वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः डिफॉल्टरों को बचाने का कुचक्र
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 6, 2018 09:27 PM2018-11-06T21:27:02+5:302018-11-06T21:27:02+5:30
आयोग ने रिजर्व बैंक, वित्त मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय से कहा है कि इस मामले पर (पूर्व गवर्नर, रिजर्व बैंक) रघुराम राजन के पत्र को भी सार्वजनिक किया जाए। सूचना आयोग को बधाई कि उसने इतना कठोर कदम उठाया है।
वेदप्रताप वैदिक, वरिष्ठ पत्रकार
केंद्रीय सूचना आयोग ने रिजर्व बैंक और सरकार दोनों की फजीहत कर दी है। उसने रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल को एक नोटिस भेजकर पूछा है कि उन्होंने अभी तक उन लोगों के नाम क्यों नहीं जग-जाहिर किए हैं, जो जानबूझकर बैंकों का कर्ज डकार गए हैं? उसने पटेल पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है और उनसे पूछा है कि आप पर सख्त जुर्माना क्यों नहीं किया जाए?
आयोग ने रिजर्व बैंक, वित्त मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय से कहा है कि इस मामले पर (पूर्व गवर्नर, रिजर्व बैंक) रघुराम राजन के पत्र को भी सार्वजनिक किया जाए। सूचना आयोग को बधाई कि उसने इतना कठोर कदम उठाया है। इस कदम से सरकार और रिजर्व बैंक, दोनों की किरकिरी हो रही है। असली प्रश्न यहां यह है कि बैंकों को लूटनेवाले इन अरबपतियों के नामों को छिपाए रखने का दुस्साहस कौन कर रहा है? रिजर्व बैंक ऐसा कहीं सरकार के इशारे पर तो नहीं कर रहा है?
सरकार कहती है कि यह अरबों-खरबों के कर्ज की ठगी कांग्रेस के जमाने में हुई है लेकिन आंकड़े बताते हैं कि जो डूबत खाते का कर्ज मार्च 2015 में लगभग साढ़े तीन लाख करोड़ रु। का था, वही मार्च 2018 में बढ़कर साढ़े 10 लाख करोड़ का हो गया है। माना यह जाता है कि ऐसा कर्ज दिलाने में सबसे बड़ा दबाव सत्तारूढ़ नेताओं का होता है। यदि यह सत्य है तो इन लोगों के नाम छिपाकर रखने में कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारें और उनके नेता जिम्मेदार हैं।
यदि नाम खुलेंगे तो उसके संरक्षकों के नाम भी सामने आ जाएंगे। सूचना आयोग को पता करना चाहिए कि इन नामों को छिपाने में सरकार का कितना हाथ है। रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल और सरकार में भी अब ठन गई है। कोई आश्चर्य नहीं कि पटेल इन ठगों और नेताओं की मिलीभगत को उजागर कर दें। यदि ऐसा हो गया तो मोदी सरकार के संस्थागत संकटों में यह एक नया संकट जुड़ जाएगा।