भारत में यह कहावत घर-घर में प्रचलित है कि अहंकार तो रावण का भी नहीं टिका! बिहार चुनाव में मतदाताओं ने इसी कहावत को चरितार्थ किया है. सबसे पहले नीतीश कुमार को बधाई जो दसवीं बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए हैं. उनके विरोधियों ने सत्ता में लौटने का मौका गंवा दिया. विरोधी चुनाव से पहले भी वोट चोरी का नारा लगा रहे थे, आज भी लगा रहे हैं. हर महिला के खाते में दस हजार रुपए को रिश्वत बता रहे हैं मगर मैं मानता हूं कि वह एनडीए की रणनीति थी जैसे कि आरजेडी गठबंधन ने बिहार के डेढ़ करोड़ परिवारों में से कम से कम एक आदमी को नौकरी देने का वादा किया.
एनडीए की घोषणा के दस हजार रुपए महिलाओं के खाते में जमा हो गए और यह विश्वास भी दिला दिया कि दो लाख रुपए का ब्याज मुक्त ऋण भी मिलेगा. ये अलग बात है कि इस तरह के ऋण कभी लौटते हैं या नहीं! इधर आरजेडी गठबंधन लोगों तक न बात पहुंचा पाया और न ही विश्वास दिला पाया. तेजस्वी यादव ने अपनी जाति के लोगों को जिस तरह से टिकट दिया, उससे दूसरी जातियां नाराज हुईं.
और, वोट चोरी की बात का तो कोई असर ही नहीं हुआ. निश्चित रूप से भाजपा की व्यूह रचना सटीक थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 7 बार बिहार गए. केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने 36 और फायर ब्रांड नेता, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 31 जनसभाएं कीं.
दूसरे राज्यों के ढेर सारे नेता बिहार में डेरा डाले बैठे थे. नीतीश कुमार ने तो संपर्क का जैसे इतिहास ही रच दिया. हर दिन सुबह से लेकर शाम तक वे जनसंपर्क में ही रहे. चुनाव के दौरान बिहार का मौसम खराब था, बारिश हो रही थी लेकिन नीतीश ने सड़क मार्ग से यात्राएं कीं और निर्धारित जनसभाओं को संबोधित किया.
इसके ठीक विपरीत तेजस्वी यादव ने बारिश की वजह से बहुत सी सभाएं रद्द कीं क्योंकि उनका हेलिकॉप्टर नहीं उड़ पाया. इस बात को भाजपा और जदयू ने खूब प्रचारित भी किया कि तेजस्वी हेलीकॉप्टर पर सवार नेता हैं जबकि नीतीश कुमार जमीन पर चलने वाले मुख्यमंत्री हैं. निश्चित रूप से इस बात ने मतदाताओं की सोच को दिशा दी.
तेजस्वी यह मान कर चल रहे थे कि नीतीश चूंकि लंबे समय से पद पर बने हुए हैं, इसलिए मतदाता इस बार बदलाव चाहते हैं. उनकी इस सोच ने उनमें अहंकार भर दिया जो उनकी बातों में झलकने भी लगा. उन्होंने तो यहां तक घोषणा कर दी कि 18 नवंबर को वे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. उन्होंने अधिकारियों को धमकाना भी शुरू कर दिया कि चुनाव के बाद एक-एक को ठीक किया जाएगा!
केवल तेजस्वी ही नहीं, उनकी पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवार इसी तरह की भाषा बोल रहे थे. भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के स्टार खेसारी लाल यादव ने तो एक जनसभा में यहां तक कह दिया था कि वे तो ब्रह्मा की लकीर भी मिटा सकते हैं. एनडीए को संभवत: इस बात का अंदाजा था कि तेजस्वी के तेवर तीखे रहने वाले हैं, इसलिए एक बड़ी सटीक चाल चली गई.
सोशल मीडिया पर ऐसे रील्स की बाढ़ आ गई जो लालू प्रसाद यादव के जंगल राज की याद दिला रही थी. इसका मकसद मतदाताओं को यह याद दिलाना था कि यदि तेजस्वी की सरकार आ गई तो अपराधियों का बोलबाला हो जाएगा. इधर आरजेडी की जो रैलियां निकलीं उसने भी आग में घी का काम किया.
वास्तव में इन रैलियों ने कई जगह आतंक भी पैदा किया जिसने निश्चित रूप से आरजेडी को भारी क्षति पहुंचाई. तेजस्वी इन सारी बातों से दूर अपने भ्रम में पड़े रहे कि वे युवा नेता हैं और बिहार को नई दिशा देने जा रहे हैं. लेकिन युवा नेता की छवि को तो प्रशांत किशोर ने नवीं फेल वाले नैैरेटिव से पहले ही धराशायी कर दिया था.
आरजेडी के सहयोगी कांग्रेस की तो बात ही क्या करें? 61 सीटों पर लड़ी और 6 सीटों पर सिमट गई! पिछले चुनाव में कांग्रेस के पास 19 सीटें थीं. बात कड़वी है लेकिन सोलह आने सच है कि कांग्रेस दिग्भ्रमित है. बिहार में राहुल की रैलियां क्यों काम नहीं आईं? क्या इस पर विचार होगा? कांग्रेस के पास कोई रणनीति ही नहीं थी.
कांग्रेस को नए सिरे से सोचना होगा. लोकसभा या विधानसभा में भले ही उसके प्रतिनिधियों की संख्या कम हो लेकिन वे विरोध की सशक्त आवाज तो बन ही सकते हैं. मैं हमेशा कोल्लम के सांसद प्रेमचंद्रन का उदाहरण देता हूं जो रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के अकेले सांसद हैं लेकिन वे बहुत मुखर हैं. हर कोई उनका सम्मान करता है.
अब चलिए बात करते हैं जन सुराज की! लोगों को लग रहा था कि दूसरों को चुनाव लड़ाने वाला खुद कैसे नहीं जीतेगा? देश दुनिया में इस तरह का प्रचार चल रहा था कि इस बार प्रशांत किशोर कमाल दिखाएंगे. सत्ता में बैठेंगे और बिहार को नई दिशा में ले जाएंगे.
जब भी किसी ने पूछा कि चुनाव में अपनी पार्टी का क्या भविष्य देख रहे हैं तो उन्होंने यही कहा कि अर्श पर या फर्श पर! उनके तेवर में भी एक तरह का अहंकार ही था. संभवत: इसी अहंकार का नतीजा है कि मतदाताओं ने कहा कि प्रशांत बाबू, इस बार तो फर्श पर ही रहिए! लेकिन प्रशांत किशोर ने विपक्ष के वोट काटने का काम जरूर किया. भाजपा के लिए वे भाग्यशाली साबित हुए.
लालू परिवार में लगा दीमक
वह 2019 का सितंबर महीना था जब लालू प्रसाद यादव की बड़ी बहू ऐश्वर्या राय घर से रोते हुए निकली थीं कि परिवार ने बदसलूकी की है. तेजप्रताप यादव के साथ तलाक का प्रकरण अभी चल ही रहा है. इसी साल मई में लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेजप्रताप को न केवल पार्टी, बल्कि घर से भी निकाल दिया.
लालू को किडनी देने वाली उनकी बेटी चुनाव परिणाम आने के बाद घर से रोते हुए निकलीं और कहा कि अब न उनका परिवार है और न ही पार्टी. वे सिंगापुर चली गईं! उन्होंने तेजस्वी के सलाहकार संजय यादव और रमीज पर गंभीर आरोप लगाए हैं. तो क्या लालू यादव के घर को वाकई दीमक लग गया है? इस सवाल का जवाब वक्त देगा!