कृत्रिम ऑक्सीजन बनाम प्राकृतिक प्राणवायु, प्रमोद भार्गव का ब्लॉग

By प्रमोद भार्गव | Published: June 28, 2021 03:52 PM2021-06-28T15:52:49+5:302021-06-28T15:53:53+5:30

25 अप्रैल से 10 मई के बीच दिल्ली सरकार ने दिल्ली के अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत को चार गुना अधिक बढ़ा दिया था.

covid pandemic second wave Artificial Oxygen Vs Natural Breathing Pramod Bhargava's Blog | कृत्रिम ऑक्सीजन बनाम प्राकृतिक प्राणवायु, प्रमोद भार्गव का ब्लॉग

देश का ऐसा कोई चिकित्सा संस्थान नहीं था, जिसे इस कमी से न जूझना पड़ा हो.  

Highlightsदिल्ली के अस्पतालों को जरूरत तीन सौ मीट्रिक टन ऑक्सीजन की थी.मांग के कारण 12 राज्यों को ऑक्सीजन के संकट से जूझना पड़ा.देश में कोरोना की दूसरी लहर ने ऑक्सीजन की कमी के चलते कहर ढा दिया था.

कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की खपत पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित ऑडिट टीम की ऑक्सीजन रिपोर्ट ने राजनीति गर्मा दी है.

 

रिपोर्ट में कथित तौर पर कहा गया है कि 25 अप्रैल से 10 मई के बीच दिल्ली सरकार ने दिल्ली के अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत को चार गुना अधिक बढ़ा दिया था. दिल्ली के अस्पतालों को जरूरत तीन सौ मीट्रिक टन ऑक्सीजन की थी, किंतु मांग 1200 मीट्रिक टन की की गई. इस मांग के कारण 12 राज्यों को ऑक्सीजन के संकट से जूझना पड़ा.

देश में कोरोना की दूसरी लहर ने ऑक्सीजन की कमी के चलते कहर ढा दिया था. देश का ऐसा कोई चिकित्सा संस्थान नहीं था, जिसे इस कमी से न जूझना पड़ा हो.  विशेषज्ञों का कहना है कि यदि अधिकतम ऑक्सीजन देने वाले पेड़ धरती पर लगाए गए होते तो इस कृत्रिम ऑक्सीजन की जरूरत ही नहीं पड़ती.

समय के साथ आधुनिक होती दुनिया ने पेड़ों की बेरहमी से कटाई की और हम जीवन देने वाली प्राणवायु का भयावह संकट ङोल रहे हैं. जानकारों का मानना है कि अगर दुनिया में पेड़ न हों तो ऑक्सीजन बनाने के कितने भी संयंत्न लगा लीजिए, पूर्ति नहीं होगी. फिलहाल कृत्रिम ऑक्सीजन तैयार करने के जितने भी उपाय जताए जा रहे हैं, वे आग लगने पर कुआं खोदने जैसे हैं.

हालांकि देश में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है. रोजाना आठ हजार टन ऑक्सीजन की जरूरत है, जिसका उत्पादन हो रहा है. लेकिन यह जो आपदा आई थी, उसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी. नतीजतन ऑक्सीजन की आवाजाही के लिए जितने टैंकरों की जरूरत थी, उसके दस फीसदी भी उपलब्ध नहीं थे. ज्यादातर ऑक्सीजन संयंत्न भी हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में हैं, जबकि संकट महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली में सबसे ज्यादा था. इसलिए ऑक्सीजन ढुलाई की चुनौती से निपटना मुश्किल हुआ.

वन-सरंक्षण को लेकर चलाए गए तमाम उपायों के बावजूद भारत में इसका असर दिखाई नहीं दे रहा है. पिछले 25 वर्षो में भारत में वन तेज रफ्तार से कम हुए हैं.  वैश्विक वन संशोधन आकलन-2015 रिपोर्ट के मुताबिक 1990 से 2015 तक दुनिया में जंगल का दायरा तीन फीसदी तक सिमट गया है. वृक्षों का संरक्षण इसलिए जरूरी है, क्योंकि वृक्ष जीव-जगत के लिए जीवनदायी तत्वों का सृजन करते हैं.

वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, भू-क्षरण न हो, यह पेड़ों की अधिकता से ही संभव है. वर्षा चक्र की नियमित निरंतरता पेड़ों पर ही निर्भर है. पेड़ मनुष्य जीवन के लिए कितने उपयोगी हैं, इसका वैज्ञानिक आकलन भारतीय अनुसंधान परिषद् ने किया है. इस आकलन के अनुसार, उष्ण कटिबंधीय क्षेत्नों में पर्यावरण के लिहाज से एक हेक्टेयर क्षेत्न के वन से 1.41 लाख रुपए का लाभ होता है.

इसके साथ ही 50 साल में एक वृक्ष 15.70 लाख की लागत का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लाभ देता है. पेड़ लगभग 3 लाख रु पए मूल्य की भूमि की नमी बनाए रखता है, 2.5 लाख रुपए मूल्य की ऑक्सीजन, 2 लाख रुपए मूल्य के बराबर प्रोटीनों का संरक्षण करता है. पेड़ों के महत्व का तुलनात्मक आकलन अब शीतलता पहुंचाने वाले विद्युत उपकरणों के साथ भी किया जा रहा है.

एक स्वस्थ वृक्ष जो ठंडक देता है, वह 10 कमरों में लगे वातानुकूलितों के लगातार 20 घंटे चलने के बराबर होती है. घरों के आसपास पेड़ लगे हों तो वातानुकूलन की जरूरत 30 प्रतिशत घट जाती है. इससे 20 से 30 प्रतिशत तक बिजली की बचत होती है. एक एकड़ क्षेत्न में लगे वन छह टन कॉर्बन डाईऑक्साइड सोखते हैं, इसके उलट चार टन ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं, जो 18 व्यक्तियों की वार्षिक जरूरत के बराबर होती है. हमारी ज्ञान परंपराओं में आज भी ज्ञान की यही महिमा अक्षुण्ण है, लेकिन यंत्नों के बढ़ते उपयोग से जुड़ जाने के कारण हम प्रकृति से निरंतर दूरी बनाते जा रहे हैं.

तय है कि वैश्विक रिपोर्ट में पेड़ों के नष्ट होते जाने की जो भयावहता सामने आई है, यदि वह जारी रहती है तो पेड़ तो नष्ट होंगे ही, मनुष्य भी नष्ट होने से नहीं बचेगा. गोया, ऐसे जैविक हमलों (बायोलॉजिकल वार) से मानव आबादियों को बचाए रखना है तो ऑक्सीजन निर्माण के कृत्रिम उपायों से बेहतर होगा कि स्थाई रूप से प्राणवायु देने वाले पेड़ घर-घर और गली-गली लगाए जाएं.

Web Title: covid pandemic second wave Artificial Oxygen Vs Natural Breathing Pramod Bhargava's Blog

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