामले भी सामने आने लगे.
पिछले दो दशकों में अदालतों ने दहेज उत्पीड़न के मामलों की सुनवाई के दौरान यह पाया कि पति से मनमुटाव के बाद बदला लेने की नीयत से भी दहेज प्रताड़ना के झूठे मामले दर्ज करवाए जा रहे हैं. दहेज उन्मूलन कानून के तहत पहले मामला दर्ज होते ही पति समेत उसके समूचे परिवार को जांच के बिना गिरफ्तार कर लिया जाता था. इससे पूरा परिवार शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न का शिकार हो जाता था.
कानून के दुरुपयोग के मामलों का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई 2017 को दहेज प्रताड़ना के मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के बाद भी कार्रवाई करने का आदेश दिया था. तब से दहेज प्रताड़ना के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं होती है.
सन् 2010 में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कई बार दहेज प्रताड़ना के मामले बढ़ा-चढ़ाकर तथा बदले की भावना से दर्ज करवाए जाते हैं. उस वक्त शीर्ष अदालत ने संसद से दहेज उत्पीड़न कानून में व्यापक संशोधन करने के सुझाव दिए थे. 8 फरवरी 2022 को भी सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि ठोस सबूतों के बिना पति या ससुराल वालों के विरुद्ध दहेज के लिए अत्याचार करने का मामला नहीं बनता. 21 साल पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने दहेज कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए कहा था कि इससे विवाह संस्था की नींव हिलने लगी है.
भारतीय संस्कृति में परिवार तथा विवाह संस्था का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि नैतिक मूल्यों, जीवन दर्शन और एकजुट समाज के लिए उनकी भूमिका मजबूत बुनियाद का काम करती है. इसीलिए इन दोनों संस्थाओं की रक्षा बहुत जरूरी है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दहेज प्रताड़ना जैसी कुप्रथाओं को हथियार बनाकर महिलाओं का उत्पीड़न होता रहे.
इस दिशा में कानून तो अपना काम कर ही रहा है, परिवार और समाज को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी कानून का दुरुपयोग न हो तथा विवाह संस्था की पवित्रता बरकरार रहे. विवाह संस्था भी महिला सुरक्षा तथा सशक्तिकरण का मजबूत मंच है. उसे और मजबूत करना समाज की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है.