Delhi Red Fort Blast: देश की राजधानी दिल्ली में लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास सोमवार शाम हुए जिस जबर्दस्त विस्फोट ने 12 लोगों की जान ले ली, उससे पूरा देश स्तब्ध है. हालांकि विस्फोट का कारण अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुआ है और किसी संगठन ने विस्फोट की जिम्मेदारी भी नहीं ली है लेकिन उंगलियां पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की ओर ही उठ रही हैं.
हाल के दिनों में जिस तरह से देश में अलग-अलग जगहों पर आतंकी साजिशों का पर्दाफाश हुआ है, उससे भी इस आशंका को बल मिलता है. अभी दो दिन पहले ही गुजरात एटीएस ने चीन से डॉक्टरी की पढ़ाई करके आए एक व्यक्ति सहित तीन आतंकवादियों को गिरफ्तार कर भारत में भीषण तबाही मचाने की साजिश को नाकाम किया,
जिसमें ‘रिसिन’ नामक एक अत्यधिक जहरीला रसायन तैयार करके आतंकी बड़ी संख्या में लोगों की जान लेने की साजिश रच रहे थे. उधर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने भी जैश-ए-मोहम्मद और अंसार गजवत-उल-हिंद (एजीयूएच) संगठनों के एक अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय आतंकी मॉड्यूल का पर्दाफाश किया है.
इसलिए लाल किले के पास धमाके की भी गहनता के साथ जांच होनी चाहिए, लेकिन उतना ही महत्वपूर्ण यह भी है कि इस मामले में कोई राजनीति न की जाए. दरअसल आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू होते ही जांच की दिशा भटकने का डर बढ़ने लगता है. इसलिए देश हित में जरूरी है कि न तो सत्ता पक्ष और न विपक्ष इस तरह के मामलों से राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करें.
विस्फोट की इस घटना में जहां कई बिंदु आतंकवाद के एंगल की ओर इशारा करते हैं, वहीं कई सवाल भी अभी तक अनसुलझे हैं, जिनके जवाब मिलने जरूरी हैं. बताया जाता है कि इस विस्फोट से घायल हुए लोगों के शरीर में कोई छर्रा या पंचर नहीं मिला है, जो बम विस्फोट में असामान्य बात है.
क्या कार में पहले से कोई विस्फोटक सामग्री रखी हुई थी या बम रखा हुआ था? या फिर कहीं कार के फ्यूल टैंक या सीएनजी टैंक में तो धमाका नहीं हुआ जिससे बाकी गाड़ियां भी चपेट में आ गईं? अगर यह आतंकवादी घटना थी तो किसी ने इसकी जिम्मेदारी क्यों नहीं ली और आतंकवादियों का उद्देश्य क्या था?
अगर यह आतंकी धमाका है और योजनाबद्ध ढंग से किया गया तो खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक क्यों नहीं लगी? इन सभी सवालों के जवाब तभी मिल सकते हैं जब राजनीतिक दल इसका राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिशों से दूर रहें और जांच एजेंसियों को बिना किसी दबाव के अपना काम करने दें.