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अजीब दुविधा का सामना करती नौकरशाही?, सभी सचिवों के लिए संदेश क्या है?

By हरीश गुप्ता | Updated: September 24, 2025 05:49 IST

एक वरिष्ठ अधिकारी ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘अब आगे क्या? हवाला के संदिग्धों या लाइजनिंग क्वीन्स के साथ हाई टी?’

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ठळक मुद्दे‘किसी किताब को उसके आवरण से मत आंकिए’सरकारी कार्यालयों में होनी चाहिए, न कि पांचसितारा लॉबी या गोल्फ क्लब लाउंज में.बेहतर होगा कि एक गवाह यानी सहकर्मी मौजूद हो.

कैबिनेट सचिव डॉ. टी.वी. सोमनाथन ने एक ऐसा सर्कुलर जारी किया है जिसने दिल्ली के नौकरशाही हलकों के माथे पर पसीना ला दिया है. सभी सचिवों के लिए उनका संदेश क्या है? ज्यादा सुलभ बनें; सिर्फ हितधारकों या अकादमिक लोगों के लिए ही नहीं- बल्कि ठेकेदारों, ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों और हां, जांच के घेरे में आए लोगों के लिए भी. ‘किसी किताब को उसके आवरण से मत आंकिए’

अब नया मंत्र प्रतीत होता है.  पत्र में बाबुओं को सभी प्रकार के ‘गैर-सरकारी’ लोगों से संपर्क करने, वास्तविक स्थितियों को जानने, नीतिगत गलतफहमियों को दूर करने और नए विचारों का स्वागत करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है.  लेकिन इसमें एक पेंच है: बैठकें सरकारी कार्यालयों में होनी चाहिए, न कि पांचसितारा लॉबी या गोल्फ क्लब लाउंज में.

और बेहतर होगा कि एक गवाह यानी सहकर्मी मौजूद हो. स्वाभाविक रूप से, नौकरशाही परेशान है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘अब आगे क्या? हवाला के संदिग्धों या लाइजनिंग क्वीन्स के साथ हाई टी?’ कई लोग इसे प्रशासनिक अपच का नुस्खा मानते हैं. डर साफ है: कोई भी फोटो, कोई भी लीक, कोई भी संदिग्ध आगंतुक उनके खिलाफ सबूत बन सकता है और करियर चौपट हो सकता है. फुसफुसाहटें बताती हैं कि यह पत्र शीर्ष स्तर के इशारे के बिना नहीं लिखा जा सकता था.

कोई भी कैबिनेट सचिव किसी दिन अचानक ही बाबुओं को जांच के दायरे में आए लोगों के साथ खुद घुलने-मिलने के लिए नहीं कहता. तो अब भारत का इस्पाती ढांचा एक अजीब दुविधा का सामना कर रहा है : लोगों की सेवा करो, लेकिन नोटिस पाने से बचो. एक बात स्पष्ट है- अगली बार जब कोई संदिग्ध व्यक्ति किसी सरकारी दरवाजे पर दिखाई देगा, तो चाय भले ही पिलानी पड़े, लेकिन तनाव चरम पर होगा.

रील्स से डील्स तक

भारत में सत्ता के दलाल कभी नहीं मरते- वे बस खुद को नया रूप देते हैं. अगर 2000 के दशक में नीरा राडिया थीं, तो इंस्टाग्राम के दौर में चंडीगढ़ की एक प्रभावशाली हस्ती संदीपा विर्क उभरकर सामने आईं, जिनके दस लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं और जो अब प्रवर्तन निदेशालय के जाल में फंस गई हैं.

सेल्फी और फैशन रील्स की चमक-दमक के पीछे, विर्क कथित तौर पर एक संपर्क महिला के रूप में काम करती थीं और परदे के पीछे सौदे करती थीं. ईडी का कहना है कि वह अनिल अंबानी के स्वामित्व वाले रिलायंस समूह के एक शीर्ष अधिकारी के लगातार संपर्क में थीं, और उन्होंने दिल्ली के सत्ता के गलियारों में चीजों को ‘संभालने’ का वादा किया था.

उनके ब्रांड हाइबूकेयर ने खुद को एक वैश्विक ब्यूटी स्टार्टअप के रूप में पेश किया, यहां तक कि एफडीए की मंजूरी भी हासिल की. लेकिन जांचकर्ताओं का आरोप है कि यह धोखाधड़ी के लिए एक बहाना मात्र था. पंजाब पुलिस के एक मामले में विर्क पर प्रवर्तन अधिकारियों का रूप धारण करने और एक महिला से फिल्म प्रोजेक्ट के बहाने छह करोड़ रु. ठगने का आरोप है.

