ब्लॉग: गोरखालैंड राज्य आंदोलन अब ढलान की ओर
By शशिधर खान | Published: September 25, 2023 08:27 AM2023-09-25T08:27:29+5:302023-09-25T08:35:41+5:30
दार्जिलिंग गोरखा पहाड़ी के मतदाताओं की एकमात्र मांग है-‘अलग गोरखालैंड राज्य’। इसी के लिए चार दशकों से आंदोलन चल रहा है।
अलग गोरखालैंड राज्य आंदोलन चलानेवाले दार्जिलिंग के सबसे बड़े गुट गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) की बदौलत दार्जिलिंग लोकसभा सीट से जीते भाजपा के राजू बिस्टा अब इस मांग को डंप करने में जुट गए हैं। 2024 लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है, वैसे-वैसे राजू बिस्टा के सुर बदलते जा रहे हैं।
हालिया चुनावी दौरे के क्रम में एमपी राजू बिस्टा ने दार्जिलिंग में जगह-जगह पहाड़ी गोरखों और डूआर्स के लोगों की समस्या का स्थायी राजनीतिक समाधान निकालने तथा उन्हें ‘न्याय’ दिलाने के प्रति अपनी ‘प्रतिबद्धता’ दुहराई लेकिन उन्होंने एक बार भी ‘गोरखालैंड’ का नाम नहीं लिया और यह भी स्पष्ट नहीं किया कि यह प्रतिबद्धता राजू बिस्टा की अपनी है या उनकी पार्टी की।
दार्जिलिंग गोरखा पहाड़ी के मतदाताओं की एकमात्र मांग है-‘अलग गोरखालैंड राज्य’। इसी के लिए चार दशकों से आंदोलन चल रहा है। इस मांग का समर्थन करने और गोरखों की आवाज संसद में उठाने के वायदे पर दार्जिलिंग से जीतनेवाले भाजपा के तीसरे एमपी हैं राजू बिस्टा. 2009 से लगातार भाजपा दार्जिलिंग लोकसभा सीट जीत रही है।
अभी 18 से 22 सितंबर तक चले संसद के विशेष सत्र से तीन दिन पहले राजू बिस्टा दार्जिलिंग में घूम रहे थे। इसके बाद संसद का सिर्फ दो सत्र होगा, जो पूरी तरह 2024 आम चुनाव पर केंद्रित होगा। राजू बिस्टा ने स्पष्ट संदेश दे दिया कि उनके लिए और भाजपा के लिए अलग गोरखालैंड कोई मुद्दा नहीं है।
सारे गोरखा गुट राज्य आंदोलन से ही निकले हैं और आपसी फूट से बिखरे हैं। गोरखालैंड आंदोलन के संस्थापक सुभाष घीसिंग ने पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा शासनकाल के 37 वर्षों तक दार्जिलिंग में लगभग समानांतर सरकार चलाई। भूमिगत रहकर सिर्फ हिंसा की बदौलत गोरखालैंड आंदोलन चलानेवाले सुभाष घीसिंग का वह दबदबा था कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों को कानून-व्यवस्था सुभाष घीसिंग की शर्तों पर कायम रखनी पड़ती थी।