किरण चोपड़ा
यह सच है कि जीवन में हर कोई सुख चाहता है. लेकिन जीवन में संस्कार अगर हो तो और भी अच्छा है. संस्कारों का घनिष्ठ संबंध संतान से माना जाता है. इसी मामले में कुछ दिन पहले मुझे एक ऐसे डिबेट में सम्मिलित होने का अवसर मिला जहां संतान की अनिवार्यता और वृद्धि को लेकर लंबी-चौड़ी चर्चा भी चली. माहौल उस समय और भी चर्चित हो गया जब कुछ लोगों ने हिंदू और सनातनी परिवारों से ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की बात कही. संतान वृद्धि को लेकर कई वक्ताओं ने इसे अनिवार्यता से जोड़ दिया लेकिन मेरा मानना है कि आज के जमाने में संतान वृद्धि के साथ-साथ अच्छे लालन-पालन पर भी गौर किया जाना चाहिए. आज हम जिस दौर में जी रहे हैं वहां नई पीढ़ी भविष्य को लेकर ज्यादा ही चिंतित और ज्यादा ही सतर्क है.
फिर भी भारत की अगर दुनिया में संस्कृति के मामले में पहचान है तो यह उसके संस्कार हैं. हमारी मातृभूमि इस बात की गवाह है कि माताओं ने ऐसी संतानों को पैदा किया है जिनके दम पर हम एक महान शक्ति हैं. हमारे अध्यात्म ने हमें संस्कार दिए हैं और हमारी संतानों की पीढ़ियों ने इसका पालन करते हुए देश में आदर्श स्थापित किए हैं.
इस कड़ी में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी ने दिल्ली में अपनी व्याख्यानमाला के दौरान भारतीय विवाहित जोड़ों से तीन बच्चे पैदा करने का आह्वान भी किया है. राष्ट्र हित में तीन बच्चे होने की बात को भागवत जी ने प्रमुखता से रखा है. रिश्तों के महत्व को बरकरार रखने के प्रति हमारा भी यही मानना है और भागवत जी के आह्वान का स्वागत करना तो बनता है.
मेरा मानना है कि संतान और संस्कार का बहुत महत्व है. जब हम स्कूल में ही थे तब से ही घरों में रामायण, योग वासिष्ठ, विष्णु पुराण, श्रीमद्भागवत और भगवद्गीता के बारे में चर्चा होती थी. मानव जीवन को हमारा अध्यात्म जीवन के उस गृहस्थ आश्रम से भी जोड़ता है जहां गृहस्थी चलाए जाने का प्रावधान है लेकिन आज के समय में अगर गृहस्थ जीवन में ही पति-पत्नी एक-दूसरे के खिलाफ भड़क रहे हैं.
कोर्ट तक पहुंच रहे हैं तो इसे क्या कहेंगे. चिंतनीय बात यह है कि आज की युवा पीढ़ी जिसने लिव इन रिलेशन की संस्कृति को जन्म दिया है अर्थात वे शादी करें या न करें किसी से भी संबंध बना के रहें उसमें किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए. यह एक बहुत संवेदनशील और गर्म मामला था जिसके बारे में मैं कहूंगी कि इसे प्रचारित करके हमारे संस्कारों पर ही चोट की जा रही है.
सवाल पक्ष या विपक्ष का नहीं है, संस्कारों का है. आदर्श मानव जीवन का है. संस्कारों का मतलब है संतान को ऐसी बातें बताना जो जीवन में उसके लिए उपयोगी हों और जन्म से लेकर अंत्येष्टि तक अध्यात्म के सभी सोलह संस्कारों का पालन करते हुए एक ऐसा उदाहरण स्थापित करें कि सब उसकी प्रशंसा करें. लेकिन कई मामले चौंकाने वाले हैं जिनमें लिव इन रिलेशन मुख्य है. हमारे अध्यात्म को स्वीकार किया जाना चाहिए और आदर्श जीवन के संस्कारों का पालन किया जाना चाहिए.