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ब्लॉग: मुंबई में अनवरत ‘विकास’ की चिंता

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: April 19, 2024 10:37 IST

मुंबई एक मायावी व बहुरंगी नगरी है। शहर की भव्यता भी अलग ही है। यहां लगातार होने वाले निर्माण कार्यों की राजनेताओं की ललक कभी भी न समाप्त होने का मुझे भय है।

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ठळक मुद्देमुंबई महानगर में बहुत पैसा है, तरह-तरह के अपराध हैं और घोर गरीबी भी हैमुंबई एक मायावी व बहुरंगी नगरी है, शहर की भव्यता भी अलग ही हैकहा जाता है कि जो लोग नौकरी या व्यवसाय के लिए मुंबई जाते हैं, वे शायद ही कभी लौटते हैं

मुंबई एक मायावी व बहुरंगी नगरी है। शहर की भव्यता भी अलग ही है। यहां लगातार होने वाले निर्माण कार्यों की राजनेताओं की ललक कभी भी न समाप्त होने का मुझे भय है। मुंबई शहर आए दिन सुर्खियां बटोरने वाला शहर है। क्रिकेट, बॉलीवुड, सेंसेक्स, करोड़पतियों की नित नई सूचियां और बढ़ती आबादी इत्यादि से यह शहर हमेशा खबरों में रहता है।

अपनी जन्म नगरी की एक और हालिया यात्रा के दौरान मुझे एहसास हुआ कि इस बड़े शहर (यानी राजनेता, नौकरशाह और इंजीनियर) का निर्माण कार्यों के प्रति प्रेम दुर्भाग्य से अंतहीन है। आप जहां भी जाते हैं, कुछ न कुछ हटाया जा रहा है या कुछ बनाया जा रहा है...मुंबई में लोगों की सतत आमद के कारण, पर्यावरण की कीमत पर कांक्रीट के ढांचे लगातार बढ़ रहे है और यही चिंता का सबब है।

‘मैग्जिमम सिटी’ - महाराष्ट्र की राजनीतिक राजधानी और भारत की वित्तीय राजधानी - 23 अलग-अलग द्वीपों के एक द्वीपसमूह पर बनाई गई थी और मुंबई उनमें से सिर्फ एक थी। 20 वीं सदी का यह आधुनिक महानगर अब कई चीजों का एक भव्य मिश्रण है - अच्छा, बुरा और बदसूरत. इसके एक कोने में सुंदर विरासत वाले भवन हैं, उत्कृष्ट संस्थान हैं और अद्भुत लोग हैं।

इस महानगर में बहुत पैसा है, तरह-तरह के अपराध हैं और घोर गरीबी भी है। फिर भी कहा जाता है कि जो लोग नौकरी या व्यवसाय के लिए मुंबई जाते हैं, वे शायद ही कभी लौटते हैं; इसके बावजूद कि यहां ट्रैफिक समस्या, लोकल ट्रेन में खचाखच भीड़, जल संकट या हरियाली में कमी जैसी रोजमर्रा की चुनौतियां मौजूद हैं। रहने योग्य शहरों के विभिन्न सूचकांकों में मुबंई अपने वैश्विक प्रतिस्पर्धियों न्यूयॉर्क, केपटाउन, लंदन, बर्लिन, मैड्रिड या बीजिंग के बीच शुमार है किंतु काफी निचली पायदान पर।

बेशक, मुंबई में हर कोई जाने-माने अरबपतियों की हालिया जारी सूची में स्थान नहीं बना सकता, जिनकी संख्या वर्तमान में 92 है, जो एशियाई शहरों में बीजिंग से एक कम है। यह नई, महंगी पहचान है जिसके लिए मुंबई ने सुर्खियां बटोरी हैं लेकिन मुंबई सभी लोगों को समायोजित करती है। महानगर धारावी के झुग्गीवासियों और 27 मंजिल के विशाल ‘एंटीलिया’ के मालिकों से समान रूप से मोहब्बत करती है।

यह महानता है ‘मुंबादेवी’ की, जिस प्रसिद्ध देवी के नाम पर शहर को इसका मूल नाम वर्ष 1318 या उसके आसपास मिला। क्या अधिकतम शहर ( मैग्जिमम सिटी) का अधिकतम विस्तार अब हो चुका है? या शहर को एक ‘हीट आइलैंड’ बनाने के लिए नया बुनियादी ढांचा तैयार करने की अभी भी गुंजाइश बची है? मनुष्य के लालच की कोई सीमा नहीं होती लेकिन नीति निर्माताओं के पास भविष्य के लिए समकालीन व अच्छा दृष्टिकोण होना चाहिए।

