राजनीति सत्ता एक खेल है जो बिना नियमों या नैतिकता के खेला जाता है। यह दोस्तों को दुश्मनों में बदलने की कला भी है। शासन करने के लिए जनादेश मांगने के नाम पर, राजनीति प्रतिद्वंद्वी की छवि को नष्ट करने का एक उपकरण बन सकती है।
ओडिशा में भाजपा और बीजू जनता दल (बीजद) के बीच चल रही जुबानी जंग को इसके अलावा और किसी तरीके से नहीं समझा जा सकता। 321 ईसा पूर्व के कलिंग युद्ध की तरह, एक तरफ शक्तिशाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके दक्ष सेनापति अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते हैं, चाहे कोई भी कीमत चुकानी पड़े। दूसरी तरफ सज्जन-राजनेता नवीन पटनायक और उनके मूक प्रहरी हैं जो अपने पिता की जागीर को बरकरार रखने के लिए चुपचाप संघर्ष कर रहे हैं।
इस समय भारत में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान बनाने वाले 77 वर्षीय पटनायक ओडिशा पर शासन करने के लिए छठे कार्यकाल की मांग कर रहे हैं। मितव्ययी जीवन जीने वाले एक नपे-तुले व्यक्ति, पटनायक एक ऐसे दुर्लभ राजनेता बन गए हैं जिनसे उनके कट्टर दुश्मन भी नफरत करना पसंद नहीं करेंगे लेकिन अब उन्हें अब तक की सबसे खराब चुनावी लड़ाई में घसीटा गया है।
जहां वह सत्ता बरकरार रखने के अपने दृढ़ लक्ष्य पर चल रहे हैं, वहीं उनके सुदृढ़ विरोधियों ने उन्हें पद से हटाने के लिए एक शक्तिशाली अभियान शुरू कर दिया है और उन्होंने मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए उनके काम को नहीं, बल्कि उनकी शारीरिक फिटनेस और निजी सहयोगी की पसंद को निशाना बनाया है। भाजपा का कहना है कि पटनायक ने अपनी राजनीतिक चमक व अजेयता खो दी है।
चूंकि कांग्रेस राज्य से लगभग गायब हो गई है, यह भाजपा है जो सीएम को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाकर संभावित जीत को महसूस कर रही है। ऐसा करते हुए उसने एक विश्वसनीय सहयोगी को त्याग दिया है जिसने संसद में एनडीए के महत्वपूर्ण विधेयकों का समर्थन किया था। रणनीतिक रूप से, भाजपा ने अपना ध्यान प्रदर्शन से हटाकर धारणा पर केंद्रित कर दिया है। इसका उद्देश्य सीएम को एक ऐसे नेता के रूप में चित्रित करना है, जिनका प्रशासनिक कौशल कम हो रहा है और जो ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं, जिनकी उड़िया जड़ें नहीं हैं।
यह पहली बार है कि एक अधिकारी से नेता बने व्यक्ति को केंद्रीय जगह मिली है। वी. कार्तिकेयन पांडियन, एक पूर्व आईएएस अधिकारी, जो हमेशा सीएम का दाहिना हाथ रहे हैं, को उड़िया पहचान और इसकी सांस्कृतिक विरासत के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में देखा गया है। एक उड़िया आईएएस अधिकारी से विवाह करने वाले पांडियन को उनकी पार्टी द्वारा राज्य को पिछड़ेपन से निकालकर सबसे तेजी से बढ़ते राज्यों में से एक की वर्तमान स्थिति में लाने का श्रेय दिया जाता है।
चूंकि जाति और क्षेत्रीय आकांक्षाएं चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाती हैं, इसलिए भाजपा को पुरानी कहावत का उपयोग करते हुए सेनापति की तुलना में सैनिक पर हमला करने से अधिक लाभ की उम्मीद है कि आप किसी को तर्क के बजाय उसके पूर्वाग्रहों से ज्यादा प्रभावित कर सकते हैं।
भाजपा के लिए ओडिशा एक नया बाजार प्रतीत होता है और पार्टी को लगता है कि वह इसे हासिल कर सकती है क्योंकि वहां के सबसे शक्तिशाली ब्रांड नवीन पटनायक को व्यापक सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा न केवल 21 लोकसभा सीटों में से कम-से-कम 15 सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है, बल्कि राज्य में पहली बार भगवा सरकार बनाने की भी उसे उम्मीद है।
इसलिए एक बार जब गठबंधन के लिए प्रारंभिक बातचीत विफल हो गई, तो भाजपा ने सभी दिशाओं से अपनी तोपें खोल दीं। रणनीति थी कि शुरुआत में नवीन पटनायक की लोकप्रियता को कमजोर करना और उनके शासन के तहत उड़िया सांस्कृतिक पहचान कमजोर पड़ने के खतरे को दिखाना। अभियान के दौरान भाजपा नेताओं द्वारा दिए गए भाषणों और बीजद की प्रतिक्रिया पर नजर डालने से इसके स्तर का पता चलता है।
मोदी : “मैं नवीन बाबू को चुनौती देना चाहता हूं क्योंकि वह इतने लंबे समय तक सीएम रहे हैं। नवीन बाबू से कागज पर देखे बिना ओडिशा के जिलों और उनके संबंधित मुख्यालयों के नाम बताने को कहें। अगर सीएम राज्य के जिलों का नाम नहीं बता सकते तो क्या उन्हें आपका दर्द पता चलेगा?”
