विजय दर्डा का ब्लॉगः हमारा लोकतंत्र और आवारा भीड़ के खतरे!

By विजय दर्डा | Updated: December 10, 2018 05:52 IST2018-12-10T05:52:53+5:302018-12-10T05:52:53+5:30

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के स्याना कोतवाली क्षेत्र में एक सुबह अचानक गोकशी की ‘खबर’ फैलती है और सैकड़ों लोग बेकाबू होकर सड़क पर उतर आते हैं. तोड़फोड़ शुरू कर देते हैं. आगजनी पर उतर आते हैं.

bulandshahr violence: Our democracy and danger crowd | विजय दर्डा का ब्लॉगः हमारा लोकतंत्र और आवारा भीड़ के खतरे!

विजय दर्डा का ब्लॉगः हमारा लोकतंत्र और आवारा भीड़ के खतरे!

बुलंदशहर के स्याना कोतवाली थाने के इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या महज एक दुर्घटना तो कतई नहीं है. यह तो आवारा भीड़ के उन्मादी और खूनी हो जाने की वो तस्वीर है जो सिहरन पैदा करती है. साथ में कई सारे सवाल भी पैदा करती है. सबसे बड़ा सवाल तो यह पैदा होता है कि क्या हमारी सत्ता व्यवस्था इतनी कमजोर हो गई है कि धर्माध आवारा भीड़ का मुकाबला भी न कर सके? 

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के स्याना कोतवाली क्षेत्र में एक सुबह अचानक गोकशी की ‘खबर’ फैलती है और सैकड़ों लोग बेकाबू होकर सड़क पर उतर आते हैं. तोड़फोड़ शुरू कर देते हैं. आगजनी पर उतर आते हैं. एक इंस्पेक्टर कुछ कांस्टेबल के साथ उन्हें यह आश्वासन देने जाता है कि गोकशी की जांच होगी और दोषियों के खिलाफ पुलिस सख्त कार्रवाई  करेगी. 

इंस्पेक्टर की बात सुनने के बजाय भीड़ उस पर टूट पड़ती है. उसे घसीटती है, पीटती है और फिर भीड़ में से ही कोई उन्हें गोली मार देता है! बचे हुए कांस्टेबल अपनी जान बचाकर भाग खड़े होते हैं. इस मंजर को क्या आप दुर्घटना मानेंगे? कतई नहीं! ये उस उन्माद का नतीजा है जो हमारे समाज में तेजी से फैलता जा रहा है. और हां, एक और बात ध्यान में रखी जानी चाहिए कि अखलाक की हत्या की प्रारंभिक जांच इंस्पेक्टर सुबोध ने ही की थी. 

इसमें कोई संदेह नहीं कि गौ माता की रक्षा करना हम सबका कर्तव्य है. मैं ‘हम सबका’ शब्द उपयोग कर रहा हूं तो इसका अर्थ हमारी सत्ता व्यवस्था से है. ये सत्ता व्यवस्था हमने ही बनाई है. सरकार में हमारे वोटों से चुने लोग बैठे हैं. प्रशासन और पुलिस जनता के प्रति जिम्मेवार है तो हमें उन पर भरोसा करना चाहिए. पुलिस गोकशी की जांच करती, दोषियों को पकड़ती और उन्हें कानून के अनुसार सजा भी होती, लेकिन यहां तो भीड़ खुद ही सजा देने को तैयार है! कानून की ऐसी धज्जियां उड़ाने की इजाजत किसी को कैसे दी जा सकती है? 

बुलंदशहर की घटना कोई पहली घटना नहीं है. इस देश में गोकशी और गो तस्करी के आरोप में दर्जनों लोग भीड़ का शिकार हो चुके हैं. इस भीड़तंत्र पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी तीखी टिप्पणी की है और राज्यों को सचेत भी किया है लेकिन हालात हैं कि सुधरते नहीं दिख रहे. भीड़ ने एक पुलिस वाले की हत्या करके पूरी व्यवस्था को चुनौती दे दी है. समाज में यह भय पैदा होना स्वाभाविक है कि जब पुलिस वाले भी भीड़ के शिकार हो सकते हैं तो आम आदमी की हैसियत ही क्या है? उन्मादी भीड़ यही तो चाहती है कि उसकी दहशत समाज में फैले!

अब बड़ा सवाल यह है कि यह भीड़ क्या अचानक पैदा हो जाती है? या कोई इसके पीछे है? यदि घटनाओं पर गौर करें तो साफ नजर आता है कि इसके पीछे एक खास तरह की विचारधारा से उपजी धर्माधता बड़ा कारण है जो न केवल भीड़ के जुटने का कारण बनती है बल्कि उस भीड़ को आवारा, उन्मादी और क्रूर भी बना रही है. ऐसी भीड़ को उन नेताओं से प्रोत्साहन मिलता है जिनके लिए राजनीति का    आधार केवल धर्म है. जाहिर सी  बात है कि धर्म के आधार पर कुछ लोगों को भड़काना बहुत आसान होता है. जिनके पास विवेक नहीं है, वे तो भड़क ही जाते हैं. उन्हें इस   बात से क्या लेना-देना कि उनकी हरकतों के कारण समाज के ताने-बाने को कितना नुकसान पहुंच रहा है. 

समाज में तेजी से असहिष्णुता बढ़ रही है और यहां तक कि कला और संगीत को भी इसी नजरिये से देखा जाने लगा है. फिल्म पद्मावत को लेकर कितना बवाल मचाया गया और किस तरह से कुछ राज्यों ने उपद्रवियों का साथ देते हुए फिल्म को बैन करने की घोषणा तक कर दी. अब फिल्म केदारनाथ का विरोध उत्तराखंड में किया जा रहा है. यह सब हमारे भीतर पैठती जा रही असहिष्णुता और संवेदनहीनता का ही नतीजा है. कला को भी यदि आप विचारधारा में बांधने की कोशिश करेंगे तो फिर कला का अर्थ ही क्या रह जाएगा? 

बुलंदशहर की घटना के बाद तो यह कहने में कोई हर्ज ही नहीं है कि उन्मादी तत्वों के हौसले बुलंद हो रहे हैं और उन हौसलों को ताकत भी मिल रही है. यह स्थिति अत्यंत खतरनाक है. हमारा समाज हमेशा से सहिष्णु रहा है और हमारी संस्कृति की विविधता और जिंदा रहने की ताकत का यही सबसे बड़ा कारण भी रहा है. हम उस संस्कृति के लोग हैं जो वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास रखते हैं. अपनी इसी विविधता और संस्कृति को बनाए रखने के लिए भारत ने लोकतंत्र का वरण किया. आज हालात बिगड़ रहे हैं. ये भीड़ इतना खौफ फैलाना चाह रही है कि  विरोध का कोई स्वर उठे ही नहीं. लोकतंत्र के लिए यह आवारा भीड़ बहुत खतरनाक है. 

Web Title: bulandshahr violence: Our democracy and danger crowd

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे