ब्लॉग: बापू के भारतीय आग्रह और अमृत काल
By गिरीश्वर मिश्र | Published: October 5, 2023 09:31 AM2023-10-05T09:31:26+5:302023-10-05T09:41:33+5:30
अमृत काल में एक समर्थ भारत के निर्माण के साथ मुखर प्रतिबद्धता चारों ओर दिख रही है। इस माहौल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में उनके सामाजिक स्वप्न पर गौर करना समीचीन होगा।
अमृत काल में एक समर्थ भारत के निर्माण के साथ मुखर प्रतिबद्धता चारों ओर दिख रही है। इस माहौल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ( जिन्हें प्यार से बापू यानी संरक्षक भी कहते हैं) के जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में उनके सामाजिक स्वप्न पर गौर करना समीचीन होगा।
यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि वे भारत के लिए एक भारतीय की तरह सोच सके थे और यह दृष्टि अब पृष्ठभूमि में जा कर ओझल होती जा रही है। गांधीजी ने शोषण करने वाली साम्राज्यवादी अर्थव्यवस्था के दबावों के बीच गरीब और टूटे-बिखरे भारतीय समाज को एकजुट कर उसमें राजनैतिक–सामाजिक बदलाव लाने का बीड़ा उठाया था।
गांधीजी का आग्रह था कि नैतिक शक्ति पर टिका जनता का राज्य स्थापित हो जो समतामूलक दृष्टि से सबकी मूलभूत जरूरतों की देख-भाल कर सके। इसके लिए सत्ता का विकेंद्रीकरण और जनता की सीधी भागीदारी उन्हें जरूरी लगती थी।
रचनात्मक कार्यों से जोड़ कर वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार देना चाहते थे ताकि उनकी आय बढ़े और उनमें स्वावलंबन आ सके। वे समाज के दीन-हीन अंतिम जन के जीवन स्तर में सुधार के लिए विशेष रूप से चिंतित थे। वे पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के अंधानुकरण के विरुद्ध थे और मानते थे कि इससे भारत का उत्थान संभव नहीं है।
आज पर्यावरण विनाश, चरित्र की गिरावट और हिंसा की विश्वव्यापी चुनौती हमें सोचने को बाध्य कर रही है कि हम शरीर, बुद्धि और आत्मा के संतुलित विकास पर फिर से संजीदगी से विचार करें। महात्मा गांधी की सर्वांगीण दृष्टि की उपेक्षा नुकसानदेह होगी।
अब हम यह भूलने लगे हैं कि देश को भुलाकर सिर्फ स्वयं को ध्यान में रखकर जो सुख की अभिवृद्धि कर रहे हैं वह समाज के लिए घातक है। देश और समाज के प्रति उदासीनता और उसके साथ तादात्मीकरण न होना आम बात हो रही है। स्वतंत्र होने का मतलब मनमाना करने की छूट होता जा रहा है।
बापू का स्वदेशी का सपना अपनाते हुए हम अपने निकट के संसाधनों के उपयोग पर ध्यान देते हैं और पारिस्थितिकी की सीमाओं का सम्मान करते हैं। इससे स्थानीय व्यवस्था को सुदृढ़ करने में मदद मिलती है, सत्ता का विकेंद्रीकरण होता है और सामान्य जन की सामर्थ्य बढ़ती है।
इससे विस्थापन तथा पलायन की समस्या का समाधान भी मिलता है। इन सबसे ऊपर प्रकृति–पर्यावरण के अंधाधुंध शोषण और दोहन की वैश्विक चुनौती का निदान भी मिलता है। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर स्थानीयता की आवाज उठाई जा रही है- लोकल वोकल हो रहा है। इसे मूर्त रूप देना होगा।