क्या वे यह नहीं कह सकते कि बस अब बहुत हो चुका! 1980 के दशक के मध्य में ‘बीमारू’ कहे जाने वाले बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश या राजस्थान जैसे पिछड़े राज्यों से आने वाली भीड़ को समायोजित करने के लिए शहर अब और चारों और पैर पसार नहीं सकता। हर कोई जानता है कि राजनेता कभी यह कहने का साहस नहीं जुटा पाएंगे कि क्षमा करें दोस्तों, आपका यहां स्वागत नहीं है।

बालासाहब ठाकरे, जो अपनी स्पष्ट राय के लिए जाने जाने वाले एक दुर्लभ राजनेता थे। उनके दौर में शिवसेना ने इसकी कोशिश की थी. मुंबई पर ‘मराठी मानुस’ के प्रथम अधिकार की रक्षा के लिए शिवसेना ने बिहार और यूपी के मजदूरों का जमकर विरोध किया था लेकिन इस प्रक्रिया में यह राजनीतिक रूप से कमजोर हो गई क्योंकि गैर-मराठियों की संख्या बढ़ती ही गई और कमजोर मराठी आवाज को दबा दिया गया।

अपनी हाल की यात्रा के दौरान मैं नवनिर्मित और महंगी तटीय सड़क से गुजरा जो मरीन ड्राइव को सुदूर दहिसर से जोड़ेगी। इस दौरान मन में कई सवाल उठे। मैं फ्लाईओवरों की भयानक रूप से बढ़ती संख्या को दुःखी मन से देख रहा था जिसने इस ऐतिहासिक शहर के सुंदर क्षितिज को स्थायी रूप से खत्म कर दिया है। क्या मुंबई अपने निर्माण कार्यों का सिलसिला कभी नहीं रोकेगी? अंतरराष्ट्रीय शहर हमेशा खुदा-सा रखा रहेगा?

विशाल तटीय सड़क सीधे-सीधे प्रकृति पर विजय पाने के लिए मनुष्य का एक और गलत प्रयास है। बैकबे पुनर्ग्रहण-मानव निवास के लिए अरब सागर से भूमि अधिग्रहण-दशकों से चल रहा है। अब तटीय सड़क के खुलने के साथ, 14,000 करोड़ रुपए से अधिक की लागत से समुद्र के नीचे सुरंग बनाने में पर्यावरणविदों की आपत्तियों के बावजूद, जाहिर तौर पर मरीन ड्राइव-आकर्षक क्वीन्स नेकलेस-और वर्ली के बीच यातायात की समस्या कम हो गई है। सिर्फ कुछ ही समय के लिए।

हालांकि सवाल यह है कि कभी खूबसूरत रहे इस शहर को लेकर ऐसे प्रयोग कब तक चलते रहेंगे? ‘अधिक जनसंख्या-अधिक सुविधाएं-अधिक जनसंख्या’ का दुष्चक्र शायद कभी खत्म न हो। किसी भी वैश्विक शहर को इस तरह से संचालित नहीं किया जाता है। पुराने शहरों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाती और उनकी विशेषताओं और पहचानों को इतनी आसानी से और बार-बार खत्म नहीं किया जाता।

यह केवल शहर के सौंदर्यशास्त्र के बारे में नहीं है, यह बात प्रकृति को लगातार चुनौती देने के बारे में भी है और मुंबई की ‘वहन क्षमता’ को निश्चित करने में विफलता के बारे में भी है। मैं व्यक्तियों के स्वतंत्र आवागमन के संवैधानिक प्रावधानों से अवगत हूं, फिर भी यह कह रहा हूं। विकास की सीमा होनी । शहर बेतहाशा नहीं बढ़ाए जा सकते हैं। अगर हम प्रकृति से खिलवाड़ करते रहे तो सुनामी और बाढ़ जैसी आपदाएं एक झटके में लोगों की जान ले लेंगी।

हमें जुलाई 2005 को नहीं भूलना चाहिए जब कुछ ही घंटों में मुंबई डूब गई थी और सैकड़ों ‘मुंबईकर’ अपनी कारों में ही जलमग्न हो मर गए थे। जलवायु परिवर्तन के दौर में दुनिया भर के तटीय शहर वैसे भी खतरे में हैं। मुंबई हमारी प्रिय नगरी है, उसे बचाना हमारी जवाबदारी है।

टॅग्स :मुंबईक्राइमबाढ़मुद्रास्फीति
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