लगभग 85 साल बाद बिहार में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक की असल मंशा समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बिहार को लोकतंत्र की जननी बताते हुए कहा कि यह बैठक ऐसे समय हुई, जब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर भारत चुनौतीपूर्ण और चिंताजनक दौर से गुजर रहा है. उधर महासचिव केसी वेणुगोपाल ने दावा किया कि जिस तरह 2023 में तेलंगाना में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद हुए विधानसभा चुनाव में वहां सरकार बन गई, उसी की पुनरावृत्ति बिहार में होनेवाली है.
सभी जानते हैं कि चुनाव वाले राज्यों में बड़ी बैठक कर राजनीतिक दल माहौल बनाने की कोशिश करते हैं. फिल्मी सितारों और क्रिकेटरों की तरह हमारे राजनेता भी कम अंधविश्वासी नहीं हैं, लेकिन लोकतंत्र में सरकार जनादेश से बनती है, ‘टोटकों’ से नहीं. अगर महज कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक करने से आगामी चुनाव में सरकार बन जाती है,
तब तो यह ‘टोटका’ हर विधानसभा चुनाव से पहले आजमाया जाना चाहिए? बेशक पटना के सदाकत आश्रम में लगभग पांच घंटे चली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पारित प्रस्तावों में उठाए गए मुद्दों को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन असल मकसद इसी साल होनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए संगठन में उत्साह भरने, मतदाताओं को आकर्षित करने और महागठबंधन में अधिकतम एवं जीत की संभावनाओंवाली सीटों के लिए दबाव बनाना ही है.
हालांकि सोनिया और प्रियंका गांधी इस महत्वपूर्ण बैठक में अनुपस्थित रहीं. यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि बिहार में महागठबंधन में सीटों का बंटवारा किस तरह हो पाता है. जाति जनगणना और वोट चोरी जैसे मुद्दों से उत्साहित कांग्रेस अगर इस बार भी 70 सीटों पर लड़ने की जिद करेगी तो महागठबंधन में मुश्किलें बढ़ेंगी.
राहुल गठबंधन धर्म के पक्षधर माने जाते हैं, लेकिन हरियाणा और दिल्ली के उदाहरण बताते हैं कि वे प्रदेश इकाइयों के दबाव में झुक भी जाते हैं. अगर तेजस्वी यादव को महागठबंधन का ‘मुख्यमंत्री-चेहरा’ घोषित करने में टालमटोल के पीछे सीट बंटवारे में दबाव की रणनीति है, तो साफ है कि कांग्रेस ने महाराष्ट्र से कोई सबक नहीं सीखा है.
ज्यादातर जानकार मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करनेवाले महाविकास आघाड़ी यानी ‘इंडिया’ गठबंधन ने चंद महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे को ‘मुख्यमंत्री-चेहरा’ घोषित किया होता तो वैसी दुर्दशा नहीं होती.