Bihar Election Result 2025 LIVE Updates: बिहार विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने जिस तरह से बढ़-चढ़कर मतदान किया है, उसने एक बार फिर साबित किया है कि महिलाओं में राजनीतिक चेतना पुरुषों से न सिर्फ कम नहीं है, बल्कि उनसे बढ़-चढ़कर है. पहले चरण के मतदान में 61.56 पुरुषों के मुकाबले जहां 69.04 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था, वहीं दूसरे चरण में और भी आगे बढ़कर 62.8 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले 71.6 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया. जाहिर है कि महिलाओं के चलते ही बिहार में इस बार मतदान प्रतिशत ऐतिहासिक रहा है.
हालांकि इसके पहले भी महिलाएं वहां पुरुषों से ज्यादा मतदान करती रही हैं, 2010 में यह आंकड़ा जहां 3.4 प्रतिशत अधिक था, वहीं 2015 में 7.2 प्रतिशत ज्यादा रहा था. इसके बावजूद राजनीतिक दल जिस तरह से महिलाओं को ज्यादा भागीदारी देने से कतराते हैं, वह दर्शाता है कि महिला सशक्तिकरण की उनकी बातें वास्तविक कम, दिखावटी ज्यादा हैं.
इस बात का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि बिहार विधानसभा के ताजा चुनाव में राजनीतिक दलों ने दस प्रतिशत से भी कम महिलाओं को उम्मीदवारी दी. 243 सीटों का प्रतिनिधित्व करने के लिए कुल 2,615 उम्मीदवारों ने नामांकन किया, जिनमें से 2,357 पुरुष उम्मीदवार थे और महिला उम्मीदवारों की संख्या केवल 258 रही.
इस बारे में किसी एक को दोष नहीं दिया जा सकता, सभी राजनीतिक दलों में फर्क सिर्फ उन्नीस-बीस का ही है. हालांकि केंद्र सरकार ने सितंबर, 2023 में ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ बनाया था, जो लोकसभा, राज्यों की विधानसभा और दिल्ली विधानसभा की एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करता है.
लेकिन, इसमें पेंच यह है कि यह कानून तत्काल प्रभाव से लागू नहीं हुआ था. सरकार के मुताबिक इस कानून के लागू होने से पहले देश में जनगणना और परिसीमन होना जरूरी है. इसलिए अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि यह कानून देश में कब तक लागू होगा.
हालांकि भाजपा नेता राधामोहन शर्मा ने इस कानून का जिक्र करते हुए कहा है कि आने वाले 2029 या 2030 में जब भी चुनाव होंगे तो उसमें महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा. वहीं, सीपीआई-एमएल के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है कि महिला आरक्षण को तुरंत प्रभाव से लागू कर देना चाहिए,
क्योंकि इस कानून के लागू होते ही महिलाओं को टिकट देना सभी पार्टियों की मजबूरी बन जाएगी. सवाल यह है कि राजनीतिक दल अगर सचमुच ईमानदार हैं तो कानून के बिना भी, वे स्वेच्छा से महिलाओं को टिकट क्यों नहीं देते? अपनी शक्ति के बल पर तो महिलाएं देर-सबेर अपना अधिकार हासिल कर ही लेंगी, लेकिन तब क्या पुरुष प्रधान समाज का ढोंग बेनकाब नहीं हो जाएगा?