राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने यह कह कर बिहार से लेकर दिल्ली तक की राजनीति को गरमा दिया है कि महागठबंधन बिहार चुनाव का बहिष्कार करने के बारे में सोच सकता है. महागठबंधन में मुख्य रूप से तीन पार्टियां राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वामपंथी दल शामिल हैं. महागठबंधन बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) से नाराज है. इस मतदाता पुनरीक्षण को लेकर काफी हंगामा चल रहा है.
विपक्ष यानी महागठबंधन कह रहा है कि पुनरीक्षण इस तरह से हो रहा है कि लाखों मतदाताओं के नाम सूची से कट जाएंगे. दूसरी तरफ इस पुनरीक्षण के समर्थक कह रहे हैं कि मत देने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को होना चाहिए. जो लोग फर्जी तरीके से मतदाता सूची में शामिल हो गए हैं, उनके नाम सूची से तो हटने ही चाहिए, उनके खिलाफ कार्रवाई भी होनी चाहिए.
खासकर बिहार के पूर्णिया, अररिया और कटिहार जिले तथा सीमावर्ती इलाकों में अवैध घुसपैठियों का मामला काफी पहले से उठता रहा है और भारतीय जनता पार्टी के नेता यह आरोप लगाते रहे हैं कि राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के कुछ नेता अवैध घुसपैठियों का उपयोग वोट बैंक की तरह करना चाहते हैं.
विपक्ष कह रहा है कि मतदाता सूची के पुनरीक्षण के लिए लोगों से इतने तरह के कागजात मांगे जा रहे हैं कि सामान्य व्यक्ति के लिए ये सारे कागजात दे पाना संभव नहीं है. ऐसी हालत में उनके सूची से बाहर होना तय है. राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस का मानना है कि जिन लोगों के नाम सूची से हटेंगे वे यदि सूची में मौजूद रहते तो महागठबंधन को ही वोट देते!
विशेष पुनरीक्षण को रोकने के लिए विपक्षी दल कोर्ट भी पहुंचे लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली. चुनाव आयोग लगातार अपना काम कर रहा है. इसी बीच तेजस्वी यादव का यह बयान आया है कि जब लाखों लोग वोट देने से वंचित रह जाएंगे तो हम, यानी गठबंधन मे शामिल दल, चुनाव बहिष्कार के बारे में सोच सकते हैं. यह विकल्प खुला हुआ है.
हालांकि गठबंधन के दूसरे घटक कांग्रेस या वामपंथी दलों की ओर से इस तरह का कोई बयान अभी तक नहीं आया है. बिहार की राजनीति में यह सवाल पूछा जा रहा है कि तेजस्वी यादव क्या वाकई चुनाव का बहिष्कार करने की सोच रहे हैं या फिर केवल धमकी दे रहे हैं? यदि यह धमकी है तो इससे कौन डरेगा?
यदि महागठबंधन चुनाव न लड़े तो न चुनाव आयोग की सेहत पर कोई फर्क पड़ेगा और न ही सरकार की सेहत बिगड़ेगी. बल्कि भारतीय जनता पार्टी की राह तो और आसान हो जाएगी. सबसे बड़ी बात यह है कि महगठबंधन यदि चुनाव न लड़े तो इसका फायदा प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को जरूर हो सकता है.
भाजपा विरोधी मतदाता प्रशांत किशोर के पास चले जाएंगे. जिस तरह से बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर छा रहे हैं, वैसी स्थिति में राष्ट्रीय जनता दल का चुनावी परिदृश्य से हटना आत्मघाती कदम ही होगा. प्रशांत किशोर वैसे भी हाथ धोकर तेजस्वी के पीछे पड़े हैं और उन्हें नौवीं फेल नेता के रूप में प्रचारित कर रहे हैं.
वे गांव-गांव में जाकर यादव मतदाताओं से कह रहे हैं कि लालू प्रसाद यादव यदि वास्तव में यादवों के नेता होते तो किसी पढ़े-लिखे यादव को मुख्यमंत्री बनाते लेकिन उन्होंने तो अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनाया और नवीं फेल बेटे को उपमुख्यमंत्री बनाया. जाहिर सी बात है कि तेजस्वी किसी भी कीमत पर प्रशांत किशोर को खुला मैदान नहीं देना चाहेंगे. इसलिए यह माना जा रहा है कि तेजस्वी ने चुनाव बहिष्कार की जो बात की है, वह कोरी धमकी के अलावा और कुछ नहीं है.