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ब्लॉग: ठंड से मरते बेघरों से खुल रही ‘सबको घर’ के दावे की पोल

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: January 31, 2024 14:26 IST

राजधानी दिल्ली इन दिनों कड़ाके की सर्दी से ठिठुर रही है। बारिश होने के बाद तो हवा हड्डियों पर चोट कर रही है। यह सुनना शायद सभी समाज के लिए शर्मनाक होगा कि सत्ता के केंद्र इस महानगर में कई लोग जाड़े के कारण दम तोड़ चुके हैं।

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ठळक मुद्देविभिन्न सरकारी एजेंसियों से प्राप्त आंकड़ो के अनुसार दिल्ली में तकरीबन 180 लोग जाड़े के चलते अपनी जान से हाथ धो बैठे80 फीसदी लोग बेघर थे उनके शव लावारिस जान कर जलाए गएमरने वालों में 30 प्रतिशत वे थे जो पहले से बीमार थे

राजधानी दिल्ली इन दिनों कड़ाके की सर्दी से ठिठुर रही है। बारिश होने के बाद तो हवा हड्डियों पर चोट कर रही है। यह सुनना शायद सभी समाज के लिए शर्मनाक होगा कि सत्ता के केंद्र इस महानगर में कई लोग जाड़े के कारण दम तोड़ चुके हैं। खुद दिल्ली सरकार आंकड़़ों को स्वीकार कर रही है कि पिछले दो सालों की तुलना में इस बार ठंड से मरने वालों की संख्या अधिक है।

विभिन्न सरकारी एजेंसियों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 1 से 22 जनवरी के बीच दिल्ली में तकरीबन 180 लोग जाड़े के चलते अपनी जान से हाथ धो बैठे।इनमें से 80 फीसदी लोग वे थे जिनके सिर पर कोई साया नहीं अर्थात वे बेघर थे और उनके शव लावारिस जान कर जलाए गए। मरने वालों में 30 प्रतिशत वे थे जो पहले से बीमार थे और यह ठंड झेल नहीं पाए।

सेंटर फॉर हॉलिस्टिक डेवलपमेंट (सीएचडी) से मिले आंकड़ों के अनुसार एक से 22 जनवरी के बीच अकेले दिल्ली में हुई इतनी बड़़ी संख्या में बेघरों की मौत सरकार के ‘हर एक को पक्का घर’ के दावों की पोल खोलती है। विदित हो कि सीएचडी और दिल्ली सरकार की स्वायत्त संस्था दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डुसिब) साथ मिलकर बेघरों की मौतों का आंकड़़ा एकत्रित करते हैं। इसमें दिल्ली पुलिस व अन्य निजी एजेंसियां विभिन्न अस्पतालों के पोस्टमार्टम हाउस में रखे गए शवों की शिनाख्त के जरिये पहचान करती हैं।

कितना दुखद है कि सरकारी उदासीनता के चलते संसद भवन से कुछ ही दूरी पर मौसम की मार से इंसान की जिंदगी ठंडी पड़ जा रही है। आश्रय गृहों का हाल यह है कि सीलन, बदबू, पानी की कमी जैसी बुनियादी सुविधाएं बेहाल हैं। ऐसे में आसमान के नीचे जिंदगी असमय मौत का शिकार हो रही है।इसके लिए सरकार का संवेदनशील होना बहुत जरूरी है। 

सत्ता के केंद्र लुटियन दिल्ली में ही गोल मार्केट, बाबा खड़क सिंह मार्ग, बंगला साहिब, मिंटो रोड आदि इलाकों में खुले में रात बिताने वाले दिख जाते हैं। इसके अलावा कड़कड़डूमा, आईटीओ, यमुना बैंक, लक्ष्मी नगर, विवेक विहार समेत कई ऐसे इलाके हैं जहां बेघर फुटपाथ पर सोते और अलाव के सहारे रात गुजारते दिख जाएंगे। चिकित्सक बताते हैं कि यदि पेट खाली हो तो ठंड की चोट जानलेवा हो जाती है।

दिल्ली सरकार का दावा है कि महानगर में स्थापित रैन बसेरों में हर रात बीस हजार लोग आश्रय पा रहे हैं। इनमें स्थाई भवन केवल 82 हैं. पोरता केबिन वाले 103 और अस्थाई टेंट वाले 134 रैन बसेरे सरकारी रिकार्ड में है। इसके बावजूद आईएसबीटी, उसके पास निगम बोध घाट, हनुमान मंदिर, कनाॅट प्लेस से लेकर मूलचंद, आईआईटी और धौलकुआं के फ्लाई ओवर के नीचे हजारों लोग रात काटते मिल जाएंगे। 

टॅग्स :दिल्लीदिल्ली सरकारHealth and Family Welfare Department
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