उन्होंने कथित तौर पर मामूली आय दर्शाने के बावजूद करोड़ों की संपत्ति अर्जित की. सूत्रों का कहना है कि पूछताछ में विर्क ने ईडी के बड़े अधिकारियों के नाम भी बताए और दावा किया कि वह उनके लिए काम करती हैं. चाहे यह दिखावा हो या सच, इस खुलासे ने सत्ता के गलियारों में हलचल मचा दी है.

उनकी गिरफ्तारी ऐसे समय में हुई है जब ईडी ने हजारों करोड़ रुपए के कर्ज के डायवर्जन के सिलसिले में अनिल अंबानी और उनसे जुड़ी कंपनियों के खिलाफ अपनी जांच तेज कर दी है. रिलायंस के एक प्रमुख अंदरूनी सूत्र सेथुरमन पर हाल ही में रिलायंस कैपिटल और रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस लिमिटेड से कथित फंड डायवर्जन के लिए छापा मारा गया था. सेथुरमन के साथ उनकी निकटता संदेह को बढ़ाती है.

वह राफेल सौदे से जुड़े उद्यम थेल्स रिलायंस डिफेंस सिस्टम्स के बोर्ड में बैठते हैं. अनिल अंबानी से कुछ दिन पहले ही पूछताछ के बाद, विर्क की गिरफ्तारी कभी शक्तिशाली रहे इस साम्राज्य के लिए इससे बुरे समय पर नहीं हो सकती थी. संदीपा विर्क एक इंस्टाग्राम सेलिब्रिटी से कहीं अधिक हैं जिनका नाम अब धोखाधड़ी के साथ जुड़ रहा है. यह एक चेतावनी है कि भारत की कॉर्पोरेट-राजनीतिक भूलभुलैया में, संपर्क एजेंट कभी गायब नहीं होते.

मोदी सरकार ने यासीन मलिक को चौंकाया

दशकों तक, यासीन मलिक संवाद की राजनीति में फलता-फूलता रहा. दिल्ली में वी.पी. सिंह से लेकर मनमोहन सिंह तक, हर सरकार ने उसे बातचीत की मेज पर बुलाया और जेकेएलएफ प्रमुख को कश्मीर में एक हितधारक माना. उसने सात प्रधानमंत्रियों (वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर, पी.वी. नरसिम्हा राव, एच.डी. देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह), सोनिया गांधी, वामपंथी नेताओं और यहां तक कि आरएसएस के पदाधिकारियों से भी मुलाकात का दावा किया.

उसने दावा किया कि एक बार आईबी के विशेष निदेशक के रूप में कार्यरत रहते हुए अजित डोभाल ने खुद उससे जेल में मुलाकात की थी. संयोग से, डोभाल एक दशक से भी ज्यादा समय से मोदी के प्रधानमंत्री कार्यालय में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर कार्यरत हैं. लेकिन 2014 में सब कुछ बदल गया. मोदी सरकार ने अतीत से नाता तोड़ लिया, अलगाववादियों के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए.

मलिक से बातचीत करने से इनकार कर दिया. अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार मलिक ने खुद को अलग-थलग पाया. फरवरी 2019 में मलिक ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि उसको झटका तब लगा जब श्रीनगर के महानिरीक्षक के एक सामान्य से दिखने वाले कॉफी के निमंत्रण ने उसकी जिंदगी बदल दी. उसे लगा कि यह एक बार फिर मध्यस्थता का निमंत्रण है.

लेकिन जल्द ही उसे स्थानीय पुलिस थाने ले जाया गया, जहां उसे सात दिनों तक ‘राज्य अतिथि’ बनाकर रखा गया, फिर उसको जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत जम्मू की कोट भलवाल जेल भेज दिया गया. अप्रैल में एनआईए उसे दिल्ली ले आई और उस पर आतंकवाद के वित्तपोषण का मामला दर्ज कर लिया.

दिल्ली के सत्ता गलियारों में तरक्की के आदी रहे एक व्यक्ति के लिए, मोदी सरकार की खामोशी बहरी कर देने वाली थी. जहां पहले की सरकारें उसे कश्मीर तक पहुंचने के पुल के रूप में देखती थीं, वहीं मोदी ने उसे एक मिसाल बनाने का फैसला किया- बातचीत को नजरबंदी में और मेलजोल को गतिरोध में बदल दिया.

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