पटनायक : “क्या आपको 2014 और 2019 के चुनावों में किए गए उनके वादे याद हैं? ओडिशा की प्राकृतिक संपदा कोयला है और आप ओडिशा से कोयला लेते हैं, लेकिन पिछले 10 वर्षों में आप रॉयल्टी बढ़ाना भूल गए हैं। पीएम को सिर्फ चुनाव के समय ही ओडिशा की याद आ रही है। आपने संस्कृत भाषा के विकास के लिए 1000 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं, लेकिन उड़िया भाषा के लिए कुछ भी नहीं। आप उड़िया संगीत के बारे में भी भूल गए हैं। ओडिशा में बहुत सारे वीर सपूत हैं, जिनमें से कुछ का नाम पीएम ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान लिया। क्या इनमें से कोई भी भारत रत्न का हकदार नहीं है? आपने कई लोगों को भारत रत्न दिया है, लेकिन आप फिर से ओडिशा के महान सपूत बीजू पटनायक को भूल गए।
गृह मंत्री अमित शाह : “यह विधानसभा चुनाव ओडिशा के गौरव का चुनाव है। क्या कोई तमिल ओडिशा पर शासन कर सकता है? क्या कोई तमिल बाबू ओडिशा चला सकता है? मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, यदि आप भाजपा सरकार बनाते हैं, तो ओडिशा का एक युवा सीएम, एक उड़िया बोलने वाला सीएम, यहां शासन करेगा।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा : “मेरा मानना है कि उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को नवीन बाबू से अकेले में बात करनी चाहिए यह देखने के लिए कि क्या वह खुश और ठीक हैं। मैंने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का उल्लेख किया क्योंकि वे तटस्थ होंगे। एक बार किसी जज को नवीन बाबू से अकेले में 10 मिनट बात करनी चाहिए।’’
पटनायक ने सरमा से कहा : “उनके राज्य का प्रति व्यक्ति घाटा (कर्ज) ओडिशा से दोगुना है। उन्हें वास्तव में अपने राज्य के मामलों को देखना चाहिए। ओडिशा के लोग उन पर हंस रहे हैं...भाजपा के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री ओडिशा आ रहे हैं और इसे देश में नंबर एक बनाने का वादा कर रहे हैं। मुझे लगता है कि उन्हें पहले अपने राज्यों पर ध्यान देना चाहिए।
पांडियन : “मेरी कर्मभूमि ओडिशा है, जबकि जन्मभूमि तमिलनाडु हो सकती है, जिसे मैंने नहीं चुना. मैं सबसे पहले एक भारतीय हूं।”
यद्यपि सार्वजनिक चर्चा व्यक्तित्व-आधारित है, अभियान की धार्मिक अंतर्धारा भी स्पष्ट दिखाई देती है। बीजद नेताओं का मानना है कि भाजपा पटनायक के नरम हिंदुत्व से घबरा गई है। जहां भाजपा और पीएम राम मंदिर के निर्माण के साथ-साथ पूरे भारत में विस्मृत हिंदू मंदिरों को पुनर्जीवित करने में लगे थे, वहीं पटनायक ने कट्टर हिंदू मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए अपनी अनूठी योजनाएं विकसित कीं।
पिछले पांच वर्षों के दौरान ओडिशा सरकार ने राज्य के प्राचीन मंदिरों के पुनरुद्धार पर 4000 करोड़ रुपया से अधिक खर्च किए हैं। उनका मास्टरस्ट्रोक तब दिखा, जब 17 जनवरी को पटनायक ने पुरी में मंदिर के चारों ओर 800 करोड़ रुपया का श्री जगन्नाथ हेरिटेज कॉरिडोर राज्य को समर्पित किया। यह अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन से करीब एक हफ्ते पहले किया गया।
तब से, भाजपा ने अपने सबसे शक्तिशाली मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और अन्य प्रभावी नेताओं को उस उड़िया नेता के खिलाफ हवा का रुख मोड़ने के लिए तैयार किया है, जिन्होंने अपनी पार्टी की एक राज्यसभा सीट इसलिए छोड़ दी थी ताकि मोदी पूर्व आईएएस अधिकारी अश्विनी वैष्णव को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर सकें लेकिन भाजपा राज्य में पूर्ण सत्ता चाहती है, और अब सीमांत खिलाड़ी बनकर संतुष्ट नहीं है।