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ब्लॉगः महिला विकास के बंद दरवाजों को खोलें

By ललित गर्ग | Updated: August 26, 2023 10:41 IST

विभिन्न क्षेत्रों में काम करते एवं अपनी प्रतिभा व क्षमता का लोहा मनवाते हुए भी महिलाएं वेतन आदि में भेदभाव की शिकार हैं, जैसा कि 2019 में ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि काम पर पुरुष समकक्षों की तुलना में महिलाओं को 34 प्रतिशत कम वेतन मिलता है।

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महिला समानता दिवस 26 अगस्त को मनाया जाता है। सन्‌ 1920 में इस दिन संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में 19वां संशोधन स्वीकार किया गया था। यह दिन महिलाओं को पुरुषों के समान मानने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है, जिसने 1893 में महिला समानता की शुरुआत की। महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने वाली एक महिला वकील बेल्ला अब्जुग के प्रयास से 1971 से 26 अगस्त को ‘महिला समानता दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा। इस वर्ष महिला समानता दिवस की थीम ‘समानता को गले लगाओ’ है। यह थीम 2021-26 की रणनीतिक योजना का हिस्सा बनी हुई है।

विभिन्न क्षेत्रों में काम करते एवं अपनी प्रतिभा व क्षमता का लोहा मनवाते हुए भी महिलाएं वेतन आदि में भेदभाव की शिकार हैं, जैसा कि 2019 में ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि काम पर पुरुष समकक्षों की तुलना में महिलाओं को 34 प्रतिशत कम वेतन मिलता है। भारत सरकार के खुद के कर्मचारियों में केवल 11 प्रतिशत महिलाएं हैं। सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए अधिक एवं नए अवसर सामने आने जरूरी हैं।

सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी नाम के थिंक टैंक ने बताया है कि भारत में केवल 7 प्रतिशत शहरी महिलाएं ऐसी हैं, जिनके पास रोजगार है या वे उसकी तलाश कर रही हैं। सीएमआईई के मुताबिक, महिलाओं को रोजगार देने के मामले में हमारा देश इंडोनेशिया और सऊदी अरब से भी पीछे है। दावोस में हुए वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में ऑक्सफैम ने अपनी एक रिपोर्ट ‘टाइम टू केयर’ में घरेलू औरतों की आर्थिक स्थितियों का खुलासा करते हुए दुनिया को चौंका दिया था। वे महिलाएं जो अपने घर को संभालती हैं, परिवार का ख्याल रखती हैं, वह सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक अनगिनत सबसे मुश्किल कामों को करती हैं। प्रश्न है कि घरेलू कामकाजी महिलाओं के श्रम का आर्थिक मूल्यांकन क्यों नहीं किया जाता?

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