जिस देश में कभी साइकिल और बैलगाड़ी पर रखकर रॉकेट इधर से उधर ले जाए जाते थे, उसी देश ने आज चांद और आसमान पर कब्जा करना सीख लिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने तीसरे चंद्र मिशन, चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया है। चंद्रयान-3 के पृथ्वी की कक्षा में पहुंचने के बाद लूनर ट्रांसफर ट्रेजेक्टरी में डाला गया। यह मिशन करीब 45 से 48 दिन की यात्रा के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंड करेगा। अगर दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिग होती है तो भारत दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला विश्व का पहला देश बन जाएगा।
चांद हमें पृथ्वी के क्रमिक विकास और सौर मंडल के पर्यावरण की महत्वपूर्ण जानकारियां दे सकता है। वहां पानी होने के सबूत तो चंद्रयान-1 ने खोज लिए थे और चंद्रयान-2 से वहां की सतह की मैपिंग हो गई थी लेकिन चंद्रयान-3 से वहां पर मौजूद जरूरी मिनरल्स का पता लगाया जा सकेगा। चंद्रयान-3 का लैंडर जहां उतरेगा, उसी जगह पर यह जांचेगा कि चंद्रमा पर भूकंप आते हैं या नहीं। रोवर चंद्रमा के सतह की रासायनिक जांच करेगा कि तापमान और वातावरण में आर्द्रता है कि नहीं। इसरो का टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क चंद्रयान-3 के संपर्क में है।
कहा जा रहा है कि चंद्रयान-3 के जरिये भारत एक ऐसे अनमोल खजाने की खोज कर सकता है जिससे न केवल अगले सैकड़ों साल तक ऊर्जा की इंसानी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है बल्कि खरबों डॉलर की कमाई भी हो सकती है। चांद से मिलने वाली यह ऊर्जा न केवल सुरक्षित होगी बल्कि तेल, कोयले और परमाणु कचरे से होने वाले प्रदूषण से मुक्त होगी। स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) की मदद से सात धातुओं की खोज का भी प्रयास किया जाएगा। इनमें मैग्नीशियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटैनियम, आयरन तथा एल्युमीनियम शामिल हैं। इस उपकरण से निकलने वाली किरणें इन धातुओं को खोजने का प्रयास करेंगी। इसके पीछे मकसद यह देखना है कि क्या वहां ऐसी धातुएं अभी हैं या कभी थीं, जो इंसानी जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। इससे चंद्रमा की संरचना को समझने में भी मदद मिलेगी।