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ब्लॉग: तीस्ता नदी पर चीन का दखल चिंताजनक

By प्रमोद भार्गव | Updated: January 8, 2024 10:51 IST

तीस्ता के उद्गम स्रोत पूर्वी हिमालय में स्थित सिक्किम राज्य के झरने है। ये झरने एकत्रित होकर नदी के रूप में बदल जाते हैं। नदी सिक्किम और पश्चिम बंगाल से बहती हुई बांग्लादेश में पहुंचकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है इसलिए सिक्किम और पश्चिम बंगाल के पानी से जुड़े हित इस नदी से गहरा संबंध रखते हैं।

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ठळक मुद्देजल-बंटवारे पर सहमति से समझौते की बात चल रही हैनदी पर एक विशाल जलाशय बनाने के बहाने चीन ने दिया दखलजल-बंटवारे को लेकर चल रहा लंबा विवाद और गहरा सकता है

नई दिल्ली: अभी तक चीन का हस्तक्षेप भारत और बांग्लादेश में से बहने वाली नदी तीस्ता पर दिखाई नहीं देता था. किंतु अब इस नदी पर एक विशाल जलाशय बनाने के बहाने चीन ने बांग्लादेश की जमीन पर तीस्ता नदी पर विकास कार्यों में सहयोग बढ़ाने की इच्छा जताई है। यह जानकारी बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने दी है। बांग्लादेशी अधिकारियों का कहना है कि चीन ने तीस्ता नदी में वृहद स्तर पर सफाई करने, जलाशय और तटबंध बनाने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन करोड़ों डॉलर की इस परियोजना को अब तक उसने रोके रखा है क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी भागीदारी से इस नदी पर भारत और बांग्लादेश के बीच जल-बंटवारे को लेकर चल रहा लंबा विवाद और गहरा सकता है।

हालांकि 2009 में प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता पर काबिज होने के बाद से ही जल-बंटवारे पर सहमति से समझौते की बात चल रही है। दोनों पड़ोसी देश तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की 2011 में की गई बांग्लादेश की यात्रा के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर के लिए लगभग तैयार थे, लेकिन प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अंतिम समय पर समझौते के विरुद्ध खड़ी हो गईं, नतीजतन तय प्रस्ताव को निलंबित कर दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में इस पहलू पर बातचीत चल रही है।

तीस्ता के उद्गम स्रोत पूर्वी हिमालय में स्थित सिक्किम राज्य के झरने है। ये झरने एकत्रित होकर नदी के रूप में बदल जाते हैं। नदी सिक्किम और पश्चिम बंगाल से बहती हुई बांग्लादेश में पहुंचकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है इसलिए सिक्किम और पश्चिम बंगाल के पानी से जुड़े हित इस नदी से गहरा संबंध रखते हैं। तीस्ता नदी सिक्किम राज्य के लगभग समूचे मैदानी क्षेत्रों में बहती हुई बंग्लादेश की सीमा में करीब 2800 वर्ग किमी क्षेत्र में बहती है। नतीजतन इन क्षेत्रों के रहवासियों के लिए तीस्ता का जल आजीविका के लिए वरदान बना हुआ है। इसी तरह पश्चिम बंगाल के लिए भी यह नदी बांग्लादेश के बराबर ही महत्व रखती है।

इसी कड़ी में वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के बांग्लादेश दौरे से पहले इस नदी जल के बंटवारे पर प्रस्तावित अनुबंध की सभी शर्तें सुनिश्चित हो गई थीं, लेकिन पानी की मात्रा के प्रश्न पर ममता ने आपत्ति जताकर ऐन वक्त पर डॉ सिंह के साथ ढाका जाने से इनकार कर दिया था। हालांकि तब की शर्तें सार्वजनिक नहीं हुई हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वर्षा ऋतु के दौरान तीस्ता का पश्चिम बंगाल को 50 प्रतिशत पानी मिलेगा और अन्य ऋतुओं में 60 फीसदी पानी दिया जाएगा। ममता की जिद थी कि भारत सरकार 80 प्रतिशत पानी बंगाल को दे, तब इस समझौते को अंतिम रूप दिया जाए। लेकिन तत्कालीन केंद्र सरकार इस प्रारूप में कोई फेरबदल करने को तैयार नहीं हुई, क्योंकि उस समय केंद्रीय सत्ता के कई केंद्र थे।

टॅग्स :चीनबांग्लादेशभारतपश्चिम बंगालMamta Banerjee
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