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दमकती रोशनी के स्याह पक्ष पर भी देना होगा ध्यान?, महाराष्ट्र के पुरुषवाड़ी, भंडारदरा, राजमाची, प्रबलमाची, कर्जत में जुगनुओं का उत्सव

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: May 25, 2025 05:18 IST

बल्ब-ट्यूब लाइट और सोलर लैंप की रोशनी में यह सुंदर जीव अपना नैसर्गिक अंधकार का परिवेश तलाशता है.

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ठळक मुद्देकृत्रिम प्रकाश की उपस्थिति में, जुगनुओं को तेज रोशनी करने की कोशिश में.संकेतों पर ध्यान देने में अधिक ऊर्जा खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. कृत्रिम रोशनी ने भले ही बहुत से अंधेरे स्थानों पर उजाला भर दिया हो.

इन दिनों महाराष्ट्र के पुरुषवाड़ी, भंडारदरा, राजमाची, प्रबलमाची, कर्जत  जैसे स्थानों पर जुगनुओं का उत्सव मनाया जा रहा है जो जून तक चलेगा. वहां का समाज जानता है कि जुगनू महज रोशनी फेंकने वाला कीट मात्र नहीं है, यह खेती-किसानी का मित्र  कीट है. चूंकि मानसून-पूर्व महीने उनके प्रजनन के काल होते हैं, सो लोक समाज उनका स्वागत करता  है. बीते कुछ सालों से जब गांव-गांव में बिजली पहुंच गई, बल्ब-ट्यूब लाइट और सोलर लैंप की रोशनी में यह सुंदर जीव अपना नैसर्गिक अंधकार का परिवेश तलाशता है.

कृत्रिम प्रकाश की उपस्थिति में, जुगनुओं को तेज रोशनी करने की कोशिश में, और संभावित साथियों द्वारा उनके संकेतों पर ध्यान देने में अधिक ऊर्जा खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इसका सीधा असर उनकी प्रजनन क्षमता और संख्या पर पड़ रहा है. आधुनिकता और संपन्नता का प्रतीक कही जाने वाली कृत्रिम रोशनी ने भले ही बहुत से अंधेरे स्थानों पर उजाला भर दिया हो.

लेकिन अब ऐसी अधिक रोशनी का इस्तेमाल समूचे परिवेश और मानवीय जीवन पर पड़ रहा है. नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च के एक शोधकर्ता रमेश चतरगड्डा ने आंध्र प्रदेश के एक खास क्षेत्र में एब्सकॉन्डिटा चिनेंसिस जुगनू प्रजातियों की आबादी को रिकॉर्ड करने का प्रयास किया. बरनकुला गांव में 1996 में 10 मीटर क्षेत्र में जुगनुओं की संख्या 500 थी जो 2019 में 10-20 रह गई.

लंबे अंतराल 23 साल में महज दो बार गणना से भले ही संख्या में गिरावट के सटीक कारण तय करना कठिन हो लेकिन यह तथ्य है कि इस अवधि में यहां रोशनी का इस्तेमाल बढ़ा. एक अन्य अध्ययन में पता चला कि कृत्रिम प्रकाश प्रवासी पक्षियों  के लिए जानलेवा सिद्ध हो रहा है.

कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी के मछली, वन्यजीव और संरक्षण जीव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और मुख्य अध्ययनकर्ता काइल हॉर्टन के नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि लंबी दूरी तय करने वाले थके हुए पक्षी  तेज रोशनी वाले शहरों में आराम की जगह या भोजन तलाशने में विफल रहते हैं और उनकी जान भी चली जाती है.

सनद रहे कि अधिकांश प्रवासी पक्षी रात में सफर करते हैं और दमकती रोशनी उनके मार्ग में भी व्यवधान पैदा करती है. कृत्रिम प्रकाश, खासकर रात में, मानव स्वास्थ्य, वन्यजीवों और पर्यावरण के लिए कई तरह के नुकसान पहुंचा सकता है, जिसमें नींद की समस्या, मोटापा, हृदय रोग, कैंसर का खतरा और पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव शामिल हैं.

दुनिया में रहने अधिकांश जीवों की तरह इंसान भी सर्केडियन रिदम या लय, जिसे शरीर की आंतरिक घड़ी भी कहा जाता है, का पालन करते हैं. अर्थात हमारी जैविक घड़ी के मुताबिक जागने-सोने का एक तंत्र होता है. यह काफी कुछ आंखों में मौजूद फोटोरिसेप्टर के कारण संचालित होता है. यह तंत्र दिन में तेज रोशनी और रात में काम या शून्य रोशनी पर आधारित है.

कृत्रिम प्रकाश, जिसमें अब मोबाइल भी शामिल है, इस नैसर्गिक तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है. इससे मेलाटोनिन का उत्पादन कम होता है जो नींद लाने के लिए जरूरी है. नींद की कमी और सर्केडियन लय में गड़बड़ी अवसाद और चिंता, मोटापे और चयापचय संबंधी विकारों के जोखिम को बढ़ा सकती है. 

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