संतोष देसाई का ब्लॉगः शहरों का सामने आता नया रूप
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 30, 2020 09:16 AM2020-03-30T09:16:29+5:302020-03-30T09:16:29+5:30
कोरोना वायरसः हमारे सामने जो आज परिस्थिति है वह एक अवसर है बिना किसी आडंबर के आत्मनिरीक्षण करने का. हम गर्मियों को महसूस कर सकते हैं, चिड़ियों की चहचहाहट सुन सकते हैं, अलमारियां साफ कर सकते हैं और उनमें जगह बना सकते हैं, हम अपने भीतर की यात्र पर जा सकते हैं जिसका जरूरी नहीं है कि कोई अर्थ हो ही.
पक्षियों की चहचहाहट के साथ शहर जीवंत हैं. कौन जानता था कि कांक्रीट की विशाल संरचनाओं में, जिन्हें हम घर कहते हैं, इतने सारे पक्षी भी घोंसला बनाते हैं! सोशल मीडिया ऐसे लोगों से भरा हुआ है जिन्होंने इस जादुई सच की खोज की है. शहर कभी चुप नहीं होते. हमने शहरों को कभी शांत रहते नहीं देखा है. इमारतें विश्रम की अवस्था में, भौंचक्की सड़कें और शहरों में रुका हुआ जीवन एक नया अहसास है. बड़े पैमाने की शांति छोटी शांति की तुलना में काफी अलग होती है. दोपहर की शांति का अहसास आधी रात या तड़के की शांति से एकदम अलग होता है. जैसे प्रकृति शानदार, विशाल और शांत है, आज वैसे ही शहर हैं. वे लैंडस्केप के समान दिखते हैं.
जहां पर अभी हम खुद को पा रहे हैं वह बहुत ही डरावना परिदृश्य है. अपने अदृश्य दुश्मन के आगे हम बेबस हैं और इससे लड़ने का एकमात्र तरीका है कि हम अपने आपको अपने घरों में ही अपने परिवार के साथ कैद कर लें. हमारे सामने जो आज परिस्थिति है वह एक अवसर है बिना किसी आडंबर के आत्मनिरीक्षण करने का. हम गर्मियों को महसूस कर सकते हैं, चिड़ियों की चहचहाहट सुन सकते हैं, अलमारियां साफ कर सकते हैं और उनमें जगह बना सकते हैं, हम अपने भीतर की यात्र पर जा सकते हैं जिसका जरूरी नहीं है कि कोई अर्थ हो ही.
बेशक, दिन हफ्तों में बदल सकते हैं और कौन जानता है कि वे महीनों में भी बदल जाएं, चीजें भी बदल सकती हैं. शहर अधीरता से चिड़चिड़ा सकते हैं, हमें घरों में ही रहना पड़ सकता है. पक्षी चहचहाते हुए शांत हो जाएंगे और फूल खिल कर मुरझा जाएंगे. लेकिन आखिरकार अंधेरा छंटेगा.
हम खुद के बारे में और अपने शहर के बारे में एक नई प्रकार की जानकारी हासिल कर सामने आएंगे. हम पाएंगे कि महानगरों के भीतर एक शांत शहर भी रहता है जिस तक हम तभी पहुंच सकते हैं जब हम अपने भीतर तक पहुंचें. तब शहर कभी पहले जैसे नहीं रह जाएंगे और न ही हम.